2 अक्तूबर 21, रात्रि –
प्रेम सागर पहले अपने संकल्प में, ज्योतिर्लिंगों तक येन केन प्रकरेण पंहुचने में अपनी कांवर यात्रा की सार्थकता मान रहे थे। अब वे (उत्तरोत्तर) यात्रा में हर जगह, हर नदी, पहाड़, झरने, पशु पक्षियों और लोगों में शिव के दर्शन करने लगे हैं।
अमेरा के वन विभाग के बंधु कह रहे थे कि वे देवरी के आगे भी कुण्डम तक प्रेमसागार का सामान पंहुचा देंगे और उन्हें सिर्फ कांवर ले कर ही चलना होगा। पर यह करने के लिये सवेरे अमेरा से देवरी तक आते और वहां से सामान ले कर पचीस किलोमीटर और चल कर कुण्डम पंहुचाते। प्रेम सागर को लगा कि यह तो लोगों को अपनी सुविधा के लिये ज्यादा ही असुविधा में डालना हुआ। उन्होने जी.के. साहू जी से मना कर दिया। सवेरे देवरी से थोड़ा देर से निकले – ज्यादा लम्बी यात्रा नहीं करनी थी। निकले तो अपनी कांवर और अपना पूरा सामान ले कर।
आठ बजे के आसपास चाय की दुकान पर बैठ कर उन्होने चित्र भेजे थे रास्ते के। वे कल एक कोलाज के रूप में पोस्ट कर चुका हूं। दुकान वाले का चित्र बाद में भेजा। चाय की दुकान वाला लम्बी नीली धारियों वाली कमीज पहने और ऊपर का एक बटन खुला रखे बड़ा जीवंत लगता है। इकहरे शरीर का सांवला सा नौजवान कैमरे की तरफ सावधान हो कर नहीं देख रहा है। उसके मुंह पर मुस्कान है और वह तिरछे कहीं देख रहा है। प्रेमसागर ब्लॉग के लिये जीवंत चित्र लेने का अनुशासन सीख गये हैं। और वे अपने को जितनी तेजी से बदल रहे हैं, उसे देख आश्चर्य होता है!

प्रेमसागर में आये बदलाव पर मैं प्रवीण दुबे जी से फोन पर बात कर रहा था। उनका भी कहना था कि प्रेमसागर के सोच और तकनीकी बदलाव के कारण उत्तरोत्तर उनके बारे में लेखन भी बदल रहा है। अब जानकारी और यात्रा के बारे में इम्प्रेशन बेहतर दर्ज हो रहे हैं। मसलन उनके द्वारा उडद की दंवाई करते बैलों के जीवंत चित्र को ब्लॉग से स्कीनशॉट ले कर उन्होने कई लोगों को फारवर्ड किया – यह कहते हुये कि प्रेमसागर वास्तविक मध्यप्रदेश, वास्तविक जीवन क्या है, वह दिखा रहे हैं अपनी यात्रा के जरीये।

रास्ते में दोनो ओर पहाड़ियाँ थीं। मिट्टी और पत्थर के टीलों पर उगे पेड़ और झाड़िया। विंध्य पर्वत बुढ़ा गया है और अगस्त्य मुनि के अंगूठे से दबने के बाद उत्तरोत्तर झर रहा है। उसे अब तक तो यकीन हो ही गया होगा कि कुम्भज ऋषि अब वापस आने वाले नहीं हैं। मैंने यह सोचने का प्रयास किया कि तीस चालीस किलोमीटर दक्षिण में सतपुड़ा को देख कर वह क्या कहता होगा? क्या दोनो आपस में कुछ कहते होंगे, या प्रतिस्पर्द्धा में मुंहफुलाये रहते होंगे! इण्टरनेट छानने पर तो विंध्य बड़ा पहाड़ है पर सतपुड़ा कहीं कहीं उसे लज्जित भी करता है!


यहीं उन्हें महानदी मिलीं। यह महानदी पूर्वी घाट के छत्तीसगढ़ के इलाके से निकली महानदी नहीं हैं जो बंगाल की खाड़ी में मिलती हैं और जिनके रास्ते में हीराकूद डैम है। इन महानदी को मैंने ट्रेस किया तो इनको बाण सागर में समाहित होते पाया। बाण सागर से आगे शोणभद्र निकलता है। इस प्रकार से ये सोन की ट्रिब्यूटरी होंगी। पर इनके बारे में जानकारी में मैं कोई अंतिम शब्द नहीं लिख रहा हूं।

महानदी पर बने पुल को देख कर नहीं लगता कि यहां इनका पाट बहुत चौड़ा होगा और अपने नाम को सार्थक पाती होंगी ‘महानदी’। आगे बाणसागर झील के पहले नदी जरूर हृष्ट-पुष्ट दिखती हैं गूगल मैप में। पर डिजिटल यात्रा बहुत कुछ बताने के साथ साथ बहुत से प्रश्न अनुत्तरित छोड़ देती है। मुझे लगता है कि प्रेमसागर किसी नदी को पार करें तो वे यह भी नोट करें कि जल का बहाव दांये से बायें है या बांये से दांये। इससे उसका उद्गम और गंतव्य ट्रेस करने में सहूलियत होगी। … फिर भी प्रेमसागर जितनी जानकारी दे रहे हैं और उसे उत्तरोत्तर बेहतर बनाये जा रहे हैं वह अभूतपूर्व है!

