पीयूष वर्मा का मालिश-तेल, कंचे, माला और चलना

चार साल पहले ऑस्टियोअर्थराइटिस के कारण घुटने कट्ट-कट्ट आवाज करने लगे थे। हाथ की कुहनियां भी दर्द करने लगी थीं। डाक्टर ने कहा था कि घुटने की कटोरी का ट्रांसप्लांट ज्यादा मंहगा नहीं पड़ेगा। दवाओं में ग्लूकोसामाइन वाली टेबलेट्स मेरे ब्लड शूगर को बढ़ा रही थीं। यह लगता था कि उत्तरोत्तर बढ़ती उम्र कष्टदायक ही होगी। चलना-फिरना कम होने से वजन बढ़ेगा और उससे जोड़ों की समस्या और बढ़ेगी। इस कैच-22 से शायद अवसाद होने लगे।

मैंं छड़ी ले कर चलने लगा था।

फिर बोकारो में कृष्णमुरारी मेमोरियल अस्पताल के हड्डी रोग चिकित्सक रणवीर जी ने मुझे टखनों पर वजन रख व्यायाम करने और मेकवेस्टिन दवा का नियमित सेवन का निदान सुझाया। उससे लाभ यह हुआ कि मैंने छड़ी को तिलांजलि दे दी। घर में चलना-फिरना सहज हो गया। पर घर के बाहर आधा किमी चलने के बाद घुटनों का दर्द फिर भी तीखा बना रहा। मैंने अपना वजन तीन-चार किलो कम किया। उसका भी कुछ लाभ मिला।

जिंदगी घुटनों के दर्द के साथ एक स्तर पर “नॉर्मल” बना चुकी थी। वह नॉर्मल बहुत सही नहीं था। पर कामचलाऊ तो था ही।

कुछ महीने पहले रवि रतलामी जी ने अपने भोपाल के मित्र पीयूष वर्मा जी का एक मालिश का तेल सुझाया, जिसके प्रयोग से उनकी पत्नीजी को बहुत लाभ हुआ था। यह भी बताया गया कि फलाने व्यक्ति जो अपना कामधाम भी ठीक से नहीं कर पाते थे, मालिश के इस तेल का प्रयोग कर “चार धाम की यात्रा” कर आये!

मुझे चार धाम की यात्रा तो नहीं करनी है, पर एक सामान्य स्वस्थ और दीर्घ जीवन जीने की चाह तो अवश्य है। पीयूष जी ने मुझे वह मालिश वाला तेल भेजा। मालिश-अनुशासन के अनुसार मुझे दो तीन बार दिन में अपने जोड़ों पर हल्की मालिश करनी थी। उतनी मैं नहीं कर पा रहा हूं। मालिश करने का कोई अनुचर मुझे नहीं मिला। खुद ही स्नान के पहले और कभी कभी एक बार और अपने घुटनों, कूल्हे, हाथ के जोड़ों, टखनों और हाथ-पैर की उंगलियों पर हल्की मालिश करता हूं। महीने में करीब चालीस बार यह हो पाता है।

इस आधे अधूरे मालिश-अनुशासन के भी लाभ हुये। मुझे नियमित दर्द रहता था पैरों में। मेरी पत्नीजी रात में मेरे घुटनों और तलवों पर आयोडेक्स/मूव जैसा कुछ लगाती थीं। अब वह दर्द और आयोडेक्स/मूव का लगाना नहीं है।

पीयूष जी के तेल के प्रयोग के साथ मैंने कुछ और भी किया है। मैंने घर में ही पैदल चलना प्रारम्भ किया है। घर के बेड-रूम्स और ड्राइंग रूम में चक्कर लगाते हुये नित्य तीन हजार कदम चलने का लक्ष्य रखा था। तीन हजार कदम चलने में मुझे तीन-चार बार बीच बीच में आराम करतेकरते हुये यह लक्ष्य प्राप्त करना पड़ता था।

घर के ड्राइंग रूम का हिस्सा, जिसमें पैदल चला जाता है।

नवम्बर के महीने में मैं कुल 1 लाख 11 हजार कदम चला। प्रति दिन औसत 3700 कदम। इसमें से तीन हजार कदम तो नित्य के टार्गेट के थे। बाकी फुटकर चलना होता था।

मैंने उत्तरोत्तर अपने पैदल चलने को बढ़ाया। बीच में पॉज देने की आवृति कम होती गयी। चलना भी बढ़ता गया। दिसम्बर में मैं कुल 1 लाख 57 हजार कदम चला। अर्थात प्रति दिन पांच हजार से ज्यादा कदम। महीने भर में 37 प्रतिशत ज्यादा चलने की क्षमता आयी।

