मैं जानता हूं कि पूरे दृष्य में गजब की रागदरबारियत थी। पर मैं श्रीलाल शुक्ल नहीं हूं। अत: उस धाराप्रवाह लेखनी के पासंग में भी नहीं आती मेरा यह ब्लॉग पोस्ट।
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
मैं जानता हूं कि पूरे दृष्य में गजब की रागदरबारियत थी। पर मैं श्रीलाल शुक्ल नहीं हूं। अत: उस धाराप्रवाह लेखनी के पासंग में भी नहीं आती मेरा यह ब्लॉग पोस्ट।