पतझर, पत्तियां और भरसाँय


गांवदेहात रहेगा, पत्तियाँ झरेंगी, कोंहार का पेशा रहेगा और भरसांय रहेगी। चना, लावा, चिउरा, लाई भुनवाया जायेगा। बच्चे भले ही पॉमोलिन में तली पुपुली खाने पर स्विच कर गये हैं; भूंजा खाने का प्रचलन बना रहेगा।

बुलबुल बरही मनाने का इंतजार नहीं की। बच्चों को ले कर उड़ गयी।


आज सवेरे पोर्टिको में हम चाय पीने बैठे तो कुछ अजीब लगा। बहुत देर तक देखा कि बुलबुल कीड़े चोंच में दबाये तुलसी की झाड़ में नहीं आ रही। … पूरी सावधानी से पत्नीजी ने तुलसी की झाड़ को कुरेद कर घोंसला देखा। देखते ही सन्न रह गयीं। उनकी आवाज निकली – हाय इसमें बच्चे तो हैं ही नहीं।

तुलसी की झाड़ में बुलबुल के बच्चे


हमने भी देखा – सावधानी से – तीन बच्चे थे बुलबुल के हथेली भर के घोंसले में। हल्की आहट पर तीनो अपनी चोंच खोल कर प्रतीक्षा करते थे कि उनके लिये खाना आ रहा होगा। तीनों मांस के लोथड़े जैसे हैं। उनके पंख अभी ठीक से जमे नहीं हैं।

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