स्टेटस- आनंदा का डबल टोण्ड दूध मिलने लगा

आनंदा के डबल टोण्ड दूध का पाउच

कुछ दिन पहले आनंदा डेयरी के एग्जीक्यूटिव चंदन ठाकुर जी से मुलाकात हुई थी। उन्होने मुझे भरोसा दिलाया था कि एक दो दिन में सुरेंद्र कुमार यादव जी के रीटेल आउटलेट पर मुझे टोण्ड दूध (क्रीमलेस) उपलब्ध हो जायेगा।

और उनकेे कहे अनुसार इंतजाम हो गया। मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि व्यवसायिक मामलों में शहरों में किसी व्यवस्था को बनाना सरल होता है। गांवदेहात में ऐसा कुछ नया कायम करना, नया सिस्टम चलाना बहुत कठिन होता है। पहले दिन सिस्टम एक्टीवेट ही नहीं हुआ। रात दो तीन बजे डेयरी के कानपुर प्लाण्ट से चली सप्लाई की गाड़ी नित्य आती है। उसी से दिन भर की सप्लाई विभिन्न एजेंसियों को मिलती है। सुरेंद्र जी के यहां उतारने वालों ने टोण्ड मिल्क उतारा ही नहीं। यह बावजूद इसके कि चंदन जी चेज कर रहे थे। खैर अगले दिन मामला सलट गया। अढ़तालीस घण्टे बाद से रोजाना दूध के 250मिली के चार पैकेट मुझे मिलने लगे। चालीस रुपये में एक लीटर।


सुरेंद्र जी के यहां मेरे प्रति रिसेप्टिविटी में भी बहुत परिवर्तन हुआ। अब सुरेंद्र मेरे मित्र हैं। आनंदा के विभिन्न उत्पादों की उपलब्धता उनकी दुकान पर होती है। सुरेंद्र जी केवल रीटेल आउटलेट वाले नहीं हैं। इस इलाके के वे आनंदा के एजेण्ट भी हैं। सभी रीटेल दुकानदार उन्ही से सप्लाई लेते हैं।

उनकी दुकान पर जाता हूं तो इधर उधर की हल्की-फुल्की बात भी होने लगी है।

सुरेंद्र कुमार यादव

सुरेंद्र जी का बेटा – लकी – भी सवेरे दुकान पर मिलता है। वह मुझे गुडमॉर्निंग कर अभिवादन करता है। उसका एडमीशन यूकेजी में कराया था, पर साल भर स्कूल चला ही नहीं। अब भी कोरोना के बढ़े मामलों के कारण खुलने की सम्भावना नहीं है। सुरेंद्र जी ने उसके लिये एक ट्यूटर रखा है। वे सज्जन एक दो घण्टा पढ़ाते हैं। “उससे यह तो है कि बच्चे को लगता है कि पढ़ाई जरूरी है।”

दुकान पर बैठे लकी यादव मुझे गुडमॉर्निंग कह अभिवादन करते हैं।

कोरोना संक्रमण को ले कर सुरेंद्र जी बोलते हैं – “इतना बढ़ रहा है, पर चुनाव की गहमागहमी चल रही है बिना मास्क के। कल मैं उधर से आ रहा था। एक समारोह में भीड़ बेशुमार थी। एक किलोमीटर आगे पुलीस वाले मास्क चेक कर रहे थे। समारोह में चेक करने नहीं गये! सब लापरवाह हैंं।”


दूध की गुणवत्ता से मैं संतुष्ट हूं। चाय बहुत बढ़िया बनती है और दही भी अच्छी जमती है। पीने के लिये आजकल मैं दूध का प्रयोग नहीं कर रहा हूं। कभी मक्खन या घी की जरूरत होगी तो वह भी आनंदा के आउटलेट पर उपलब्ध है। मैंने गांव में दूध लेना बंद कर दिया है।

जो सज्जन फुलक्रीम, टोण्ड, डबल टोण्ड या स्किम्ड दूध के बारे में सही सही जानकारी नहीं रखते, उनके लिये यह नीचे दी गयी तालिका काम की हो सकती है –

मेरे लिये, जिसका बीएमआई 25 से ऊपर झूलता है और कमर 40 इंच से ज्यादा रह रही है, को न ऊर्जा की ज्यादा जरूरत है न वसा की। डबल टोण्ड दूध उस हिसाब से ठीक है।

इंस्टेण्ट इलायची चाय का सेचेट

इससे भी बेहतर तो शायद स्किम्ड मिल्क होता… और वैसे भी, कहते हैं कि दूध वात उत्पन्न करता है जो अर्थराइटिस के लिये ठीक नहीं है। … खैर भोजन और पौष्टिकता को ले कर अनेकानेक थ्योरियां हैं और हर दस साल पर पुरानी थ्योरी जंक करने की कोई स्टडी सामने आती है। पर, फिलहाल तो, अभी आनंदा का डबल टोण्ड दूध मुफीद लग रहा है।

सुरेंद्र जी के आनंदा आउटलेट (अवंतिका एण्टरप्राइज नाम है उसका) में आनंदा के और कई उत्पाद मिलते हैं। एक दिन मैं दही और रस्क ले कर आया। एक दिन सैचेट वाली इलायची की इंस्टेण्ट चाय। एक और दिन रबडी। उनका प्रोबायोटिक दही भी प्रयोग कर देखा है। जब तक ये नये नये उत्पादों के प्रयोग चलेंगे, तब तक खर्चा ज्यादा ही होगा! 😆

गांव में गाय का ताजा दूध लेने की बजाय डेयरी का डबल टोण्ड, पॉश्चराइज्ड दूध लेना शायद रूरल से रूरर्बन (rural+urban) बनने की दिशा में एक कदम है। कभी यह भी लगता है कि ग्रामीण व्यवस्था के प्रति संदेह/नकारात्मकता व्यक्त करना मेरी पर्सनालिटी में आ गया है। गांव में बहुत कुछ अच्छा है। और बहुत कुछ संकीर्ण भी है। उस सब को न स्वीकारने, न समझने और मुंहफट हो कर व्यक्त करने की अपनी कमजोरी के प्रति कभी कोफ्त भी होती है।

… वह कुढ़न छोड़ कर मात्र वर्तमान में जीना ही उपयुक्त है; बेहतर है, जीडी।

आनंदा की पंचलाइन है – आनंद करो! फिलहाल वही कर रहा हूं। 😆


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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

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