सामुदायिक शौचालय – शोचालय

सवेरे लेवल क्रासिंग गेट पर रुकना पड़ता है। ट्रेन आ रही है। साइकिल गेट बूम के नीचे से निकाल कर पार होने की मनाही है आत्मनियंत्रण के नियम से। रेलवे की जिंदगी भर लेवल क्रासिंग गेट अनुशासन पर जोर दिया है तो अब अपने को दूसरी ओर पा कर उसका उल्लंघन करूं, यह सही नहीं लगता।

ट्रेन आने में देर हुई। लगता है कुछ जल्दी ही बंद कर दिया गेट। या फिर मालगाड़ी ठीक रफ्तार से नहीं आ रही। इस दौरान करीब दस लोग ऐसे गुजरे पास से जो प्लास्टिक की बोतल, लोटा या किसी डिब्बे में पानी लिये थे। वे जा रहे थे सवेरे निपटान के लिये। निपटान के लिये बरसात के मौसम में रेल की पटरी के बगल में बैठना सबसे मुफीद रहता है। उनमें से करीब आधा दर्जन लोगों ने मुझसे जीजा पालागी, फूफा पालागी, चच्चा परनाम किया। सब का नमस्कार कर जवाब भी दिया मैंने। किसी से ओपन एयर डीफेकेशन पर बात नहीं की। यह तो बहुत सामान्य सर्वमान्य कृत्य है। उसपर क्या टोकना?

इस दौरान करीब दस लोग ऐसे गुजरे पास से जो प्लास्टिक की बोतल, लोटा या किसी डिब्बे में पानी लिये थे। वे जा रहे थे सवेरे निपटान के लिये।

अधिकांश लोग बीपीएल की जद में हैं। लगभग सभी को सरकार ने आवास दिये हैं। किसी किसी ने दो आवास भी पा लिये हैं परिवार को दो भाग में दिखा कर। और हर एक को शौचालय भी मिल गया है। पर जाते सभी बाहर ही हैं शौच के लिये।

सरकार ने सफाई और शौचालय पर जो ध्यान दिया है, वह अभूतपूर्व है। पर उसका कोई फायदा दिखता नहीं।

अब एक नया उपक्रम नजर आता है। गांव गांव में सामुदायिक शौचालय बने हैं। जहां एक सफाईवाले का भी शायद प्रावधान है। मेरी एक फेसबुक पोस्ट पर एक टिप्पणी भी थी कि इस मद में तीन महीने के लिये अठारह हजार रुपये आये थे। जो मिलबांट कर बराबर हो गये। एक भी दिन सामुदायिक शौचालय नहीं खुला।

सामुदायिक शौचालय विक्रमपुर, ताले में बंद

सामुदायिक शौचालय में बहुत पैसा बरबाद हो रहा है। प्रधान से ले कर विधायक, सांसद और कहीं कहीं मुख्यमंत्री तक के नाम भी शिलापट्ट पर शोभित हो रहे हैं। पर किसी की भी रुचि इन्हें फंक्शनल करने की नहीं है।

सामुदायिक शौचालय ग्राम उमरहाँ, ताले में बंद

सवेरे साइकिल सैर के दौरान कई जगह नाक दबा कर या सड़क पर बिखरे ताजा शौच से बचते हुये निकलना होता है। आजकल जब खेतों में पानी लगा है, लोग सड़क या रेल की पटरी पर ही धावा बोले हुये हैं। वह तो सूरज निकलने के बाद ही साइकिल सैर में निकलता हूं, अन्यथा भोर में निकलूं तो सड़क के किनारे महिलायें भी गार्ड ऑफ ऑनर देते खड़ी हो जाती हैं। वह उनके लिये हो न हो, अपने लिये असमंजस की स्थिति बन जाती है।

और बच्चों का क्या कहा जाये। उनको तो वे लोग भी जो घर में बनाये शौचालय का प्रयोग करने लगे हैं, बाहर ही भेजते हैं बच्चों को। और बच्चे तो दिन में कभी भी सड़क किनारे बैठे दिख जाते हैं। कहीं कहीं तो माँ या दादी भी उनको शौच कराने ले कर निकली होती हैं। सार्वजनिक रूप से शौच करा कर उनका शरीर का नीचे का हिस्सा धोते और नेकर पहनाते दिखना आम है।

बच्चे तो दिन में कभी भी सड़क किनारे बैठे दिख जाते हैं

और इलाके होंगे देश के जहां फर्क पड़ा होगा स्वच्छ भारत मिशन से या ओपन डीफेकेशन मुक्त अभियान से; यहां तो कोई असर नहीं नजर आता। और पैसा बरबाद हो गया है, बेशुमार! :-(

अभी तक तो पांच साल में कोई विधायक या सांसद मुझे दिखा नहीं (आम आदमी के पास आने की उनको क्या जरूरत?!) पर अब चुनाव आने को हैं। अब शायद नजर आयें। अगर दिखे तो पूछने का मन है कि क्या किया आपने जी? इन सामुदायिक शौचालयों का सफेद हाथी बनाया पर वे एक भी दिन चले नहीं, उसको क्यौं नहीं देखा?

वैसे मुझे लगता है मेरे पास कोई आयेगा नहीं। उन्हें मेरे वोट की दरकार नहीं है। और जो वोट देते हैं; उनके लिये सामुदायिक शौचालय कोई मुद्दा है ही नहीं।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

2 thoughts on “सामुदायिक शौचालय – शोचालय

    1. सुना है इमर्जेंसी में जो कुछ/कई गलतियां हुई हों, पर लोग टिकट लेते थे और ट्रेनें समय पर चलती थीं…

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