उड़द दल रही है सुग्गी; पर गीत गाना नहीं आता

उसने पैर में आलता लगाया हुआ है। पायल पहनी है पैरों में। चांदी की मोटी पायल। बांया पैर खोल कर आगे किया हुआ है और दांया चकरी के पहले मोड़ रखा है। दांयी ओर एक तसले में उड़द रखी है जिसे वह चकरी से दल रही है। मैं चित्र इसलिये ले सका कि वह मेरे घर के प्रांगण में एक कपड़ा बिछा कर यह कार्य कर रही थी।

सुग्गी, चकरी से उड़द दल कर उड़द की दाल बनाती हुई।

वह सुग्गी है। आधे पर हमारी खेती करती है। इस साल उड़द ठीक ठाक हुई है। जितनी हुई है उससे मेरे और उसके घर का भोजन का काम चल जायेगा।

मैं ध्यान से देखता हूं। एण्टी क्लॉक वाइज चकरी चलाती है वह। कीली पर घूमती चकरी पर वह ध्यान रखती है। पांच या छ चक्कर लगने पर वह चकरी के मुंह में एक मुठ्ठी उड़द डालती है। ध्यान चकरी पर रहता है और दांया हाथ यंत्रवत तहले में से उड़द निकाल कर चकरी के मुंह तक आता है।

अमृतलाल वेगड़ जी का नर्मदा यात्रा के दौरान बनाया “चक्की पीसती नारी” का एक कोलाज।

मुझे अमृतलाल वेगड़ जी के बनाये एक चित्र की याद हो आयी; जो उन्होने नर्मदा यात्रा के दौरान उकेरा था। शायद मध्यप्रदेश में स्त्रियों का घूंघट निकाल रहना, काम करना न होता हो। … फिर भी सुग्गी का चित्र वेगड़ जी के चित्र जैसा ही है।

चकरी की घरर घरर की आवाज के साथ स्त्रियों का गायन हो सकता है। मैं सुग्गी को पूछता हूं – गाना नहीं गा रही? गाना नहीं आता?

हंस कर वह जवाब देती है – नांही, हमके नाहीं आवत”।

घर में वह अपने पति की बजाय खुद को आगे रख कर काम करती है। आवाज बुलंद है। आस पड़ोस से झगड़े टण्टे उसे ही निपटाने होते हैं। बुलंद आवाज और स्त्रियों के लोक गायन शायद साथ साथ नहीं चलते।

पर सुग्गी का दाल दलने का दृष्य बहुत भाया मुझे। गांवदेहात में भी अब ये दृष्य कम ही देखने को मिलते हैं।

पोस्ट अपडेट –

कौन सी उड़द दल रही थी सुग्गी? पता चला कि उड़द के पौधे पीटने के लिये उसने खलिहान की जमीन गोबर से लीपी थी। उसपर उड़द के पौधे पीटने के बाद जमीन पर जो झाड़न बची थी, उसकी उड़द निकाल कर वह दल रही थी। अर्थात यह जमीन पर गिरा बचा अन्न था। किसान कोई भी अनाज बरबाद नहीं जाने देता। यह लगभग छ किलो उड़द थी।

मैं उसकी मेहनत का मोल लगाऊं तो यह उड़द – अंत की मिट्टी में गिरी/सनी उड़द 4-5सौ रुपये किलो की होगी। पर इस मेहनत का कौन लगाये हिसाब? कौन लगाये मोल? सुग्गी ने गाना नहीं गाया। पर यह श्रम गीत से कम नहीं है!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

2 thoughts on “उड़द दल रही है सुग्गी; पर गीत गाना नहीं आता

  1. ये नयी तरह की चक्की देखी मैंने! हमारे यहाँ जो होती है उसमें अनाज डालने की जगह ठीक बीचों बीच होती है, धुरी पर ही !

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    1. यह दाल दलने के लिए है. चकरी. चक्की नहीं. आटा चक्की में वैसा ही होता है जैसा आपने कहा.

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