#रागदरबारी लाइव; गंगा तट पर मछली खरीद के संवाद

दो समूह थे। एक नाव पर। उसमें तीन लोग थे। गंगा उस पार के सिनहर गांव के केवट। नदी किनारे जमीन पर खड़े लोग थे (शायद) द्वारिकापुर गांव के बाबू साहब लोग। वे मछली बेचने वाले नहीं थे। बेचने वाले सवेरे सवेरे आते हैं इन केवटों से मछली खरीदने। इस समय दोपहर के साढ़े बारह बजे थे। ठाकुर साहबों को शायद दोपहर में मछली खाने का मूड हो आया था।

केवट ठाकुर सम्वाद

मोलभाव का संवाद चल रहा था। अचानक आवाजें तेज हो गयीं। मेरा ध्यान उनकी ओर चला गया। एक केवट नाव पर खड़ा हो कर समझाने लगा कि बेचने के लिये मछली नहीं है। ठाकुर साहब को यह नकार पसंद नहीं आया। उन्होने मांं-बहन आदि के पवित्र सम्बंधों का आवाहन कर जोर दे कर कहा कि देगा कैसे नहीं। केवट ने बताया कि थोड़ी सी मछली है, जो उसके घर के लिये है।

फिर मोलभाव का द्वितीय चरण। फिर मां-बहनों और विशिष्ट अंग से मानवमात्र की उत्पत्ति स्पष्ट करने वाले आदि-युगीन शब्दों का उच्चारण। मानो यज्ञ चल रहा हो और उसमें ऋषिगण ऋचायें पढ़ रहे हों। पर यह यज्ञ माइनर ही था। जल्दी निपटा और ठाकुर साहब ने पचास का नोट लहराया। केवट ने कहा कि इतनी दक्षिणा अपर्याप्त है। उसके असिस्टेण्ट ने मछलियों को निकाल कर दिखाया भी। एक राउण्ड पारिवारिक सम्बंधों वाले मंत्रों का पुन: उच्चारण हुआ। पर ठाकुर साहब को मछली की तलब ज्यादा थी – अपनी ठकुराई से कहीं ज्यादा। उन्होने बीस रुपये और निकाले। तब सौदा पक्का हुआ।


यह पोस्ट भी पढ़ें – बाभन (आधुनिक ऋषि) और मल्लाह का क्लासिक संवाद


मछली लेने के लिये ठाकुर प्लास्टिक की पन्नी लिये थे। उसमें मछली रखवा कर विजयी भाव और बनने वाले भोजन की कल्पना के साथ प्रमुदित वे और उनके साथी अपनी मोटर साइकिलों की ओर लौटे।

लौटते हुये एक जवान (छोकरा ही था) ने अपना एक्सपर्ट कमेण्ट दिया। “बीस ठे रुपिया ढेर दई देहे आप। हमार चलत त एक्को न देइत। ऊ भो*ड़िया वाले के *ड़ी (वह स्थान जहां से अपशिष्ट विसर्जन होता है) से निकारि लेइत सब मछरी (बीस रुपया ज्यादा दे दिया आपने। मेरा बस चलता को एक भी पैसा नहीं देता और उसके नीचे के अंग से सारी मछलियां निकाल लेता)।”

वीर जवान की मोटर साइकिल खड्डे में सरकती गयी।

लेकिन उस उभरते वीर नौजवान की वीरता की जल्दी ही हवा निकल गयी। गंगा घाट से करार पर मोटर साइकिल चढ़ाते समय उस नौसिखिया ने समय पर एक्सीलरेटर नहीं लगाया और मोटर साइकिल पीछे की ओर फिसलने लगी। उसके बहुत यत्न करने के बावजूद खड्ड में सरक गयी। उसका सारा विशिष्ट अंग से मछलियाँ निकाल लेने का ज्ञान ऊपर पंहुचे साथियों की गुहार में बदल गया। गुहार सुन एक अन्य वीर आया और दोनो ने मिल कर मोटर साइकिल निकाली।

एक अन्य वीर आया और दोनो ने मिल कर मोटर साइकिल निकाली।

मैं जानता हूं कि पूरे दृष्य में गजब की रागदरबारियत थी। पर मैं श्रीलाल शुक्ल नहीं हूं। अत: उस धाराप्रवाह लेखनी के पासंग में भी नहीं आती मेरा यह ब्लॉग पोस्ट। पर आपको सीन समझ में आ ही गया होगा; उस सबसे जो मैंने चित्र और लेखन के माध्यम से व्यक्त किया।

ब्लॉग का वही ध्येय होता है। रागदरबारी का सीक्वेल लिखना नहीं होता। 😆

#गांवदेहात में विभिन्न जातियां, उनके कार्य, उनके आपसी सम्बंध, हेकड़ी, अनुनय और अपना बार्गेनिंग पावर को समझना-इस्तेमाल करना युगों से चला आ रहा है। बहुत कुछ तेजी से बदल रहा है। पर बदलाव के बावजूद भी वैसा ही है। शायद तभी रागदरबारी की प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है, जितनी श्रीलाल शुक्ल के लिखते समय (या उसके पहले) थी।


Advertisement

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

One thought on “#रागदरबारी लाइव; गंगा तट पर मछली खरीद के संवाद

  1. बहुत दिनों बाद यहाँ आना हुआ। देखकर अच्छा लगा कि आपकी ब्लॉगरी बदस्तूर जारी है। कभी शिवकुटी के गंगा घाट के किस्से आपसे नियमित सुनने को मिलते थे। आपने सेवानिवृत्ति के बाद फिर से गंगा जी को पकड़ लिया। राग दरबारी की सृंखला जारी ही रहेगी। सनातन संस्कृति का अंश लगती है यह कहानी। बस इसके ध्वजवाहक बदलते रहेंगे।

    Liked by 1 person

आपकी टिप्पणी के लिये खांचा:

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: