प्रेमसागर – यात्रा की प्रकृति बदल गयी है

21 नवम्बर 21, दिन में –

पिछली बार जब मैंने लिखा तो पंद्रह नवम्बर की शाम प्रेमसागर डभोई पंहुचे थे। वहां बद्रीनारायण मंदिर में रुकना हुआ। मंदिर वालों ने उनका काफी सत्कार किया। उनके रेस्ट हाउस में लम्बा रुकना हो गया। लगभग 2000 किमी की विषम यात्रा का फेटीग हावी हुआ है ऐसा लगता है। पहले पच्चीस किमी प्रतिदिन का यात्रा-औसत आता था। माहेश्वर के बाद वह उत्तरोत्तर कम होता गया है। अब वह 15 किमी प्रतिदिन के आसपास है।

उन्होने डभोई से वडोदरा और वडोदरा से बोरसद तक की 60 किमी की यात्रा की है 16-20 नवम्बर के बीच।

मध्य प्रदेश में प्रेमसागर ने विरल आबादी और भरपूर प्रकृति देखी। उस अनुसार देखने और बताने का एक अनुशासन बना लिया था। नदी, घाटी, खेती, बाग, छोटे झोंपड़े, खपरैल आदि बहुत मनोयोग से देखे और बताये। अब परिदृश्य बदल गया है। दरिद्रनारायण की जगह अब मध्य और उच्च वर्ग के लोगों से उनका पाला पड़ा है। यह वर्ग, उनके घर, उनके ड्राइंग रूम, उनके व्यवसाय प्रेमसागर की पूर्व जिंदगी और यात्रा से अलहदा हैं। उनको एक निस्पृह यात्री की नजर से देखना और अनुभूति बताना सरल काम नहीं है। लोग किस तरह का काम करते हैं, कैसे उनके बिजनेस हैं, कैसी उनकी धर्म के इतर सोच है, यह सब देखना और बताना एक अलग प्रवृत्ति मांगता है व्यक्तित्व में। प्रेमसागर सरल व्यक्ति हैं। वे यह सब ऑब्जर्व ही नहीं कर रहे। और यदि कर भी रहे हैं तो अभिव्यक्त नहीं कर पा रहे।

डभोई के बद्रीनारायण मंदिर का सामने का हिस्सा।

उनकी यात्रा गुजराती लोगों की अभूतपूर्व मेहमान नवाजी से बहुत आरामदेह हो गयी है। इतनी आरामदेह कि उनका चलना कम हो गया है। यात्रा आरामदेह हो गयी है पर ट्रेवलॉग लेखन कठिन हो गया है। लिखा क्या जाये? वडोदरा से बोरसद के बीच मैंने नक्शे में देखा कि माही नदी रास्ते में पड़ती है। प्रेमसागर ने उसका जिक्र नहीं किया। मैंने पूछा – रास्ते में एक नदी मिली होगी? प्रेमसागर का उत्तर था कि हां मिली थी। पर उन्हे कुछ खास नहीं लगी। पानी था। पुल बड़ा था। पर सब नदियां एक सी होती हैं तो उन्होने चित्र नहीं लिया। प्रेमसागर का एक माही का एक चित्र होता तो उसके इर्दगिर्द मेरे माही के अनुभव ही खूब उभरते और उससे ही ट्रेवलॉग का अच्छा खासा कण्टेण्ट बन जाता…। पर वह नहीं हुआ। प्रेमसागर यात्रा के फेटीग और मोनोटोनी से ग्रस्त लगते हैं। लोगों से मिलना और उनका सत्कार उन्हे चमत्कृत कर रहा है। वे कम्फर्ट-जोन में हैं और उस जोन में कांवर यात्रा का स्वरूप वह नहीं रहता जो मेरी कल्पना में है। अब वे यू‌ट्यूब, सोशल मीडिया, फालोवर्स की बात करते हैं। मैं चाहता हूं वे केले के गाछ पर बात करें। एक दो दूर से लिये धुंधले चित्र मोर और बंदरों के भेजे हैं। वे लिखने में सहायता नहीं करते।

बोरसद का सूर्यमंदिर। सूरज के सात घोड़े देखें।

डभोई के बद्रीनारायण मंदिर और बोरसद के सूर्य मंदिर के चित्र अच्छे हैं। गुजरात में मंदिर समृद्ध हैं और उनकी बनावट भी झकाझक है। बाहर की पुताई का कलर कॉम्बिनेशन पुराने मंदिरों से अलग है, पर अच्छा लगता है। इनके अतिथि गृह भी निश्चय ही आरामदायक होंगे। डिण्डौरी की नर्मदा किनारे की धर्मशाला से अलग प्रकार-प्रकृति के।

बोरसद से आगे उन्हें इंद्रराज तक जाना था, पर वे आज निकले हैं कि रास्ते में कहीं तारापुर रुकेंगे। वह स्थान 27 किमी दूर नजर आता है नक्शे में। पच्चीस से पैतीस किमी के बीच चलना सही है। ज्यादा चलने पर थकान और अस्वस्थता बहुत होती है। अब तक तो प्रेमसागर का जोश और उनकी रिजर्व ऊर्जा काम आती रही है। उसके बल पर उन्होने वर्षा के विषम महीनों में भी लम्बी लम्बी यात्रायें की। अब उन्हें शरीर की मांग के आधार पर चलना चाहिये। अगर देखा जाये तो पूरी यात्रा का अभी पच्चीस फीसदी ही सम्पन्न हुआ है। आगे के लिये ऊर्जा संचित करना सही स्ट्रेटेजी है – अगर प्रेमसागर कोई स्ट्रेटेजी बना कर चलते हों। :-)

बहुत से लोगों ने प्रेमसागर की सहायता की है। असल में उन्ही के जरीये वे चल रहे हैं। पर इस पोस्ट में मैं उन सभी का जिक्र जान बूझ कर नहीं कर रहा हूं। उनकी कृपा से यात्रा कम्फर्ट जोन में हो रही है पर वह ट्रेवलॉग के हिसाब से बहुत बढ़िया नहीं है। वह यात्रा तो वैसी ही होती है जिसमें लोग आराम से यूरोप की यात्रा पर जाते हैं और सब मशहूर जगहों पर अपने टनों चित्र खींच कर लौटते हैं – यह बताने के लिये कि एफिल टॉवर के सामने मैंने यह बहुत प्यारी ड्रेस पहनी थी! कांवर यात्रा वृत्तांत वैसा तो कत्तई नहीं हो सकता। और वह बताने के लिये मेरे जैसे “हर चीज चिमटी से पकड़ छीलने वाले (यह फ्रेजॉलॉजी मेरी पत्नीजी की है)” की जरूरत नहीं होती।

मेरी पत्नीजी कहती हैं – “गलती तुममे है। वह प्रेमसागर की यात्रा है; किसी शंकराचार्य या विवेकानंद की नहीं। उस आदमी की सरलता और संकल्प को देखो, तुम काहे दुबले होते हो कि लोगों के ड्राइंग रूम कैसे हैं या कितने लोग प्रेमसागर के पैर छू रहे हैं। वे जो अनुभव कर रहे हैं उसे देखो और चुपचाप वह लिखो जो समझ में आता है। यात्रा को प्रेमसागर की नजर से देखो, अपने चश्मे से नहीं।” … पर मैं कनफ्यूज्ड हूं। शायद प्रेमसागर को यात्रा फेटीग हो न हो, मुझे ट्रेवलॉग फेटीग है।

अपेक्षा करता हूं कि यह फेटीग सोमनाथ नियराते नियराते खत्म हो जायेगा। प्रेमसागर और मैं – हम दोनो नई ऊर्जा से यात्रा करने और यात्रा लिखने में लग जायेंगे।

22 नवम्बर सवेरे –

कल प्रेमसागर ने यात्रा की – बोरसद से तारापुर। रात में जलाराम बापा के मंदिर में ठहरना हुआ। तारापुर बोरसद से तारापुर अठाईस किलोमीटर दूर है। पर वे शाम सात बजे बाद पंहुचे। बोरसद में लोग नाश्ता करा रहे थे, सो निकलने में देर हुई थी।

जलाराम बापा मंदिर में जमीन पग गद्दा बिछा कर सोने का इंतजाम था, कोई घर या रेस्ट हाउस जैसा नहीं। धर्मशाला जैसा। पास के होटल में उन्होने सादा भोजन किया। आज सवेरे वहां से चले तो मैंने उन्हे इस पोस्ट में लिखे मेरे विचारों के बारे में बताया। रास्ते में महादेव की अनुभूति करने और उसे बताने के बारे में पुराने अनुशासन को जीवित करने के बारे में कहा। प्रेम सागर ने तब बताया कि दो दिन पहले पांच लोगोंंका जत्था मिला था जो वैष्णो देवी की पदयात्रा पर निकले थे। उन्हे प्रेमसागर ने पचास रुपये की सहायता भी दी थी। पर उनके बारे में उन्होने न बताया था मुझे न कोई चित्र लिया। इस युग में गुजरात से वैष्णो देवी की डेढ़ हजार किमी की पदयात्रा पर निकलते हैं लोग – यह बड़ी बात है। इसका उल्लेख ही नहीं किया था प्रेमसागर ने! ट्रेवलॉग का एक जरूरी विवरण होना चाहिये था यह। पर प्रेमसागर उस बात को नजर-अंदाज कर दिये थे। वैसे ही जैसे उन्होने माही जैसी महत्वपूर्ण नदी को ओवरलुक किया। खैर, आगे से वे यह यात्रानुशासन पुन: जीवित करेंगे, ऐसा लगता है।

