बहुत सानदार फोटो घींचे हयअ यार!

बच्चे में, उससे पांच गुना ज्यादा उम्र वाले अजनबी के साथ बात करते, प्रश्न करते कोई संकोच, कोई झिझक नहीं थी।

“बहुत सानदार फोटो घींचे हयअ यार! … अरे ये तो हुंआ की फोटो है। और ये तो सिवाला की है। … केतने क मोबाइल हौ?”

मेरे घर से नेशनल हाईवे की सड़क पर पानी भरा था। उस पानी में साइकिल ढो कर जाने की बजाय मैंने बगल के इंजीनियरिंग वाले लेवल क्रॉसिंग गेट से गुजरते हुये लम्बा रास्ता चुना। संकरा रास्ता, आठ फुट का खड़ंजा, पर साइकिल के लिये तो ठीकठाक मार्ग। दोनो ओर धान के हरे भरे खेत थे जिनमें धान की बालें लग रही थीं। इस साल बारिश खूब हुई है और दलहन तो चौपट हो गयी, धान खूब लहलहा रहा है।

वह रास्ता कुछ महीने तक 200 मीटर के पैच में पगडण्डी से गुजरता था, अब वहां नये प्रधान ने खड़ंजा लगवा दिया है। इससे पूरा रास्ता पक्का हो गया है। पुराने खड़ंजे और नये की संधि पर रुक कर मैं चित्र खींच रहा था; यह दर्शाने के लिये कि खड़ंजा घास या खरपतवार को हटा कर बिछाया जाता है, पर घास अंततोगत्वा अपना वर्चस्व जमा ही लेती है!

Old and new khadanja
खड़ंजा घास या खरपतवार को हटा कर बिछाया जाता है, पर घास अंततोगत्वा अपना वर्चस्व जमा ही लेती है!

सामने से एक बालक आ रहा था साइकिल पर। जब तक मैं चित्र खींच कर चलने को हुआ तो वह समीप आ गया था। छोटा ही था। तेरह साल का होगा, उससे ज्यादा नहीं। अभी ही कैंची चलाने से प्रोमोट हो कर डण्डे पर साइकिल चलाना सीखा होगा। बोला – “फोटो घींचत रहे का? काहे?”

मैंने बताया कि नया खड़न्जा बना है उसकी फोटो ले रहा था।

“एके बने त बहुत दिना भवा। अबहीं देखे हयअ का? (इसको बने तो बहुत दिन हो गये। अभी देखा है क्या?)”

बच्चे में, उससे पांच गुना ज्यादा उम्र वाले अजनबी के साथ बात करते, प्रश्न करते कोई संकोच, कोई झिझक नहीं थी। मैंने उससे बात आगे बढ़ाई। उसने जिज्ञासा व्यक्त की फोटो देखने की। मैंने वह फोटो दिखाई और पहले की भी रास्ते में खींची फोटुयें भी।

“बहुत सानदार फोटो घींचे हयअ यार! … अरे ये तो हुंआ की फोटो है। और ये तो सिवाला की है। … केतने क मोबाइल हौ?” वह अपने आस पास की इस तरह के फोटुयें देख कर चमत्कृत था और जिज्ञासु भी।

तेरह साल का बच्चा, मुझ छियासठ साल वाले को यार कह कर सम्बोधित कर रहा था। मेरी बराबर वाले भी “पाण्डे जी” कहते हैं। आज मैं तेरह साल का बन गया! वैसा ही जैसा बारह तेरह साल के बच्चे गले में हाथ डाले चलते हैं। मैंने बताया कि मोबाइल बीस हजार का है।

“बहुत मस्त मोबाइल हौ, यार!” उसने मोबाइल के नीचे झुक कर कैमरा देखा – “एक दो तीन चार – यार एहमें त चार कैमरा हयेंन!”

“तुम जरा अपनी साइकिल के साथ खड़े हो जाओ, तुम्हारी भी फोटो ले लूं।”

वह अपनी फोटो के नाम पर जचक गया। पता नहीं क्या सोचा बिना कुछ बोले साइकिल चढ़ कर आगे भाग गया।

वह अपनी फोटो के नाम पर जचक गया। पता नहीं क्या सोचा बिना कुछ बोले साइकिल चढ़ कर आगे भाग गया। इतनी फुर्ती दिखाई कि मैं उसका केवल पीछा करता फोटो ही ले पाया।

मैंने सोचा – “जाओ यार। तुम बोल्ड भी हो और शर्मीले भी। तेरह साल की उम्र में मैं न इतना बोल्ड था, न शर्मीला। इन दोनो गुणों का ऐसा कॉम्बिनेशन मुझमें अब तक न आ पाया। और जितना कौतूहल, जितनी जिज्ञासा, जितना संकोचहीन खुलापन अपने से इतनी बड़ी उम्र के अजनबी आदमी के साथ दिखाया वह लोगों में देखने में आता नहीं। जियो मेरे यार!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

8 thoughts on “बहुत सानदार फोटो घींचे हयअ यार!

  1. संतोष मिश्र, फेसबुक पेज पर – फ़ोटो तो सचमुच बड़ी शानदार है।
    हरे भरे खेत।और बच्चे की भाषा पर कदाचित माहौल का असर है।बड़ो को कैसे संबोधित करना है किसी ने बताया नही होगा।

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