ओम प्रकाश यादव वाचमैन

उनके हाथ में लाठी होती है और एक पट्टे से दांयी ओर लटकती चार बैटरी वाली टॉर्च। नाम है ओमप्रकाश। ओमप्रकश यादव। यहां महराजगंज के सरदार ढाबा पर वे वाचमैनी करते हैं। दो साल पहले ढाबा अच्छा चला करता था। ढाबे वाला सरदार अच्छी तनख्वाह देता था। ढाबे के दोनो ओर और हाईवे के उसपार भी बहुत से ट्रक वाले रात में वहां खाना खाते थे और रात्रि विश्राम भी करते थे। उन ट्रकों की वाचमैनी भी किया करते थे। ट्रक वाले सुरक्षा और भोजन दोनो पाते थे ढाबे पर। खूब चलता था ढाबा। कभी कभी तो मेरी सवेरे की सैर में दो तीन दर्जन ट्रक वहां आसपास पार्क किये नजर आते थे। उनकी उपस्थिति बताती थी कि सरदार सर्विस भी अच्छी देता था और ओमप्रकाश उनके माल-असबाब की सुरक्षा भी अच्छे से करते थे।

ओम प्रकाश यादव

ओम प्रकाश ने तब मुझसे बताया था कि वो अपने काम में मुस्तैद रहते हैं। कभी रात में बैठते नहीं और झपकी तो लेने का सवाल ही नहीं होता। इसी लिये सरदार ढाबे के मालिक ने उनका चयन किया था।

ढाबा अच्छा चलता था। वहां ओमप्रकाश को तनख्वाह ठीक मिलती थी और भोजन नाश्ता तो ढाबा होने के कारण मिल ही जाता था। सवेरे सात बजे मेरे साइकिल भ्रमण के दौरान ओमप्रकाश अक्सर दिख जाते थे। उनके छोटे कद, लाठी और टॉर्च के कारण मेरे मन में कौतूहल होता था। तभी उनसे बातचीत भी की थी। उन्होने बताया कि इण्टवा गांव के रहने वाले हैं वे। वह तीन किलोमीटर दूर है। मेरे बारे में जानने पर ओमप्रकाश प्रणाम पैलगी भी करने लगे थे।

ढाबा वाले के साथ किसी ग्राहक से मारपीट हो गयी। मारपीट में ग्राहक मर भी गया। यहीं पास में माधोसिन्ह का रहने वाला था वह। पुलीस आयी और ढाबे को बंद करा दिया गया। शायद तोड़ फोड़ भी हुई। लम्बे अर्से तक ढाबा बंद रहा। वहां जो ट्रक वालों की रौनक हुआ करती थी, वह वीरानी में बदल गयी। सुनने में यह आया कि अब कभी ढाबा चल नहीं सकेगा। करीब दो साल बंद रहा ढाबा। पर शायद उसे किसी और ने खरीद लिया और अब फिर सरदार ढाबा के नाम से ही चलाने लगा है। ग्राहकी बहुत कम हो गयी है। फिर भी कुछ गतिविधि नजर आने लगी है।

सरदार ढाबे पर बैठे ओमप्रकाश यादव

एक दिन अचानक ढाबे के बाहर ओमप्रकाश कुरसी पर बैठे दिख गये। हाथ में लाठी थी। मैंने उनका हालचाल पूछा। बताया कि अब फिर से ढाबा चालू होने पर वे आ गये हैं। बीच के समय में घर पर ही थे। और कोई काम नहीं था। अब तनख्वाह के रूप में कुछ कम मिलता है। पर ट्रक वाले, भले ही खाना नहीं खाते ढाबे पर, रात में आराम के लिये आसपास रुकने लगे हैं। अधिकतर वे अपना खाना खुद बनाते हैं। पर उनके ट्रकों की देखभाल का काम करते हैं ओमप्रकाश। बदले में ट्रक वाले उन्हें कुछ टिप दे देते हैं। सरदार ढाबा – ट्रक वाले – ओमप्रकाश का यह सुविधाजनक त्रिकोण एक ऐसा इंतजाम है जो शायद आगे चलता रहेगा। इन सबके मूल में ओमप्रकाश की वाचमैनी की दक्षता और ईमानदारी है। वह होने पर आदमी को काम मिल ही जाता है, देर सबेर।

ओम प्रकाश यादव वाचमैन

मैं ओमप्रकाश के प्रति सद्भाव रखता हूं। आते जाते जब भी वे दिख जाते हैं तो अपनी साइकिल रोक कर उनका हालचाल पूछ लेता हूं। गांवदेहात में पचीस पचास लोग जिन्हें मैं जानने लगा हूं, उनमें ही हैं ओमप्रकाश। मेरी दिल से इच्छा है कि ओमप्रकाश का काम चलता रहे। फिर कभी ढाबा बंद होने या खाली बैठने की नौबत न आये।

सरदार ढाबा, जो भी चलाता है, चले!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

2 thoughts on “ओम प्रकाश यादव वाचमैन

    1. मैने – जीडीपी – ने तो जोड़ ही लिया है। सरकारी जीडीपी में तो शायद ही जुड़े। :)

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