प्रणाम; आपका स्वागत नहीं है!

इस साल जलवृष्टि काफी हुई। गांव की नीची जमीन, जिसमें सड़क भी आती है, जलमग्न हो गयी। और अभी तक है – जब अक्तूबर का चौथा सप्ताह आने को है। कुआर खत्म हो गया। विजयदशमी जा चुकी। दीपावली आसन्न है। पर बारिश जब तब हो जा रही है और सड़क पानी में डूबी है।

सड़क ही नहीं, गांव की महुआरी पानी में है। उसमें मछलियां पल रही हैं। उसके पीछे पोखरी है जिसको ले कर यू.एन.ओ. लेवल की राजनीति चल रही है। मामला शायद इण्टरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में चल रहा है। वहां तारीख पर तारीख पड़ रही हैं।

आगे तीस कदम पर देखा तो वह पगडण्डी बैरियर लगा कर अवरुद्ध कर दी है।

मैं जलमग्न सड़क से बचने के लिये घरों के सामने से गुजरता था अपनी साइकिल ले कर। लोग मिलते थे और नमस्कार-पैलगी होता था। कोई दिक्कत नहीं थी। आज भी जब निकला तो उस नौजवान ने कहा – प्रणाम फूफा जी! साइकिल चलाते हुये मैंने उत्तर भी दिया। पर आगे तीस कदम पर देखा तो वह पगडण्डी बैरियर लगा कर अवरुद्ध कर दी है। सवेरे सवेरे का शांत, निर्मल मन गिनगिना गया।

वह नौजवान प्रणाम करते समय कह सकता था कि रास्ता आगे हमने बंद कर दिया है। आप सड़क से जाने का कष्ट करें। या यह भी कर सकता था कि मेरे साथ आता और बांस उठा कर मुझे निकल जाने देता। वह सज्जनता का तत्व सामान्यत: लोगों में नहीं है। परनिंदा और दूसरे की तकलीफ में जो आनंद है, वही “आहा ग्राम्य जीवन!” है।

और गांवों में, अन्य जातियों में यह खुरपेंची प्रवृत्ति नहीं दिखती। इस गांव में बभनौटी में यह प्रवृत्ति प्रचुर है। लोग सामने पड़ने पर मुंह फेर लेते हैं कि कहीं प्रणाम नमस्कार न करना पड़े। और यह नौजवान पीढ़ी का ही चरित्र नहीं है। अधेड़ों और वृद्धों में भी वही व्यवहार-दरिद्रता दिखती है। मामला जीन्स में घुस गया है।

वापसी में मैं जलमग्न सड़क से हो कर गुजरा। टूटी-फूटी जलमग्न सड़क ने सहर्ष स्वागत किया। साइकिल का पैडल मारते समय भी मेरे पद धोये केवट की तरह।

खराब लगता है। आज सवेरे का भ्रमण की निर्मलता और सम-भाव गड्ढे में चला गया। वापसी में मैं जलमग्न सड़क से हो कर गुजरा। टूटी-फूटी जलमग्न सड़क ने सहर्ष स्वागत किया। साइकिल का पैडल मारते समय मेरे पद धोये केवट की तरह। भगवान राम को केवट के प्रति जो स्नेह भाव आया होगा, वही मुझे जल में डूबी सड़क के प्रति आया। तुम कहां कोल-भिल्ल-निषाद का संग छोड़ बभनौटी की ओर रुख करते हो, ज्ञानदत्त!

यह ऊबड़खाबड़ सड़क; यह सवेरे सवेरे “गुडनाइट सर” का जोर से जयकारा लगाते भगवान दास पासवान “मुसई” का हंसता मुस्कराता चेहरा; सड़क किनारे निपटती छोटी बच्ची का जोर से अभिवदन करना – “बब्बा पालागी”; का आनंद लो। कहां इन बभनों के फेर में अपनी मानसिक शांति बरबाद करते हो!

आज इसपर लिखने का मन हो आया तो सोचा कि पहले इसको ब्लॉग पर डाला जाये। प्रेमसागर पर दैनिक पोस्ट शाम को शिफ्ट की जाये। :lol:


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

5 thoughts on “प्रणाम; आपका स्वागत नहीं है!

  1. दिनेश कुमार शुक्ल जी, फेसबुक पेज –
    परनिंदा सम सुख नहिं भाई
    परपीडा सम नहिं प्रभुताई
    नगर बसउ अथवा रहु ग्रामा
    लोक सुभाउ एक सब ठांवां
    “इदं नव्योहितोपदेशः यत् अवतरितो वा नाजिलोऽभूत..”

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  2. “अहा ग्राम्यजीवन” से “आह ग्राम्यजीवन” तक पहुँचा देने वालों की कमी नहीं हैं। यत्मुण्डे तत्ब्रह्माण्डे को अपनाये रहें, स्वयं प्रसन्न रहें, परिवेश जीवन्त रहें।

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    1. वही करता हूँ…. वर्ना कुढ़ते जाते रहना तो सामान्य प्रकृति है मानव की…

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