नदी, मछली, साधक और भगव्द्गीता

मछली पकड़ने वाले और साधक में बहुत कुछ साम्य है। मैं जब भी गंगा किनारे किसी को कंटिया लगा कर शांत बैठे देखता हूं, मुझे तत्वज्ञान की तलाश में साधनालीन व्यक्ति की याद हो आती है। इस प्रकार के कई लोगों से मैं मिला हूं और उनके बारे में ब्लॉग पर भी लिखा है। सामान्यत: वह लिखने में एक प्रकार का व्यंग, सटायर या हास्य होता है। आज वैसी अनुभूति नहीं थी!

वह व्यक्ति अभी बैठा ही था कंटिया लगा कर। एक डोरी – करीब तीस फुट लम्बी – कांटा और चारा (कीड़ा/केचुआ) लगा कर नदी में फैंक रखी थी। एक दूसरी डोरी, लगभग उतनी ही लम्बी, एक डण्डी से सहारे फैंक रखी थी पानी में? अर्थात मछली पकड़ने के लिये दो कांटे लगा रखे थे।

नदी किनारे बैठा कंटिया लगाये मछेरा

अगर मछली कांटे में फंसी तो डोरी में झटका लगेगा और मछेरा उसे खींचने का उपक्रम करेगा।

“डण्डी वाली दूसरी कंटिया-डोरी में अगर मछली फंसी तो कैसे पता चलेगा?”

“किनारे पर गाड़ी डण्डी जोर से हिलने लगेगी। तब मैं अपनी डोरी छोड़ कर डण्डी वाली डोरी साधने लगूंगा।”

“किनारे पर गाड़ी डण्डी जोर से हिलने लगेगी। तब मैं अपनी डोरी छोड़ कर डण्डी वाली डोरी साधने लगूंगा।”

मेरे समझ में आ गया। दो डोरी से उस मछेरे ने अपनी मछली पकड़ने की प्रॉबेबिलिटी (सम्भावना) दुगनी कर ली है।

“तब दो ही डोरी क्यूं? चार पांच डोरियां-कंटिये क्यों नहीं लगा लिये?” – मेरी अगली जिज्ञासा थी।

“जितना सम्भाल सकता हूं, उतनी ही तो लगाऊंगा। ज्यादा लगाने पर एक साथ दो-तीन में मछली फंस गयी तो उन्हें समेटना अकेले के बूते का नहीं है?”

बहुत सही! साधक अगर संतोष का भाव अपने में नहीं ला सकता तो संसार, मोह, लालच की उधेड़बुन और मकड़जाल में; वह न तीन में रहेगा, न तेरह में! … माया मिली न राम की दशा होगी। मुझे अब समझ आया; यह मछेरा पहले ही जानता है।

“कितना समय लगता है मछली मिलने में?”

“अब क्या कहा जा सकता है। अभी दस मिनट पहले ही बैठा हूं।” वह मुंह से खैनी थूंकते हुये बोला। फिर सोच कर जोड़ा – “ज्यादा समय नहीं लगेगा। नदी और उसमें मछलियां देखते हुये जल्दी ही मिल जानी चाहियें।”

ग्रेट! अगर मैं उसके कथन को “सत्य और ज्ञान की खोज” से जोड़ूं और मछली को ज्ञान प्राप्ति के स्थान पर रख कर सोचूं तो “जल्दी ही मिल जाने” की बात तो भग्वद्गीता भी करती है! अचानक मुझे स्वामी चिन्मयानंद जी के हमको पिलानी में दिये लेक्चर याद हो आये। वे चौथे अध्याय पर बोल रहे थे और “अचिरेण” (बिना देरी के) शब्द पर रुके थे। गीता श्रद्धावान और साधनारत व्यक्ति को आश्वासन देती है कि शीघ्र ही उसे भग्वत्प्राप्ति होगी –

श्रद्धावांल्लभते ज्ञानं
तत्परं: संयतेन्द्रिय: ।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्ति-
मचिरेणाधिगच्छति (मा अचिरेण अधिगच्छति) ।।गीता, 4.39।।

कहते हैं, ज्ञान आपको कहां, किस हालात में मिलेगा, कहा नहीं जा सकता। आपको अपने रिसेप्टर्स (अपनी ज्ञानेंद्रियाँ) खुले रखने हैं। आज से पैंतालीस साल पहले स्वामी जी के लेक्चर मेरी विस्मृति में तह लगे रखे थे। यह मछेरा निमित्त बन गया उन्हें पुन: स्मृति में लाने और उसपर मनन करने में। यह अपने आप में अभूतपूर्व बात है।

अचिरेण – very soon – में कोई टाइम-फ्रेम नहीं है। वह ज्ञान प्राप्ति एक क्षण में भी हो सकती है और उसमें जन्म जन्मांतर भी लग सकते हैं!

मुझे एक क्षेपक कथा स्मरण हो आयी। दो साधकों को यह प्रकटन हुआ कि जिस पीपल के पेड़ के नीचे वे तपस्या कर रहे हैं, उसमें जितने पत्ते हैं, उतने वर्षों में उन्हें भग्वत्प्राति हो जायेगी। यह जान कर एक साधक तो सिर पकड़ कर बैठ गया – मैंने इतना कुछ किया है। इतनी सिद्धियाँ प्राप्त की हैं। पर अभी भी इतने साल लगेंगे। इसमें तो कई जन्म जन्मांतर गुजर जायेंगे! 😦

दूसरा साधक यह जान कर कि उसको ज्ञान प्राप्ति हो जायेगी; प्रसन्नता में नाचने लगा – मुझे इतनी जल्दी (अचिरेण) भग्वद्प्राप्ति हो जायेगी! क्या खूब!‍ कुछ ही जन्मों की तो बात है। समय तो बस गुजरते क्या देर लगती है! 😆

गंगा तट से लौटते समय मन में “प्रसन्नता से नाचने का भाव” तो नहीं था; पर यह ढाढस मन में जरूर था कि लौकिक-पारलौकिक सफलताओं की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त है। गीता नें तो वह एश्योरेंस दे ही रखा है; आज इस मछेरे ने भी वह स्मरण करा दिया!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

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