आज सवेरे उन्होने दो चित्र भेजे जो मैं यहां प्रस्तुत करना चाहता हूं –

एक – प्रेमसागर सवेरे साढ़े छ बजे यात्रा प्रारम्भ कर बंदर को कुछ खाने को देते हुये –

प्रेमसागर सवेरे साढ़े छ बजे यात्रा प्रारम्भ कर बंदर को कुछ खाने को देते हुये

दो – यात्रा प्रारम्भ कर रास्ते में सवेरे सात बजे सीताराम जी ने उनकी कांवर देख कर उन्हें रोका और चाय पिलाई।

रास्ते में सवेरे सात बजे सीताराम जी ने उनकी कांवर देख कर उन्हें रोका और चाय पिलाई

मेरे हिसाब से यह महादेव की कृपा से ही हुआ। जब लोगों पर निर्भर रह चाय नाश्ता लेते हैं तो आठ बजे बाद निकल पाते हैं। जब धुंधलके में ही निकल लिये तो सीताराम जैसे मिलते हैं चाय पिलाने के लिये। अब उनमें एक अलग ऊर्जा दिखती है और वह मुझे भी उनकी यात्रा की ओर उन्मुख करेगी। मैंने उनकी यात्रा के बारे में अश्विन पण्ड्या जी से बात भी की। वे गुजरात की आगे की उनकी यात्रा के बारे में गुजरात के बारे में मुझे आवश्यक जानकारी भी देंगे और प्रेमसागर की सहायता भी वे कर ही रहे हैं।

अब लगता है कि प्रेमसागर ट्रेवलॉग के लिये बेहतर इनपुट्स देंगे। आज वे गलियाना तक की यात्रा करने वाले हैं। वह 23-24 किमी आगे है तारापुर से। समय पर वहां पंहुच भी जायेंगे।

हर हर महादेव!


*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची ***
पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी
(गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) –
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर
2654 किलोमीटर
और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है।
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे।
प्रेमसागर यात्रा किलोमीटर काउण्टर

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

8 thoughts on “प्रेमसागर – यात्रा की प्रकृति बदल गयी है

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  2. मुझे लगता है इसे ट्रेवलॉग कहने के बजाय कुछ और नाम देना चाहिए, जैसे कांवरलॉग 😊

    ओशो अपने डिस्‍कोर्स में कहीं साक्षी भाव का जिक्र करते हैं। जो जैसा है उसे वैसा ही देखते रहें, वैसा ही स्‍वीकार करें। यह सही है कि हम जितना जानते हैं और जितना विचार कर सकते हैं, उसी दायरे में नई चीजों को समझ पाते हैं, ऐसे में निरपेक्ष साक्षी भाव संभव ही नहीं है, फिर भी प्रयास किया जा सकता है कि यह यात्रा जैसी चल रही है, वैसी ही चलने दी जाए और उसे जस का तस प्रस्‍तुत कर दिया जाए। एक ब्‍लॉगर के रूप में यह यात्रा आपके लिए भी ट्रांसफार्मेशन का काम कर सकती है। कभी कभी मुझे लगता है कि आप भी उस बदलाव का महसूस कर रहे हैं और उस बदलाव से डरकर आप फिर से बटोही (या आपकी साइकिल का जो भी नया नाम हो) के साथ लोकल यात्रा कर फिर से फाइन ट्यून होने का प्रयास करते हैं।

    आपकी हाइपरलोकल रिपोर्ट का अपना महत्‍व है, लेकिन यहां आपने हाथी को पूंछ से पकड़ लिया है, पूंछ छोटी सी थी, अब शरीर झाडि़यों से निकलकर बाहर आ रहा है, दम साधकर पकड़े रखें चचा, पूरा हाथी भी काबू में आ जाएगा 😊

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    1. जैसा आपने कहा, यही करते हैं। अपनी चला नहीं सकते प्रेम सागर पर। अपनी चलती तो कहता दो महीना ब्रेक ले कर अपने घर का चक्कर लगा आओ और फिर जहां ब्रेक की है वहीं से शुरू कर दो।… देखें हमारे कांवर नायक करते क्या हैं.
      बाकी जिद्दी आदमी के कारण प्रेम सागर को छोड़ने का विचार आता ही है, उससे इंकार कैसे किया जाए. बंदा मनमानी करता है. 😁

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  3. अजब संयोग है, मेरी शादी के दिन बारात सौराष्ट्र से लौटते वक्त 21 नवम्बर 2011 को वही जलाराम मंदिर में रात्रिभोज किया गया था।

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    1. वाह! और प्रेम सागर ने उस मंदिर के बारे में बहुत अच्छा कहा! यह किस जिले में है, खेड़ा?

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