18 अक्तूबर 21, सवेरे –
कल सवेरे वन विभाग के रेस्ट हाउस परिसर की नर्सरी देख कर कई चित्र भेजे प्रेमसागर ने। उनका मूल ध्येय मुझे सूचना देना था। वन की वनस्पति, जीव जंतुओं और चिड़ियों के बड़े बड़े होर्डिंग लगे हैं। शायद वहां शहर या पर्यटक आते हों। उनकी जानकारी के लिये अच्छी बातें हैं होर्डिंग्स में। गौरय्या, मकड़ी, बया, सर्प दंश, शेर, दीमक … अनेकानेक जीवों की जानकारी है उनमें।

प्रेमसागर का समय धर्म और उसके इर्दगिर्द की जानकारी में ज्यादा लगता है। वे कल मंदिरों के दर्शन की बात कर रहे थे। कुछ मंदिरों के नाम भी लिये, जो आसपास हैं। मुझे उनके बारे में याद नहीं है चूंकि मेरी वासना उस ओर नहीं है। जाने कब भवसागर से विरक्ति का भाव मुझमें आयेगा और यह ब्लॉग-श्लॉग छोड़ कर मैं जप-ध्यान-मनन और मंदिरों के चक्कर में अपना समय देने लगूंगा। फिलहाल मेरे लिये ईश्वर सरलता से जीने और ईश्वरीय सौंदर्य – जो आसपास दिखता है – को अभिव्यक्त करना मुझे ज्यादा महत्वपूर्ण लगता है।
प्रेमसागर मंदिरों के दर्शन को जा नहीं पाये। दिन भर बारिश होती रही। बारिश थी और रविवार का दिन; सो लॉजिस्टिक की भी समस्या रही। वाहन तो बहुत से खड़े थे, पर उन्हें चलाने वाले ड्राइवर लोग नहीं आ पाये थे। दिन भर कहीं निकले नहीं। “अब वापसी में भोपाल आऊंगा, तब देखूंगा मंदिरों को।” मैं यह कथन समझ नहीं पाता। प्रेमसागर की द्वादश ज्योतिर्लिंग पद यात्रा तो फारवर्ड यात्रा है। एक से दूसरे ज्योतिर्लिंग को छूने की। उसमें यह वापस आने की बाद कैसे फिट होती है। खैर, अपनी बात वे जानें। फिलहाल उन्हें भोपाल से उज्जैन को निकलना है। कल तो कोई मूवमेण्ट नहीं हुआ। उन्होने अपनी लोकेशन शेयर करने का जो लिंक दिया था, वह एक ही स्थान बताता रहा।
आज सवेरे चार बजे से ही प्रेमसागर तैयार बैठे हैं पर बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही। आष्टा पंहुचने का तय हुआ था। प्रेमसागर के हिसाब से वह 50-55 किलोमीटर है। मेरे पास गूगल मैप की जानकारी के अनुसार वह 87 किलोमीटर दूर है। बीच में कोई रुकने का स्थान बन नहीं पाया। और आज आठ बजे तक तो निकल भी नहीं सके। आष्टा तक पंहुचना सम्भव ही नहीं लगता, चाहे वे सड़क छोड़ कर एक सीधी लकीर खींच कर भी वन विभाग के रेस्ट हाउस से वहां जाने की सोचें।
“अब तक कभी कितना अधिकतम चले हैं एक दिन में?”
प्रेमसागर का ऐसी बात का उत्तर ‘मोटा-मोटी’ से शुरू होता है। उनके कुछ तकिया कलाम हैं। मोटा-मोटी के अलावा जो बहुत ज्यादा प्रयोग होता है, वह है – “फिर-जो”। यह फिर-जो इतना घिस गया है कि वह ‘फिन-जे’ या ‘फिंजे’ सुनाई पड़ता है। कोई व्यक्ति अपने तकिया कलाम के बारे में कभी सजग नहीं होता। अगर हो जाये तो वह तकिया कलाम बन ही न पाये। मेरे नाना जी का तकिया कलाम था – जौन बाटई, तौन बाटई (जोहै सो है)। और वे हर वाक्य के अदि-मध्य-अंत में इतना जौन बाटई, तौन बाटई बोलते थे कि सुनने वाला मूल कथ्य भूल ही जाता था। 😆
प्रेमसागर ने उत्तर दिया – “मोटा-मोटी, फिर-जो, पैंसठ किलोमीटर मान सकते हैं। सुबह जल्दी सुल्तानगंज से जल ले कर निकलते थे और दिन भर में इतना चल लेते थे।”
पैसठ किलोमीटर! गजब!