महानदी से प्रेमसागर पौने इग्यारह बजे गुजरे। एक पुल प्रेमसागर जी ने और पार किया तीन बजे के पहले। वह भी छोटा पुल है। शायद कोई बरसाती नाला हो। उसके जल का चित्र नहीं है। शायद रहा भी न हो, तेज वर्षा में भी जल नीचे से बहता हो।

यहां भी उसी प्रकार के वृक्ष और झाड़ियां हैं। कोई खेत-खलिहान नहीं। इस जगह अगर जमीन बिकाऊ हो तो जितना कीमत मेरे यहां भदोही जिले में एक बिस्से की हो, उतने में एक दो बीघा जमीन मिल जाये! हर जगह देख कर लगता है वहीं जा कर रहा जाये। महानदी के बगल में एक कुटिया बना कर रहने में कितना आनंद होगा! अपने नाम को स्थायी बनाने के लिये वहां एक शिवाला बनाया जाये – ज्ञानदत्तेश्वर महादेव! 😆
सांझ ढलने के पहले ही प्रेमसागर कुण्डम पंहुच गये। यहां वन विभाग के रेंजर साहब का दफ्तर है। साथ में आवास हैं और रेस्टहाउस भी। प्रेम सागर जी को रहने और भोजन की सुविधा मिल गयी। रेंजर साहब तो नहीं थे, डिप्टी साहब भी किसी काम में व्यस्त थे; उनसे बातचीत नहीं हो पाई। वहां के तीन लोगों के चित्र भेजे हैं प्रेमसागर ने – जिन्होने उनके लिये व्यवस्था की होगी। उनके नाम बताये हैं – लक्ष्मी मिश्र, भोलू जी और यादव जी। सांझ ढलने के बाद लिया चित्र अपने सही रंग में नहीं आ पाया है।

कल सवेरे प्रेम सागर जबलपुर के लिये रवाना होंगे। रास्ता लम्बा है – पैंतालीस किलोमीटर का। वे जल्दी ही रवाना होंगे। शायद भोर में, सूर्योदय होने के पहले ही। वे टेलीग्राम पर संदेश देते हैं कि सबेरे आठ बजे तक कल की यात्रा के प्रारम्भ की जानकारी दे पायेंगे। जल्दी निकलने के कारण कुण्डम के परिवेश के चित्र वे नहीं ले सकेंगे। वैसे प्रेमसागर को यह स्पष्ट हो गया है कि बहुत से चित्रों की बजाय बोलते चित्रों की आवश्यकता कहीं ज्यादा है। वे चित्र जो एक पैराग्राफ से ज्यादा, कहीं ज्यादा बोलते हों। … मैं डिजिटल ट्रेवलॉग के लिये प्रेमसागर से उत्तरोत्तर ज्यादा मांग करता जा रहा हूं और वे उसको पूरा करने में पूरा यत्न कर रहे हैं। मुख्य बात है कि इस सब को करने में उन्हें भी आनंद आ रहा है। प्रेम सागर पहले अपने संकल्प में, ज्योतिर्लिंगों तक येन केन प्रकरेण पंहुचने में अपनी कांवर यात्रा की सार्थकता मान रहे थे। अब वे (उत्तरोत्तर) यात्रा में हर जगह, हर नदी, पहाड़, झरने, पशु पक्षियों और लोगों में शिव के दर्शन करने लगे हैं। उनके दर्शन से पढ़ने वालों को भी हर कदम पर शिवानुभूति हो रही होगी!
आज यहीं तक। कल का विवरण अगली पोस्ट में। कल!
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
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अश्विन पण्ड्या फेसबुक पेज पर –
ज्ञानदत्तेश्वर महादेव I Jay Ho…
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नीतू आर पाण्डेय, फेसबुक पेज पर –
कण कण मे शिव यही है शायद ।।
🙏🙏।।
नया नामकरण आपका सही है सर ।
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अंशु दुबे, ट्विटर पर –
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शैलेंद्र झा, ट्विटर पर –
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मृत्युंजय पाठक ट्विटर पर –
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ज्ञानदत्तेश्वर महादेव की जय हो | 🙂 🙂
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हाहाहा! 😊
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प्रेमसागर जी मँझे हुये ब्लॉगर की तरह फ़ोटो दाग़ रहे हैं।
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हाहाहा. महीना दो महीना बाद अपना खुद का ब्लॉग न खोल लें! 😁
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