छोटा उदयपुर से आगे, पालिया, बोडेली

कल और आज में 45 किमी चले हैं प्रेमसागर। बढ़िया है। एक दिन में पच्चीस किलोमीटर चलना चाहिये; औसत। ज्यादा चल सकते हैं, पर फिर कुछ दिनो बाद विश्राम करने में एक दो दिन अतिरिक्त लग जाते हैं और औसत पच्चीस के आसपास आ जाता है। शायद उन्हे तीस किलोमीटर का मुकाम रखना चाहिये। उससे कुछ ज्यादा या कम। अर्थात 25 से 35 किमी के बीच। और यदि उपयुक्त प्री-प्लाण्ड मुकाम न मिले तो खोज कर कोई मंदिर या घर तलाशना चाहिये। वैसे जितने सहाय्य उन्हें मिल रहे हैं, कोई न कोई उपयुक्त मुकाम मिलना असम्भव नहीं होगा।

कल एक फेक्टरी के गेस्ट हाउस में इंतजाम हुआ प्रेमसागर के रुकने का। “भईया मुझे तो पहली बार पता चला कि जैसे सरसों का तेल निकलता है वैसे कपास का भी तेल निकलता है। जहां रुके थे, उस फेक्टरी में कपास आता है। कपास से रुई अलग की जाती है और बीज का तेल बनता है।” – प्रेमसागर ने बताया।

कपास का तेल! रतलाम में कपास्या कहते थे। सस्ती रतलामी सेव कपास्या तेल में बनती थी। मुझे तो खाने में खराब नहीं लगी। पता नहीं, गुणवत्ता में कपास का तेल बाकी तेलोंं के मुकाबले कैसा होता है। महुआ या पामोलिन के तेल जितना कोलेस्ट्रॉल-वर्धक तो नहीं होता होगा! कपास्या को खराब कहते कोई चीज नेट पर नहीं पढ़ी। शायद इसलिये भी कि पूरे तेल वांग्मय में कपास का हिस्सा बहुत कम होता है।

पालिया में प्रबंध किसने किया? यह पूछने पर प्रेमसागर ने बताया कि आशुतोष पंचोली जी के कोई बंधु/मित्र हैं। उन्होने। प्रेमसागर ने सारनिक साह (आशा है उन्होने नाम के हिज्जे सही भेजे हों) और पिता तथा बेटे के चित्र भेजे हैं। सम्भवत: इन्ही लोगों ने सहायता की हो। प्रेमसागर ने साह जी के चित्र ही भेजे हैं, कुछ बताया नहीं।

सवेरे सात बजे के पहले निकले थे आज प्रेमसागर। मैंने उन्हे फोन नहीं किया तो उन्हीं का फोन आया। बताया कि आज 15 किलोमीटर ही चलना है। मुकाम जैतपुर (?) का है। मुझे वड़ोदरा के रास्ते कोई जैतपुर नजर नहीं आया। यह सोचा कि शायद कोई और स्थान हो जिसको प्रेमसागर ठीक से नोट न कर पाये हों।

कल के रास्ते के बारे में प्रेमसागर ने बताया कि इस प्रांत में गांव दो तीन ही पड़े, पर आबादी मध्यप्रदेश से ज्यादा सघन है। रास्ता अच्छा था। एक दो जगह सड़क खराब भी थी, पर ज्यादा नहीं। दो नदियां मिलीं; पर उनमें पानी नहीं के बराबर था। सड़क किनारे पेड़ अच्छे थे।

आज और कल रास्ते के जो चित्र भेजे हैं, उनसे गुजरात की समृद्धि भी झलकती है। जिस इलाके से प्रेमसागर गुजर रहे हैं, वह शहरी कम है। पर ग्रामीण इलाके का भी रूरर्बियाइजेशन खूब दिखता है। उसे वे पर्याप्त अभिव्यक्त नहीं कर सके पर पालिया में कपास की फैक्टरी; सड़क के बीच पढ़ते बच्चों की मूर्ति; टॉवर आदि बताते हैं कि समृद्धि कैसी है।