प्रवीण पाण्डेय के द्वारा एपलेचियन ट्रेल की पदयात्रा के बारे में एक लिंक देने पर मैंने बिल ब्रायसन की पुस्तक “अ वाक इन द वुड्स” को पढ़ना-सुनना शुरू किया है। उसमें बिल ब्रायसन एक दिन में 12 मील चल रहे हैं और जिस दिन 14 मील हो गया उस दिन वह बड़ा अचीवमेण्ट हो गया! और यहां प्रेमसागर आये दिन पचास किलोमीटर तो धांस ही देते हैं। पचास किलोमीटर यानी 30-32 मील! ग्रेट हो प्रेमसागर जी! और अब तक पौने आठसौ मील चल लिये हैं इस पदयात्रा में!
अपने सेण्डिल के बारे में प्रेमसागर का कहना है – “भईया, सेण्डिल भी सोचता होगा कि दुकानदार ने किस आदमी को मुझे थमा दिया। चैन लेने ही नहीं देता। महीने भर में में ही घिस गया है। जल्दी ही बदलना पड़ेगा।” वह तो गनीमत है कि प्रेमसागर का सेण्डल सस्ता वाला है – तीन-चार सौ का। किसी रीबॉक या आदिदास का खरीदे होते तो बारम्बार खरीदने में उन्हें लोगों से पैसे की अपील करनी पड़ती।
वैसे, बाई-द-वे, यह पढ़ने वाले प्रेमसागर जी की जरूरतों के लिये कुछ न कुछ दे सकते हैं। उनकी सहायता तो की जानी चाहिये। एक फोन पे का अकाउण्ट है उनका, जिसमें डिजिटली भेजा जा सकता है। प्रेमसागर खुद तो किसी से आगे बढ़ कर मांगने की बात करते नहीं। पर उनकी मितव्ययता के बावजूद, जरूरतें तो हैं ही।
कल एसडीओ साहब – तरुण कौरव जी आये थे उनके पास। वे बड़े सज्जन व्यक्ति हैं। प्रवीण दुबे जी ने उन्हे जब प्रेमसागार की सहायता के लिये कहा तो वे कई दिन से प्रेमसागर की यात्रा ट्रैक कर रहे थे। अनेकानेक बार उन्हें फोन किया होगा। लगता है प्रवीण दुबे के साथ प्रगाढ़ता होगी उनकी। प्रेमसागर ने बताया कि उनकी बिटिया पढ़ाई पूरी कर सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रही है। शुभकामनायें।

प्रेमसागर ने अग्निहोत्री जी का भी चित्र भेजा है। अग्निहोत्री जी इस रेस्ट हाउस की देखभाल करते हैं। प्रेमसागर को परिसर भी उन्होने ही दिखाया। यात्रा के दौरान अग्निहोत्री जी की तरह अनेकानेक भले लोगों ने अपना योगदान दिया है और आगे भी बहुत से लोग मिलेंगे। जब तक मैं यह यात्रा विवरण लिख रहा हूं, तब तक उनके बारे में लिखने और उनके चित्र ब्लॉग पर देने की आदत रहेगी। … वैसे यात्रा विवरण दो ही स्थितियों में बंद हो सकता है – एक, प्रेमसागर उदासीन हो जायें इनपुट्स देने में। और दो, वे सरल पदयात्री से हट कर शोहरत और सेलिब्रिटी बनने में रुचि लेने लगें – तब मैं उदासीन हो जाऊंगा उनके बारे में। अभी दोनो ही बातें नहीं हैं।

प्रेमसागर मुझे बताते हैं – “लोग मिलते हैं और बहुत असमंजस में डालते हैं। कहते हैं कि उनके घर में ये परेशानी है, ये बीमार है, यह कष्ट है। वे मांगते हैं कोई भभूत, कोई प्रसाद, कोई तावीज। मैं बताता हूं कि मैं उस तरह का बाबा या सिद्ध नहीं हूं। पर वे मानते नहीं। उनसे पीछा छुड़ाने के लिये कभी कभी कोई सेब, कोई केला या छुहारा जैसा कुछ देना पड़ता है। रास्ते चलते लोगों को डांटा या झगड़ा नहीं किया जा सकता। समझा-बुझा कर अपना रास्ता निकालना पड़ता है।”
“एक बार तो – जबलपुर के पहले रास्ते में एक आदमी बोले अपना सब सामान छोड़ कर आगे जाओ। मैंने उनसे कहा – जी, यह सब आपका ही है। आपके लिये ही ले कर चल रहा था मैं। अब तक मेरा था, अब आपका है। … पर जाने क्यों उस व्यक्ति ने मुझे जाने दिया। सो ऐसे लोग भी मिलते हैं। शायद महादेव ही परीक्षा ले रहे हों कि अपने सामान में मेरी कितनी आसक्ति, कितना मोह है।”
दस बज गये हैं। प्रेमसागर का लोकेशन कुछ हिला बताता है। लोकेशन अभी भोपाल में ही है, पर चलता प्रतीत होता है उनका चिन्ह। शाम को पता करूंगा कि वे अभी भी भोपाल में ही हैं या किसी अगले मुकाम पर। अब निकल कर आष्टा तक जाना तो सम्भव नहीं होगा। शायद रास्ते में कोई ठिकाना तलाशें। सवेरे बता रहे थे – “कोई नीरज जी फोन कर रहे हैं। यू-ट्यूब से जुड़े हैं। यहां से पचीस किलोमीटर दूर। वे अपने यहां रुकने के लिये कह रहे हैं।” सो क्या पता, नीरज जी के यहां तक पंहुच पायें। यात्रा पर निकलने के बाद अगला मुकाम अपने हाथ में कम, मौसम, रास्ते और संयोग पर ज्यादा निर्भर करता है। आज देखते हैं क्या होता है! 🙂
हर हर महादेव!
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी (गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) – |
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर |
2654 किलोमीटर और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है। |
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे। |
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
प्रेमसागर जी की क्षमता अद्भुत है। औसत ५० किमी चलना अत्यन्त कठिन है और वह भी लगातार। यह वृत्तान्त एक पुस्तक बनेगा और सब अमेजन में पढ़ेंगे।
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मुझे भी लगता है कि प्रेम सागर के भोजन, दिन चर्या, सोच और जीवन जीने के सूत्रों पर भी उनसे बात होनी चाहिए और उसपर लिखा जाना चाहिए आगे पोस्टों में. एक दो महीने बाद लोग वह सब जानने की इच्छा व्यक्त करने लग जाएंगे. कुछ लोग पदयात्रा की सोचने भी लगेंगे.
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