एक बोतल पानी, दो कुर्सियाँ जोड़ कर उनपर अधलेटा शरीर। मोबाइल पर चलता कोई पॉडकास्ट या गाना। घर में धूप खूब आती है और उसमें बैठने-लेटने का बहुत आनंद है। श्रीमती जी जब वहां गयीं तो पैरों मे मोजे पहने हुये थे। धूप की गर्मी में वे उतार कर पास की एक कुर्सी पर रख दिये।

एक दो घण्टे बाद जब मोजे देखे तो एक पैर का गायब था। कौन ले जायेगा? कौन कौन आया था घर में? पीछे अरहर के खेत में घास छीलने वाली स्त्रियां आती हैं। उनमें से कोई ले गयी? पर लेना भी होगा तो एक पैर का काहे ले जायेगी?
“फुआ, दूसरे पैर का वहीं रहने दें। जो एक पैर का ले गया है उसे कम से कम दोनो पैर का मिल जाये!” – घर में बर्तन मांजने वाली ने ठिठोली की।
“चेखुरा (गिलहरी) लई ग होये। सर्दी में ओन्हने खोथा बनवथीं। (सर्दी में वे अपना घर बनाती हैं।)” – दूसरी ने अपना कयास लगाया। खोथा बनाने की सम्भावित जगहें तलाशी गयीं पर मोजा कहीं नहीं मिला। एक पैर का मोजा घर में पड़ा रहा।
अगले दिन काम करने वाली ने चिल्ला कर कहा – होवा बा! (वहां है!)

सागौन के पेड़ के ऊपर एक गिलहरी दम्पति उसे ऊपर की ओर खींच रहे थे। वे हटाने पर आसपास चींचीं करते रहे, मानो उनकी सम्पत्ति हो और हम उसे जबरी हथियाने जा रहे हों। पेड़ के पास एक प्लास्टिक की कुर्सी पर चढ़ कर एक टहनी से पत्नी जी ने जुराब खींच कर पेड़ की पत्तियों से अलग की। उसमें छेद बना दिये थे गिलहरी ने। उसके बच्चों या उसे गर्माहट देने वाली तो होगी वह, पर हमारे किसी काम की नहीं थी। छेद छोटा नहीं था कि रफू कर काम चलाया जा सके। उसे वहीं पेड़ पर छोड़ दिया गया – गिलहरी के प्रयोग के लिये। अभी दूसरी जुराब भी वहीं ले जा कर छोड़ देने पर विचार चल रहा है! 😆

पांच साल पहले जब यहां खेत में हमने घर बनाया था तो एक ही पेड़ था। उसपर चार पांच गिलहरियां रहती थीं। फिर पेड़ बढ़े। वनस्पति और लतायें बढ़ीं। गिलहरियों और चिड़ियों के लिये पानी और अन्न रखा जाने लगा। अब घर भर में तीन चार दर्जन गिलहरियां और एक दर्जन किस्म के पक्षी रहते हैं। उनके घोंसले भी दिख जाते हैं।
उस दिन माधवी लता की छंटाई करने के लिये माली जी गये तो एक छोटी मुनिया जैसी चिड़िया इतना चिल्लाई कि छंटाई का विचार त्याग दिया रामसेवक ने। देखा तो उसमें एक घोंसला पाया। ऐसे घोंसले घर में अप्रत्याशित स्थानों पर पाये जाये हैं। मुनिया, गौरय्या, बुलबुल और अब बया भी घोंसले लगा रही हैं हमारे परिसर में। चरखी और चेखुरा (गिलहरी) बहुतायत से हैं। वे यहां के मूल निवासी हैं। गिरगिट, उल्लू, कबूतर और नेवले भी आते जाते रहते हैं।

मेढ़क और सांप भी किसिम किसिम के हैं। एक छोटा मेढ़क तो दीवार पर चढ़ने में महारत रखता है। एक रात एक सांप तो टूटी जाली से स्नानघर में चला आया था। वह तो भला हो कि रात में लघुशंका के लिये जाने पर उसपर पहले नजर पड़ गयी। न चाहते हुये भी उसे मारना पड़ा। उसे पकड़ने की तकनीक अगर आती होती तो उसकी जान बच जाती।

इन सब जीवों में गिलहरियां और चरखियाँ सबसे ढीठ और चोर हैं। अन्न सूखने के लिये धूप में डाला जाये तो ये दोनो बहुत खा जाते हैं और खाने से ज्यादा जमीन पर गिरा कर बरबाद करते हैं। फिर चींटियां उन्हे ढ़ो कर ले जाती हैं। क्या करें; गांव में रह रहे हैं तो इनकी संगत में रहना ही है।
और अब तो इनकी संगत में रहना अच्छा भी लगता है! 😆

कागज में बेशक जमीन आपके नाम है पर इन जंतुओं को वे कागज़ पढ़ने नहीं आते ! सो उनके हिसाब से आप ही ने उनकी जमीन दखल की है ! और चूंकि उनकी वजह से आपका दिन भर मनोरंजन हो रहा है तो इतना मुआवजा तो बनता है!
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सही कहा आपने!
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पांडे जी , आप वाकई मे बहुत महत्वपूर्ण कार्य कर रहे है / वन्य जीव शहरों मे दिखाई नहीं देते / छिपकिली या चूहे या दीमक हमारे घरों मे दिखाई देते है / कभी कभी चींटी और चींटा शक्कर के डिब्बे मे दिखाई पड़ते है / कौवा और चिड़िया और बंदर गायब हो गए है / पहले गाए सड़क पर दिखाई पड़ जाती थी पर अब गली के कुत्ते ही दिखाई देते है / आपने वन्य जीवों को आश्रय देकर बहुत पुण्य का कार्य किया है / सनातन परंपरा मे तो प्रकृति सबसे पहले स्मरण करते है / ये वन्य जीव आपको बहुत कुछ करके व्यस्त रखेंगे / पक्षी शास्त्री सलीम अली , जिनको किसी भी तरह का ज्ञान नहीं था , वे यही सब देखते देखते पक्षी-विज्ञानी का दर्जा प्राप्त कर गए /
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धन्यवाद वाजपेयी जी!
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