24 नवम्बर, रात्रि –
प्रेमसागर धंधुका में पंहुचे हैं। आज कमियाला से चले तो भोर मेंं साढ़े चार बजे के आसपास ही थे, पर साढ़े आठ बजे तक सात-आठ किलोमीटर ही चल पाये थे। एक घण्टे में दो किमी। सवेरे के समय जब सूरज का ताप नहीं होता, यह दूरी बहुत कम कही जायेगी। मुझे अहसास हो गया कि कहीं गड़बड़ ज्यादा ही है उनके स्वास्थ्य में। प्रेमसागर को कहा कि वे आगे इस हिसाब से चलें कि वहां रात गुजारने के लिये रुका जा सके। दिन में बारह बजे के बाद चलना सम्भव नहीं हो पायेगा।

प्रेमसागर यह मानने को तैयार नहीं थे कि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है। पर लक्षण उसके उलट थे। मैंने अश्विन पण्ड्या जी से बात की और उन्हे सुझाया कि धंधुका के स्टेशन अधीक्षक महोदय को कहें कि किसी मोटर साइकिल से प्रेमसागर को धंधुका ले आयें। दो तीन दिन में जब उनका स्वास्थ्य सुधरे तो वे अगर चाहें तो पुन: उसी स्थान पर आ कर अपनी कांवर यात्रा जारी कर सकते हैं। वर्ना आपत-धर्म का पालन करें और कांवर उठाये उठाये मोटर साइकिल पर धंधुका पंहुचें।
पण्ड्या जी ने मेरी फोन कॉल पर ही प्रेमसागर को कॉन्फ्रेंस में लिया। वे उस समय फतेहपुर पंहुचे थे और किन्ही बापू भाई के घर पर विश्राम करने को रुके थे। पण्ड्याजी ने और मैंने प्रेमसागर को राजी कराया कि वे मोटर साइकिल से धंधुका चलें। अपनी दशा समझते हुये प्रेमसागर ने ना-नुकुर नहीं की। पण्ड्या जी ने बापू भाई से गुजराती में बातचीत की। बापू भाई ने बताया कि वे स्वयम बारहों ज्योतिर्लिंग दर्शन कर आये हैं। वे तो वाहन से गये थे, पर यात्रा से बहुत थक गये थे; ये सज्जन तो पैदल चल रहे हैं! बापू भाई ने कहा कि वे प्रेमसागर को भोजन करा कर धंधुका पंहुचाने का इंतजाम कर देंगे।

और इस प्रकार प्रेमसागर दोपहर दो-तीन बजे धंधुका रेलवे स्टेशन पर आ गये थे। वहां खाली पड़े रेलवे स्टेशन के डॉर्मेट्री वाले रेस्ट हाउस में जिसमे चार बिस्तर हैं; प्रेमसागर को जगह मिली। स्टेशन पर बिजली पानी की सुविधा है। काम लायक फर्नीचर भी है। पिछले दो तीन साल से स्टेशन गेज कंवर्शन के लिये बंद है तो कोई चहल पहल नहीं है। तीन लाइन के स्टेशन में स्टेशन अधीक्षक साहब और दो तीन और कर्मी भर होंगे। प्रेमसागर इत्मीनान से एकांत-स्वास्थ्य लाभ कर सकते हैं।

