4 अक्तूबर 21, रात्रि –
प्रेमसागर एक दो दिन जबलपुर में गुजारेंगे। वे नर्मदा, उसके तट और उसके आसपास के धार्मिक स्थलों के दर्शन करेंगे। इस दौरान उनकी जांघ के घाव भी कुछ सूख जायेंगे। अमरकण्टक से जबलपुर तक वे नित्य चलते ही आ रहे हैं। सप्ताह में एक दिन तो लकड़हारे को भी अपनी कुल्हाड़ी की धार तेज करने में लगाना चाहिये।
मैंने जबलपुर नहीं देखा। रात में ट्रेन से गुजरा हूं कई बार और सोते सोते निकल गया हूं। रेल के हिसाब से जबलपुर की बजाय खमरिया या कटनी का नाम ज्यादा सुनता था – माल यातायात के कोण से वे ज्यादा महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन या यार्ड हैं। अब, प्रेम सागर की चेलाई करते हुये गूगल मैप पर वह ट्रेस कर रहा हूं। महादेव जो न करायें, वह थोड़ा! 😆
मैं जब भी किसी चित्र में किसी को प्रेमसागर को प्रणाम करते, या भाव देते देखता हूं; यहां तक कि वृहन्नलाओं के आशीर्वाद का चित्र देखते समय भी; तब यह सोचता हूं कि शंकर जी इस सरल व्यक्ति की परीक्षा लेने के लिये मन में अहंकार न दे दें। पर मैं यह नहीं देखता कि उनको असली ‘भाव’ तो मैं दे रहा हूं। ट्रेवलॉग लिखने के लिये उनसे छोटी छोटी बात जानना चाहता हूं। रास्ते में चाय की दुकान कैसी है, चायवाला कैसा लगता है, कोई जंगली जानवर दिखा, किसी ने नमस्कार किया, हालचाल पूछा, वन कर्मियों का परिवार उनके साथ रहता है या कहीं और, किसने उनके पैर छुये और किसने उपेक्षा की, रास्ते में उमस थी या बारिश, फसल कैसी है… अनेकानेक प्रश्न और उनपर प्रेमसागर के उत्तरों में यह भी तलाशता हूं कि नारद की तरह उन्हें भी कहीं घमण्ड छू तो नहीं कर गया। नारद का यह प्रसंग रामचरित मानस के बाल काण्ड में है जहां शंकर जी नारद के काम-विजय पर इतराने और अपनी सिद्धि बढ़ा चढ़ा कर बोलने पर कहते हैं कि जैसा मुझसे अपना “यश” सुनाया है वैसा हरि को न सुनाना।
पर नारद ने अपने गर्व के आगे शंकर जी को अनसुना कर दिया –
बार बार बिनवउँ मुनि तोहीं। जिमि यह कथा सुनायहु मोहीं॥ तिमि जनि हरिहि सुनावहु कबहूँ। चलेहुँ प्रसंग दुराएहुं तबहूँ॥ दो0-संभु दीन्ह उपदेस हित नहिं नारदहि सोहान। भारद्वाज कौतुक सुनहु हरि इच्छा बलवान॥127 बालकाण्ड॥ |
प्रेमसागर अपने जीवन की सार्थकता तलाश रहे हैं। उसी की तलाश में चलते चले जा रहे हैं। पर यह सार्थकता तलाशते तलाशते किसी मुकाम पर सफलता और शोहरत न तलाशने लग जायें – इसका मुझे भय है। आखिर मैं अपनी जीवन की पहली पारी में सफलता के पीछे ही दौड़ता रहा हूं; सार्थकता तो अब तलाश रहा हूं – अगियाबीर के टीले पर, किसी लुहार, किसी नाऊ, किसी बच्चे की संगत में या प्रेमसागर की यात्रा में। प्रेमसागर भी ज्योतिर्लिंगों को अर्ध्य देने में सार्थकता ही ढूंढें; सफलता की राजसिक ताजपोशी नहीं।
मेरी पत्नीजी कहती हैं कि मैं प्रेमसागरमय हो गया हूं। सोते जागते ब्लॉग पर उनके बारे में लिखने संवारने में ही लगा रहता हूं। पर शायद वह मेरी प्रवृत्ति है। जिसमें मन लगता है तो पूरी तरह लगता है और उचटता है तो उस ओर देखने को मन नहीं करता। यह दोष गहरा है।
खैर, आज के वृत्तांत पर आता हूं। प्रेमसागर एक दो दिन जबलपुर में गुजारेंगे। वे नर्मदा, उसके तट और उसके आसपास के धार्मिक स्थलों के दर्शन करेंगे। इस दौरान उनकी जांघ के घाव भी कुछ सूख जायेंगे। अमरकण्टक से जबलपुर तक वे नित्य चलते ही आ रहे हैं। सप्ताह में एक दिन तो लकड़हारे को भी अपनी कुल्हाड़ी की धार तेज करने में लगाना चाहिये।
आज वे ग्वारीघाट गये। नर्मदा यहां समृद्ध जलराशि वाली नदी हैं। मैकल की शिशु कन्या नहीं, पूर्णत सौंदर्यवती नवयुवती। अभी उन्हें भेड़ाघाट की नीचे उतरने की छलांग लगानी है अत: नवयुवती ही होना है। प्रौढ़ा तो उछलकूद नहीं कर सकती। वह कूदेगी नहीं, अगल बगल से रास्ता तलाशेगी और उसमें बहुत कुछ इधर उधर हो जायेगा!

