माँ की याद आती ही है, आंसू टपकते हैं – प्रेमसागर

23 नवम्बर, रात्रि –

सोलह साल का प्रेमसागर, जिसे यह कोई अंदाज नहीं था कि द्वादश ज्योतिर्लिंग की कांवर यात्रा कितनी दुरूह होती है; अपनी मरणासन्न माँ की जिंदगी के लिये किसी महिला के कहने पर संकल्प कर बैठता है कि अगर माँ बच गयी हो वह यह कांवर यात्रा करेगा। और चमत्कार होता है, माँ बच जाती हैं। अठाईस साल और जीती हैं।

वह संकल्प बचा रहता है। प्रेम सागर की उम्र सैंतालीस साल की होती है पर संकल्प धुंधला नहीं पड़ता। प्रेमसागर को लगता है कि आगे शरीर क्षीण पड़ेगा और यह संकल्प पूरा करना दुरूहतर होता जायेगा। वह व्यक्ति संगम से कांवर ले कर निकल देता है बाबा विश्वनाथ के लिये। फिर विश्वनाथ महादेव से अमरकण्टक; आगे उज्जैन, ॐकारेश्वर और अब सोमनाथ की ओर अग्रसर।

उसकी शरीर की रिजर्व ऊर्जा छीज रही है। एक एक कदम रखना भारी पड़ रहा है। पर वह चलता जा रहा है। आज वह 28-30 किमी चला है। नक्शे से लगता है कि वह सौराष्ट्र में घुस गया है। दूर दूर तक बबूल के झाड़ नजर आते हैं। ऊसर, बंजर जमीन। खेती कम। रास्ते में मुश्किल से आठ दस छायादार वृक्ष दिखे होंगे। पानी साथ लिये है। सो वैसी कोई दिक्कत नहीं। सवेरे साढ़े चार बजे अंधेरे में गलियाना से निकले प्रेमसागर बारह बजे तक बीस किलोमीटर की दूरी नाप लेते हैं। उसके बाद सूरज का ताप बढ़ने पर एक जगह आराम के लिये रुकते हैं तो तीन बजे तक आराम करते हैं। उसके बाद चलना शुरू करते हैं, पर गर्मी, थकान और ऊर्जा की कमी से चलना दूभर होता है। “करीब आठ किलोमीटर चलने में भईया तीन घण्टे से ज्यादा लगा; जबकि इतनी दूरी मैं सवा-डेढ़ घण्टे में नाप लिया करता था।”

दूर दूर तक बबूल के झाड़ नजर आते हैं। ऊसर, बंजर जमीन। खेती कम।

कुछ न कुछ गलत है – ज्यादा ही दिक्कत है। प्रेमसागर उसे स्वीकार नहीं कर रहे थे अब तक। जिद्दी और जड़ मति संकल्प पूरा करने के लिये धुन में रमा व्यक्ति। अब उन्हें समझ मेंं आ रहा है। … सुधीर पाण्डेय मुझे कहते हैं – यह व्यक्ति आत्मघाती जुनून के वश में है। इसका हीमोग्लोबीन जरूर घट गया होगा। बाकी जरूरी तत्व भी चुक गये होंगे। इसे डाक्टर की सलाह और सप्लीमेण्टस की जरूरत है। कुछ दिन का आराम भी होना चाहिये। जीवन रहेगा, तभी तो यात्रा कर पायेगा।”

मैं भी प्रेमसागर को यह कहता रहा हूं, पर वे सुनते नहीं थे – “भईया मैं पूरा इंतजाम से चल रहा हूं। बबूल का गोंद रात में भिगो कर सवेरे उसका सेवन करता हूं।” … इसी तरह के सेल्फ मेडीकेशन वाले नुस्खे वे मुझे बताते रहे और मुझे भी मेरी ऑस्टियोअर्थराइटिस के लिये सलाह देते रहे। पर पिछले दो दिनों से डाक्टर को दिखाने की सलाह पर रिसेप्टिव हुये हैं। उन्हें भी समझ आ गया है कि कहीं उनके साथ कुछ गड़बड़ है जरूर।

भोगावो नदी

यहां, जहां आज शाम पंहुचे, वह स्थान नक्शे में कमियाला दिखती है। भोगावो नदी पार करने के बाद। यहांंसे धंधुका 28 किलोमीटर दूर है। अश्विन पण्ड्या जी ने कहा है कि वहां रेलवे स्टेशन पर स्टेशन अधीक्षक (स्तेधी) महोदय तैयार हो गये हैं अपने यहां उन्हें “जितना जरूरी हो उतने दिन” रखने के लिये। स्टेधी साहब अश्विन जी के पुराने सब-ऑर्डीनेट रह चुके हैं और उनके प्रति बहुत आदर करते हैं। धंधुका रेल स्टेशन अभी गेज कंवर्शन में बंद है तो स्तेधी महोदय के पास काम भी ज्यादा नहीं है। दिन में एक दो इंजन भर आते होंगे ट्रेक रोलिंग के लिये। वे भी प्रेमसागर को पूरी तवज्जो दे सकेंगे। वे तो प्रेमसागर को चार दिन रुकने की बात कहते हैं, पर मेरे विचार से वहां प्रेमसागर को जरूरत हो तो ज्यादा भी रुक कर स्वास्थ्य लाभ करना चाहिये। धंधुका में प्रेमसागर स्वास्थ लाभ करें और स्टेशन अधीक्षक महोदय पुण्य लाभ। दोनो नफे में रहेंगे। अश्विन जी बताते हैं कि स्टेशन अधीक्षक महोदय स्वयम काफी धार्मिक वृत्ति के व्यक्ति हैं।