जनवरी 2023 में अभी 11 दिन हुये हैं। सवेरे इग्यारह बजे तक इस महीने मैं 1,00,194 कदम चल चुका हूं। यह औसत 9100 कदम प्रति दिन होता है। कई दिन मैं दस हजार से अधिक कदम चल चुका हूं। यह दिसम्बर के अनुपात में 80 प्रतिशत बेहतर है।

किसे इसका श्रेय दिया जाये? पीयूष जी के तेल को या तेल के निमित्त अपने आप को ‘पेरने’ के जुनून को? मैं पक्के तौर पर नहीं कह सकता। यह केवल व्यक्तिगत प्रयोग है और इसमें तेल के अलावा कई अन्य घटक भी हैं। मौसम अच्छा है। चलना इन-हाउस हो रहा है; बाहर की ऊबड़-खाबड़ जमीन पर नहीं। हां, बीच में मेरा स्वास्थ्य करीब दो-तीन हफ्ते खराब भी रहा; फिर भी चलने की क्रिया में अपने को पेरने का काम मैंने रोका नहीं! … यह जरूर है कि अगर पीयूष जी तेल नहीं भेजे होते और एक फीडबैक का आग्रह नहीं किया होता तो शायद चलने का यह प्रयोग मैं करता भी नहीं और मेरा वाकिंग-हेल्थ के प्रति नजरिया ढुलमुल सा, हमेशा बढ़ती उम्र को कोसने का बना रहता। अब मेरे पास एक सक्सेस स्टोरी है लोगों को बताने के लिये! :lol:

पैदल चलने में सहायक कंचे और 27 मनके की माला।

मेरे पैदल एक घण्टा चलने में अपने कदमों को नापने के लिये जो तकनीक है उससे कुछ और भी लाभ हुये हैं। मैं एक 27 मनके की माला और दस कंचों का प्रयोग करता हूं। दांये हाथ में चलते चलते माला जप करता चलता हूं। “हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे; हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे” का जाप। एक जप में आठ कदम चलना होता है। बेड रूम-ड्राइंग रूम की एक ओर की ट्रिप में तीन जप होते हैं। कुल सताइस ट्रिप के बाद एक कंचा जेब से निकाल कर मेज पर पड़ी कटोरी में डाल देता हूं। इस प्रकार जेब के दसों कंचे कटोरी में पंहुचने तक मैं चलता हूं। इस दस कंचों के जेब से कटोरी में पंहुचने के खेल में एक घण्टा 6-8 मिनट लगते हैं। अपने आप को इतना पेरना पर्याप्त मानता हूं मैं!

पहले तीस मिनट के भ्रमण में तीन चार बार सुस्ताता था; अब एक घण्टा से अधिक के भ्रमण में केवल एक बार (वह भी यदा कदा) रुकना होता है। इस भ्रमण में मैं जप भी कर लेता हूं और अपनी सांसों को लेने, निकालने का क्रम भी अनुभव करता जाता हूं। कुल मिला कर इस क्रिया में शारीरिक-मानसिक-आध्यात्मिक स्वास्थ्य का लाभ मिल रहा है। इस क्रिया का श्रेय मैं पीयूष जी के तेल को देता हूं। वे स्पीड पोस्ट से तेल न भेजते और मेरे मन में फीडबैक देने का दबाव न होता तो मैं यह सब करता ही नहीं! जिंदगी जैसे लदर-फदर चल रही थी, वैसे चलती रहती।

इस क्रिया में शारीरिक-मानसिक-आध्यात्मिक स्वास्थ्य का लाभ मिल रहा है।

पीयूष वर्मा जी की जय हो!


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

3 thoughts on “पीयूष वर्मा का मालिश-तेल, कंचे, माला और चलना

  1. नमस्कार ज्ञानदत्त जी – आज आपके फीडबैक को पढ़कर मैंने भी पीयूष जी से घुटने मालिश का तैल खरीदने के लिये संपर्क किया है. आशा है की मेरे पिताजी को भी इस तैल से लाभ होगा।

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    1. आशा की जानी चाहिए. मेरे विचार से तेल के साथ मन की पॉजिटिविटी हो तो बढ़िया काम करेगी.
      आपके पिताजी में स्वास्थ्य और दीर्घ जीवन की इच्छा होनी और उत्तरोत्तर पुख्ता होनी चाहिए – मेरा तो यही मानना है.

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