ग्वारीघाट की जलराशि के चित्र मनमोहक हैं।

दक्षिणी घाट पर एक सफेद रंग का गुरुद्वारा है। बांई ओर एक चौड़ा घाट बना है। सीढ़िया हैं। दक्षिणी तट पर भीड़ कम होती होगी। शहर तो उत्तरी घाट पर है। ग्वारीघाट शायद उत्तरी घाट को ही कहा जाता है।
आशीष जी उन्हें नौकाविहार पर ले गये। उन्हें कई मंदिर भी दिखाये – गुप्तेश्वर महादेव; रामलला का मंदिर, इच्छापूर्ति वाले हनुमान जी (बोर्ड पर लिखा है अर्जी वाले हनुमान जी); बड़े बड़े चूहों और हाथियों के द्वारपाल वाले गणेश जी और शनि भगवान के मंदिर आदि। प्रेमसागर ने बताया कि अर्जी वाले हनुमान जी के पास अर्जी डालने की एक पेटिका भी रखी है। पता नहीं उस अर्जी की पेटी को कौन खोलता होगा और उनको प्रॉपर डिस्पोजल करता होता या डीडीटी (Direct Disposal by Tearing) करता होगा! और प्रॉपर डिस्पोजल क्या होता है? हनुमान जी की प्रतिमा के सामने अर्जी को पढ़ कर सुनाना? शायद यही होता हो। डीडीटी करते होते तो अब तक कोई मीडिया वाला खबर छाप चुका होता – अर्जी वाले स्कैण्डल की! 😆
वे सभी स्थान वन विभाग के परिसर से एक ही सीध में दक्षिण की ओर पड़ते हैं। नक्शे में करीब दस-बारह किलोमीटर का रास्ता होगा। शाम के समय प्रेमसागर जी से बात करता हूं तो वे किसी और मंदिर देखने जाने की जल्दी में थे। वाहन आ चुका था। उन्होने बताया कि गंतव्य पर पंहुच कर मुझे वीडियो कॉल करेंगे। पर उस कॉल की न मुझे प्रतीक्षा थी, न वे कर पाये। मैं अपनी पत्नीजी के साथ मानस पाठ में लग गया और वे स्थानों-मंदिरों को देखने चित्र खींचने में लग गये होंगे। दोनो अपने अपने प्रकार से जीवन में रस ले रहे थे!
(मंदिरों के चित्रों का स्लाइड-शो)
दोपहर के समय का प्रेमसागर ने एक ग्रुप फोटो भेजा। वन विभाग के लोगों के परिवारों के साथ लॉन में खड़े हैं प्रेमसागर। करीब दस आदमी, उनमें से कुछ की पत्नियां और दो बच्चे। सब के लिये प्रेमसागर की लम्बी पदयात्रा के प्रति कौतूहल और आदर उनके पास ले आया होगा। कुछ लोगों ने उनसे आशीर्वाद भी मांगा होगा। यह सोच कर अच्छा लगता है। पर यह सोच कर भय(?) भी लगता है कि प्रेमसागर आशीर्वाद-बांटक-बाबा बन कर ही न रह जायें। जीवन की सार्थकता का ध्येय उससे कहीं बड़ा, कहीं ज्यादा व्यापक है। वह शायद जितना ज्योतिर्लिंगों पर जल चढ़ाने में है; उतना ही इन सब में शिव को देखने-अनुभव करने में है! … सर्वजन रूपम शिवोहम शिवोहम!

कल प्रेमसागर जबलपुर के और भी स्थान देखेंगे। जबलपुर के बारे में वे कहते हैं कि बड़ा अनूठा और पवित्र जगह है। बड़े बड़े सिद्ध महात्मा यहां आ कर तपस्या किये हैं। … अपने अपने देखने की दृष्टि! वे पुराने सिद्ध महात्मा देख रहे हैं, लोग जबलपुर का टूरिज्म, आधुनिकता और विकास नोट करते होंगे। अब देखते हैं कल क्या दिखता है? कल क्या भेजते हैं टेलीग्राम एप्प पर प्रेमसागर! आज इतना भर।
नर्मदे हर! हर हर महादेव!
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
आप कृपया ब्लॉग, फेसबुक पेज और ट्विटर हेण्डल को सब्स्क्राइब कर लें आगे की द्वादश ज्योतिर्लिंग पदयात्रा की जानकारी के लिये। ब्लॉग – मानसिक हलचल ट्विटर हैण्डल – GYANDUTT फेसबुक पेज – gyanfb |
प्रेमसागर जी को अब कबीर की जरुरत है बहोत कठिन है संभालना जिस तरह से लोग उनके आगे पीछे घूम रहे है देखिये कितने दिन मन को सावधान रखते है |
हिरना समझ बुझ बन चरना ।
एक बन चरना, दुजे बन चरना, तिजे बन नहीं तू चरना ॥ १॥`
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महादेव में उनकी अटूट श्रद्धा ही उन्हें पार कराएगी. वे ही करेंगे और रखेंगे मन संयमित. उन महादेव पर हमें भी विश्वास रखना है!
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उनका सहज मुख देख कर लगता है कि उन्हें अहं न आयेगा। शिवभक्त शिवमय हो जाते हैं। नारदजी की तरह परीक्षा लेनी होती तो शिवजी उन्हें पहले ही मना कर चुके होते। यहाँ तो शिवजी ने उन्हें अपना लिया है।
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मैं भी उनकी सहजता पर गांव लगा रहा हूं। इतना समय, इतनी लेखकीय ऊर्जा उनके ऊपर लगाई है कि उनके अहंकार को अगर देखा तो बहुत मोहभंग होगा!
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Good afternoon sir, could I get Mr Premsagar’s mobile no? Some Railway friends of mine, posted at Jabalpur, want to meet him.
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I’ll reply on your email address.
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