कमियाला में जहां प्रेमसागर रुके हैं, वहां कोई हनुमान मंदिर है। मंदिर तो अच्छा दिखता है चित्र में। उसमें कोई धर्मशाला नहीं है। नये जमाने की टीन की छत है और उसके नीचे पंखा है। मच्छर नहीं लगेंगे। भोजन का अच्छा प्रबंध कर दिया है मंदिर समिति वालों ने। एक तख्त है जिसपर प्रेमसागर ने अपनी चादर बिछा ली है। अपनी कांवर सिरहाने रखी है और अपने बैग का सिरहाना बना लिया है। “रात गुजारनी है भईया। सवेरे जल्दी निकल लूंगा – चार साढ़े चार बजे। बारह बजे तक जितना चल सका चलूंगा। उसके बाद नहीं चला जायेगा।”

मैं भी उन्हें सलाह देता हूं कि धंधुका की 28 किमी की यात्रा वे एक दिन में करने की बजाय दो दिन में करें। दूसरे दिन दोपहर से पहले वे धंधुका पंहुच जायें। कल बारह बजे तक जो उपयुक्त जगह मिले वहां दोपहर के बाद रात गुजारने की चेष्ठा करें।… देखें वे क्या करते हैं।

मैं उनसे पूछता हूं – घर वालों से बात होती है?

“हां हां। दिन में दो तीन बार उनका फोन आ जाता है। ज्यादातर यही पूछ्ते हैं कि अभी और कितना दिन लगेगा यात्रा में। पिताजी से भी बात होती है। वे तो रोने लगते हैं।”

जिनके लिये इतना कठिन संकल्प लिया, उनकी याद आती है? – मेरा यह प्रश्न सुन कर प्रेमसागर की आवाज बदल जाती है। लगता है कि कुछ गले में फंस रहा हो – “भईया अकेला चलता हूं तो उनका याद, माँ का याद, बना ही रहता है। हर समय आंखों के सामने उनकी तस्वीर आती है। आंसू टपकने लगते हैं। बस मैं मोबाइल पर भजन लगा देता हूं और सुनता चलता हूं…।”

इस बारे में मैं आगे और बात नहीं करता। संकल्प का संवेदनशील विषय लम्बा बतियाने की मेरी क्षमता नहीं है। मुझे अपनी माता और पिता के साथ उनके अंतिम दोनों में बिताये दिन याद आने लगते हैं। कैसे मैं इस जद्दोजहद से गुजरा हूं कि उनकी जिंदगी कुछ और चल जाती… माता पिता की बात बहुत इमोशनल नब्ज है।

“भईया मुझसे जो भी लोग मिलते हैं; मैं उन्हे यही कहता हूं कि अपने माता पिता की सेवा करो। जितना भी दम खम हो। उससे बड़ी भगवान की सेवा कोई दूसरी नहीं।” – प्रेमसागर जोड़ते हैं।

मैं आगे बात नहीं चलाता। रात के आठ बजे हैं। प्रेमसागर को जल्दी सो जाना चाहिये और कल सुबह भोर में ही यात्रा शुरू कर जितना हो सके उतनी दूरी तय कर लेनी चाहिये। अभी धंधुका पंहुच स्वास्थ्य लाभ उनका ध्येय होना चाहिये; सोमनाथ और बाकी ज्योतिर्लिंग तो बाद में होंगे। शरीर की सेवा होगी तो शरीर ही वाहन होगा संकल्प सिद्धि के लिये।

जय बजरंग बली! हर हर महादेव!

*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची ***
पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी
(गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) –
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर
2654 किलोमीटर
और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है।
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे।
प्रेमसागर यात्रा किलोमीटर काउण्टर

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

7 thoughts on “माँ की याद आती ही है, आंसू टपकते हैं – प्रेमसागर

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  2. महादेव की कृपादृष्टि बनी रहे।

    यह विस्तार भाल प्रदेश से जाना जाता है, भाल की ही तरह सपाट, भोगवो को आप आज से 50 साल पहले एक धारा में आप पहचान नहीं सकते ऐसा बुजुर्गों से सुना है, क्योंकि समतल प्रदेश होने से वो पूरी तरह पिण्डलियों तक ही पानी रहता और सारे इलाके में बारिश के वक्त जमीन ही समुद्र के तरह दीखती थी, फ़िलहाल भी वर्षाऋतु में भोगावों का पट बहुत ही चौड़ा कहा जा सकता है जलपात के अनुसार।

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    1. आपका फोन नंबर चाहिए था. अगर आपत्ति न हो तो gyandutt at gmail dot com par कृपया मेल करने का कष्ट करें।

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  3. प्रेमसागर जी का संकल्प पवित्र है, सर्वोपरि है, लेकिन संकल्प पूर्ति के लिए स्वास्थ्य का साथ अत्यावश्यक हैं। आपकी चिंता सर्वथा उचित है। घरेलू नुस्खे के अलावा डॉक्टरी सलाह पर मल्टी विटामिन भी खाना चाहिए। अंकुरित अनाज भी उपयोगी सिद्ध हो सकता है।

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    1. आज ठीक से चल नहीं पा रहे थे. उन्हें कहा गया कि पास के गांव से सहायता ले कर धंधुका पंहुचें. गांव के एक सज्जन तैयार हो गए हैं और उन्हें दोपहर का भोजन करा कर धंधुका छोड़ देंगे. अपनी दशा समझ कर प्रेम सागर ने यह मान लिया है. धुंधुका अभी 18 किमी दूर है.

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