दो कांवरिया मुझे लगभग उसी स्थान पर आज दिखे जहां प्रेमसागर से पहली मुलाकात हुई थी। चैत्र नवरात्रि का अवसर है। मुझे लगा कि इस अवसर पर भी कांवर ले कर चलने का कोई विधान हो। मैं उन लोगों से मिलने, चित्र लेने और पूछने-पछोरने के उपक्रम में लग गया।
वे इस समय नवरात्रि के कारण नहीं चल रहे। उनके गुरू जी दण्ड दे रहे हैं। दण्ड देने का अर्थ है लेट लेट कर कांवर यात्रा करना। गुरू जी के साथ ही वे दस लोग चल रहे हैं। गुरू जी आगे हैं। वे उनके अनुगामी हैं। प्रयाग से बुधवार को जल ले कर निकले हैं। उनमें से एक, राजकुमार यादव जी ने बताया कि साथ में एक गाड़ी भी चल रही है। उसपर निशान (झण्डा) लगा है। अर्थात गुरू जी हैं, अनुयायी हैं, झुण्ड है और व्यवस्था के साथ यात्रा हो रही है। मौसम भी ठीक ही है। बकौल बाबा तुलसीदास ‘न शीत है न घाम’। ऐसे में कांवर यात्रा उत्सव है। बात चीत होने पर उन्होने मुझे हाथ उठा कर “हर हर महादेव” कहा।

मैंने भी साइकिल पर बैठे बैठे दोनो हाथ उठा कर दोहराया – हर हर हर हर महादेव! सवेरे सवेरे आनंद आ गया उन लोगों से मिल कर!
उनमें से जो नौजवान थे, आगे चल रहे थे, ने नाम बताया विनोद साव। बिहार के हैं। यहां कांव ले कर प्रयाग-बनारस पहली बार आये हैं। थोड़े उम्र वाले, कुछ और पतले दुबले चश्मा पहने थे राजकुमार यादव। उन्होने मुझे पूछा – बैजनाथ धाम जानते हैं?
“हां, सुल्तानगंज से जल ले कर कांवरिया बैजनाथ धाम जाते हैं। देवघर।”

मेरी जानकारी देख राजकुमार को प्रसन्नता हुई। उन्होने बताया कि उनका घर बैजनाथ धाम और बासुकीनाथ के बीच में पड़ता है। बैजनाथधाम वे जाते रहते हैं कांवर ले कर। उनसे पूछा नहीं, पर लगा कि वे भी पहली बार बाबा विश्वनाथ धाम जा रहे हैं।
न साव जी ने और न राजकुमार जी ने अपनी कांवर यात्रा को चैत्र नवरात्रि से जोड़ा। वे तो इस कारण चल रहे हैं कि उनके गुरू जी दण्ड दे रहे हैं। “गुरू जी आगे हैं। उनकी दण्ड यात्रा करीब बारह चौदह किलोमीटर बची है।” सम्भवत: इन लोगों की पैदल कांवर यात्रा और गुरू जी की दण्ड यात्रा बाबा विश्वनाथ पंहुचने में सिन्क्रोनाइज हो जायेगी – ये लोग वाराणसी से अभी 40 किमी दूर हैं। तालमेल से ये लोग पीछे चल रहे हैं।


मैंने एक बार फिर हर हर महादेव कह उनसे विदा ली। उनके चक्कर में घर की ओर मुड़ने की बजाय तीन-चार सौ मीटर आगे चला था मैं। मैं करीब बारह किमी साइकिल चला चुका था। घर पंहुचने की जल्दी न होती तो राजकुमार यादव जी के साथ कुछ किलोमीटर और चलता। कांवर यात्रा मुझे फैसीनेट करती है। कभी कभी लगता है कि बिना पूर्वाग्रह के और बिना अपनी शर्तों के, प्रेमसागर के साथ वर्चुअल यात्रा में फिर जुड़ा जाये। … पर प्रेमसागर की कांवर यात्रा के प्रेम का धागा एक बार टूट चुका है। 😦
हर हर महादेव!