[जो चित्र भेजे हैं, उनसे गुजरात की समृद्धि भी झलकती है। ग्रामीण इलाके का भी रूरर्बियाइजेशन खूब दिखता है।]

आज दोपहर दो बजे ही प्रेमसागर मुकाम पर पंहुच गये। जगह जैतपुर नहीं बोडेली। करीब बीस किलोमीटर चले आज प्रेमसागर। नामों को सुनने और याद रखने का प्रेमसागर का अनुशासन कब परिष्कृत होगा, नहीं कह सकते। उनका यू एस पी (Unique Selling Proposition) कांवर ले कर पैदल चलना, निश्चिंत रहना और महादेव में अटूट श्रद्धा है। नाम आदि याद रखने का, प्लान करने का तुच्छ कार्य गौण है। पूरी तरह सेकेण्डरी महत्व का। इसलिये उसके लिये महादेव उनकी सहायता को हम आप जैसे लोगों को उकसाते रहते हैंं।… प्रेमसागर के प्रति अगाध स्नेह और श्रद्धा लोगों में दिख रही है। कल एक सज्जन, दिलीप सिंह पवार जी की टिप्पणी थी –

अदभुत, सनातन धर्म इसलिये वर्षो से जीवित है, आज के युग के श्रवण, अपनी माता के स्वस्थ्य लाभ की कामना लेकर 14 वर्षीय बालक का संकल्प, राजा राम ने अपने पिता के वचन के लिए एक क्षण में राजपाट ठुकरा कर 14 वर्ष के लिये वनवास चले गए, और यहां प्रेम सागर जी ने अपनी माता के स्वास्थ्य लाभ को लेकर लिए गए जाने अनजाने में संकल्प को पूरा करने के लिए असंभव दुर्गम द्वादश ज्योतिर्लिंग की हजारों मील की लंबी यात्रा पर नंगे पैर ही निकल गए। प्रेमसागर जी से भेंटवार्ता ओर उनकी चरणों की धूल मस्तक पर लगाकर धन्य हो गया हमारा जीवन। हमारी कामना यही है कि उनकी यात्रा के दौरान समस्त कष्ट दूर होकर भोलेनाथ उनकी यात्रा को पूर्ण करें।
हर हर महादेव

दिलीप सिंह जी जैसे कई लोग प्रेमसागर को जान रहे हैं – आमने सामने भी और पढ़ कर भी। धर्म और कांवर यात्रा इस देश में जीवंत है – यह यकीन होता है।

बाकी अगली पोस्टों में। हर हर महादेव!

प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी
(गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) –
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर
2654 किलोमीटर
और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है।
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे।
प्रेमसागर यात्रा किलोमीटर काउण्टर

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

6 thoughts on “छोटा उदयपुर से आगे, पालिया, बोडेली

  1. अगर प्रेमसागरजी डभोई से चल रहे है तो दुनिया के सबसे बड़े नेरो गेज वाले रेल नेटवर्क का प्रारंभिक छोर वहीँ से शुरू हो रहा है वो चित्र आपको काफ़ी उत्साहित कर सकते है।

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  2. कपासिया का तेल सरसों के तेल से ठंडा है और लंबे समय तक खराब नहीं होता है। मूंगफली और कपासिया सौराष्ट्र के प्रमुख़ क्रोप है और उनसे तेल बनाने की काफी मील्स सौराष्ट्र की यात्रा के दौरान देखने को मिल सकती है। मूंगफली का तेल हाई कोलेस्ट्रॉल रीच होता है। कपासिया का तेल सरसों व मूंगफली के तेल से कम चिपचिपा व लो कोलेस्ट्रॉल वाला होता है।

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    1. यह आपने अच्छी जानकारी दी कि कपास्या का तेल कोलेस्ट्रोल कम वाला है।

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  3. कपास का तेल और पढ़ते बच्चों की मूर्ति। समृद्धि के स्पष्ट हस्ताक्षर हैं यहाँ। वैसे चलते चलते प्रेमसागरजी ब्लॉगर मानसिकता को समझ जायेंगे।

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