बेल पके से चिरई के का लाभ?

गांव में होने का यह लाभ तो है कि दूध अच्छा मिल जाता है। पांच साल से ज्यादा हो गया मन्ना से दूध लेते लेते।

मन्ना के यहां से रोज दूध लेने मेरा बेटा जाता था। कल उसका परिवार शिवकुटी, प्रयागराज शिफ्ट कर दिया।


चिन्ना पांड़े (मेरी पोती) अब साढ़े सात साल की हो गयी है। उसकी पढ़ाई का विचार मन में था। कोरोना संक्रमण काल में मैंने उसे पढ़ाने के प्रयोग किये। पर लोगों ने कहा कि एक अच्छे स्कूल का कोई विकल्प नहीं। उसे मिलने वाले वातावरण की भरपाई बाबा-पोती का इण्टरेक्शन नहीं कर सकता। काफी चर्चा हुई घर में। अंतत: मैंने अपने प्रयोग करने की बजाय लड़के-बहू और चिन्ना (पद्मजा) को शिवकुटी (प्रयागराज) शिफ्ट कर दिया। स्कूल का अगला सत्र वहां ज्वाइन होगा।

चिड़ियाँ गांव से उड़ गयीं। हम लोग – मेरी पत्नी और मैं, अब अपने को गांव में अपने हिसाब से व्यवस्थित करेंगे। गांव से प्रयागराज जाते आते रहेंगे। महीने में एक दो चक्कर लगेंगे ही।

Wood Apple Fruit
बेल फल। Wood Apple. By Seisfeldt at English Wikipedia https://commons.wikimedia.org/w/index.php?curid=8711348

ज्ञानेंद्र (मेरा बेटा) अपने परिवार के साथ अब प्रयागराज चला गया है तो आज दूध लेने मैं गया। जब तक भुजाली (डेयरी में काम करने वाला भृत्य) दूध दे रहा था; देवेंद्र भाई (मन्ना दुबे के सबसे बड़े भाई साहब) से इधर उधर की बात हुई। उन्होने एक कहावत कही – “अब यह तो है कि बेल पके से चिरई को क्या लाभ?”

बेल (wood apple) का फल अंदर से तो मीठा होता है पर उसका खोल बहुत कड़ा होता है। चिड़िया के ठोर मारने से उसमें सुराख नहीं हो सकता। कठफोड़वा शायद सुराख कर सके; पर कठफोड़वा तो कीड़े खाता है, फल नहीं।

चिन्ना और उसके माता पिता चिड़िया हैं। बेल गांव है। बेल में बहुत गुण हैं। मीठा है, शीतलता है। स्वास्थ्य के लिये आयुर्वेद बहुत कुछ बताता है बेल में। पर चिड़िया को बेल से क्या लाभ?

पांच साल से परिवार गांव में एक जगह था। बहुत अच्छा समय था। पर समय सदा स्थिर तो नहीं रहता। बदला समय और अच्छा होगा; यह सोचा जाना चाहिये। अनेकानेक फल हैं इस सुंदर दुनियाँ में। चिड़ियों को वे फल मिलने चाहियें। केवल बेल का लालच दिखा कर उन्हें रोके रहना उचित नहीं।

आज पहला डेल्हिया खिला है। पद्मजा यहां होती तो देख बहुत खुश होती।

आज घर में पहला डेल्हिया खिला है। पद्मजा यहां होती तो देख बहुत खुश होती। अभी तो वह फोन पर कह रही है – दादी-बाबा, अपना ख्याल रखना!

सच है, बेल पक भी जाये तो चिड़िया के किस काम का?!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

10 thoughts on “बेल पके से चिरई के का लाभ?

  1. लगता है आपने ऐसे मुकाम और अवसर अभी झेले नहीं है ? ये जीवन है पांडे जी / यही जीवन के रंग है / हर रंग मे मस्त रहिए / किसी रंग मे खो जाएंगे तो यही रंग अपने रंग मे रंग डालेगा / आपने अपने बच्चों का भविष्य सम्हाला अपने तरीके से , अब बच्चों को अपने बच्चों का क्या करना है उन पर छोड़िए और ऐसे ही लिखते रहिए और हगं सबका ज्ञान बढ़ाइए / ज्यादा भावुक होने की जरूरत नहीं है

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  2. मन में धैर्य धरें। चिन्ना बिटिया पढ़ने गयी है। आप के भी जाने को मिलता रहेगा। गंगा के एक नहीं दो तट मिलेंगे आपको। बहुत पहले अपनी बिटिया के लिये एक कविता लिखी थी।
    निर्बन्धा हो, खुला विश्व-नभ, पंख लगा लो, उड़ा करो,
    मेरी बिटिया पढ़ा करो।

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  3. बहुत ह्रदय स्पर्शी लेख लगा। सचमुच समय के साथ चलना व्यवहारिक है ।
    आपके लेख निर्मल वर्मा की कथाओं और आत्म वृत्तांतों की याद दिलाते हैं। हम भी इन के द्वारा भारत की मिट्टी से जुड़ पाते हैं। 🙏

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  4. चिड़िया जब उड़ने योग्य हो जाती है, तो अपनी उड़ान की दिशा और राह बदल ही जाती हैं।

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