भरसाँय और मुहर्रम माई की पूजा

द्वारिकापुर में सड़क किनारे भुंजईन भरसाँय जलाने का उपक्रम कर रही थी। आसपास एक दो महिलायें थीं। द्वारिकापुर गंगा किनारे का गांव है और मैं गंगा तट पर जा रहा था। जाने की जल्दी थी, सो भरसाँय देखने रुका नहीं। पर लौटानी में पाया कि भरसाँय पर भीड़ लग गयी है। भुंजईन के आसपास कई महिलायेंं बैठी हैं। सड़क किनारे तमाशबीन बच्चे और युवा भी थे। एक मोटर साइकिल वाला भी वहां रुका था।

मैंने भीड़ से पूछा – आज कोई त्योहार है क्या?

सवाल किसी एक को सम्बोधित नहीं था तो कोई उत्तर नहीं मिला। आपस में कोलाहल भरी बातचीत में वे लगे थे। बहुत कुछ वैसा माहौल जैसा कक्षा में बच्चे तब मचाते हैं जब मास्टर जी नहीं आये होते। हर कोई अपनी बात कह रहा था।

मेरे फिर पूछने पर एक महिला ने जवाब दिया – “हाँ। आज ग्रामदेवी की पूजा है।” शायद उनको चढ़ाया जाता होगा लाई, लावा आदि।

महिला के उत्तर देने पर बाकी लोग मेरी तरफ देखने लगे थे। एक बच्चे ने उस महिला के कहे में अपनी चुहुलबाजी जोड़, संशोधन किया – “मुहर्रम क पूजा हौ। मुहर्रम माई।”

बच्चा करीब बारह-तेरह साल का रहा होगा। सिर पर पीछे की ओर चुटिया भी थी तो सवर्ण रहा होगा – बाभन-ठाकुर। स्कूल की छुट्टी थी मुहर्रम की। सो उसने मुहर्रम को त्यौहार से जोड़ा। और ग्रामदेवी के अंदाज में मुहर्रम को मुहर्रम माई बना दिया।

त्यौहार, पूजा और मुहर्रम को उससे जोड़ना – यह बहुत सचेतन मन से नहीं किया होगा उस बालक ने। पर मुहर्रम को मुहर्रम माई बना देना हिंदू धर्म का एक सशक्त पक्ष है। तैंतीस करोड़ देवता ऐसे ही बने होंगे!

पिछले हजार साल से इस्लाम भारत में भारतीय मानस को मथ रहा है। अब्राह्मिक धर्म अपने को अलग और टिर्रेखाँ बताने की जिद रखते हैं। इसलिये वे भारतीय जन जीवन में समरस नहीं हो पाये। बावजूद इसके कि लोग बहुत कहते हैं गंगी-जमुनी तहजीब के बारे में; सही समरसता तब हो पायेगी जब जिउतिया माई, डीह बाबा, बंसवारी भेरू आदि की तर्ज पर मुहर्रम माई भी जन देवताओं में शामिल हो जायेंगी। … आखिर कष्ट, संघर्ष और रुदन के भी तो देवी देवता हैं हिंदू धर्म में।

मैं मुश्किल से एक मिनट रुका हूँगा उस भरसाँय की जगह पर। पर उस दृश्य और उस चुटियाधारी बालक ने मुझे सोचने को एक विषय दे दिया।

अब्राह्मिक और हिंदू धर्म का सामंजस्य मुहर्रम माई जैसे प्रतीकों के सृजन से हो सकेगा। बाकी सब तो लफ्फाजी है!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

2 thoughts on “भरसाँय और मुहर्रम माई की पूजा

  1. 33 कोटि का मतलब तेतिस करोड़ नहीं है/हिन्दुओ और सनातन धर्मियों को सही बताया नहीं जा रहा है/33 कोटी का मतलब इस धरा पर उपसतिथि 33 संख्या के वर्ग जिनमे ईश्वर स्वयं अथवा उसकी स्व-उपसतिथि है/33 kinds of subjects having god’s existence/ इसे सांख्य दर्शन के नजरिए से देखेंगे तो समझ जाएंगे/33 करोड़ कम्युनिष्टों और भारत विरोधी सनातन हिन्दुओ को नीचा दिखाने के उद्देश्य से ही प्रचारित किया गया है/

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