कल प्रेमसागर को स्टेशन का प्वाइण्ट्समैन या खुद स्टेशन अधीक्षक साहब डाक्टर साहब को दिखा लायेंगे। वहां उनका कोरोना टीकाकरण भी हो जायेगा और डाक्टर साहब से परामर्श भी।
स्टेशन अधीक्षक श्री उपेंद्र दोषी जी 59 वर्ष के हैं। इग्यारह महीने बाद उनका रिटायरमेण्ट है। उनका परिवार वडोदरा में रहता है। यहां धंधुका में वे लम्बे अर्से से हैं। यह नीचाई का इलाका है। रेलवे के मकानों में बारिश के मौसम में पानी घुस जाता है। दो तीन साल नहीं आता, पर किसी साल अचानक बारिश से घर जलमग्न हो जाते हैं। उनके घर का काफी सामान जलमग्न होने से खराब हो गया। गेज कनवर्शन में उनकी पोस्टिंग कहीं और थी तो परिवार को काफी परेशानी झेलनी पड़ी। यह देखते हुये उन्होने अपना परिवार वडोदरा शिफ्ट कर दिया। अब वे अकेले यहां रहते हैं। थोड़ी बची रेल नौकरी काटनी है अकेले उनको।
“मोदी जी की सरकार आयी तो नर्मदा का पानी मिलने लगा। नहीं तो बड़ी दिक्कत थी यहां पीने के पानी की। अब शहर में भले पानी दो दिन में एक बार मिलता हो, स्टेशन में रोज मिलता है। बड़ा अच्छा पानी मिलता है।” – पानी के बारे में दोषी जी ने कई बार मुझे बोला। नर्मदा के पानी और मोदी जी को दो तीन बार जोड़ा। रेलवे के क्वार्टर की कमी (भूकम्प में टूटने के बाद क्वार्टर बने ही नहीं) और पानी की अब प्रचुर उपलब्धता – ये दो बातें उन्होने जोर दे कर कहीं।
पश्चिम रेलवे के पास संसाधनो की कमी हो, यह मैं नहीं मान सकता। पर स्टाफ क्वार्टर्स का पुन: निर्माण शायद इसी कारण से नहीं हुआ कि धंधुका या बोटाड की रेल लाइन माल यातायात के दृष्टिकोण से कोई महत्व की नहीं होगी। ब्रांच लाइन की उपेक्षा ही कारण हो सकता है। तभी आज 2021 तक यह स्टेशन बड़ी लाइन के नक्शे पर नहीं आ सका है। खैर, प्रेमसागर के कारण ही मैंने धंधुका रेल स्टेशन का नाम सुना। मैंने प्रेमसागर को कहा कि वे स्टेशन का चित्र तो भेजें। अब वहां पैनल इण्टरलॉकिंग हो गयी है। पैनल की टेस्टिंग भी हो चुकी है। स्टेशन सिगनलिंग के हिसाब से पूरी तरह तैयार है। बस इसका बड़ी लाइन के लिये खुलना बाकी है। शायद इस साल के अंत पर ट्रेन चले यहाँ।
आशा करता हूं कि प्रेमसागर यहां स्वास्थ्य लाभ कर सकेंगे। उन्हें आगे की यात्रा और अपने शारीरिक अनुशासन पर पुन: विचार करना चाहिये। कांवर यात्रा के स्वरूप पर भी अगर पुन: विचार कर सकें तो बेहतर हो। मेरे हिसाब से वे पहले कांवर यात्री हैं और उन्हें इसका अनुशासन सेट करना है। आगे अगर कोई और यात्रा करेगा, तो उनका दृष्टांत ध्यान में रख कर करेगा।
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी (गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) – |
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर |
2654 किलोमीटर और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है। |
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे। |
सुधीर खत्री फेसबुक पेज पर –
महादेव उन्हें शीघ्र स्वास्थ्य लाभ करे
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सुरेश शुक्ल फेसबुक पेज पर –
देखने वाली बात होगी कि प्रेमसागर पांडे जी के बारह ज्योतिर्लिंगों की पग कांवड़ यात्रा के संकल्प, जुनून, आत्मविश्वास में उनका स्वास्थ्य कितना साथ देता है, भोलेशंकर अपनी कृपा उन पर बनाये रखें।
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शेखर व्यास फेसबुक पर –
शुभ कामना कि प्रेम जी स्वस्थ रहें और अपना संकल्प सानंद पूर्ण कर सकें 🙏🏻 हरि करे सो खरी
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अभी प्रेमसागर जी को बहुत चलना बाकि है जोश के साथ होश पूर्ण यात्रा करें स्वास्थ्य क ध्यान रखते हुए क्योंकि शरीर ही इस यात्रा का साधन है | प्रभु कृपा ही है की आप जैसो का साथ उन्हें मिला |
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उन्हें खुला दिमाग रखने और परिस्थितियों को समझने परखने का बेहतर अनुशासन की जरूरत है. यात्रा इस पर नहीं हो सकती कि आप इस असमंजस में रहें – लोग क्या कहेंगे.
बाकी प्रेम सागर जाने और उनका जुनून जाने.
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