मटर की छीमी तोड़ने जाती औरतें


अपने और टुन्नू पण्डित के घर परिसर युग्म में मैं सवेरे चालीस मिनट साइकिल चलाने का अनुष्ठान कर रहा हूं। सर्दी में मेरे स्वास्थ्य को ले कर मुझपर बंदिश लगाई गयी है कि ज्यादा दूर साइकिल नहीं चलाऊंगा। घर के सामने छोटा पिक-अप ट्रक खड़ा हो गया है। उसमें किरियात को जाती औरतें बैठी हैं।

आसपास के गांवों – इंटवा, कोलाहलपुर, मेदिनीपुर, विक्रमपुर से करीब सौ औरतें और लड़कियां इस और इस जैसे कई अन्य पिक-अप या ऑटो में बैठ किरियात के गंगा कछार में जाती हैं। किरियात मिर्जापुर और चुनार के बीच गंगा के कछार का उत्तरी किनारा है। वहां बड़े पैमाने पर सब्जी की खेती होती है। ये महिलायें वहां दिन में काम करती हैं। शाम पांच बजे लौटती हैं। सूर्यास्त तक अपने घरों में वापस। घर में चौका-बासन को अगर कोई और महिला या बिटिया हुई तो ठीक, वर्ना उन्हें भोजन बनाने का भी काम करना होता है।

पिक-अप में उनके बैठने की कोई व्यवस्था नहीं है। कोई बेंच नहीं। उसके फर्श पर बैठती हैं महिलायें, या फिर खड़े खड़े आधे पौने घण्टे का सफर तय करती हैं। यहां से किरियात 15-20 किमी दूर है। पर उन महिलाओं को मैं दुखी नहीं पाता। मुम्बई में सबर्बन लोकल ट्रेनों में कम्यूट करने वाली महिलाओं की अपेक्षा ये ज्यादा आपसी बोलचाल में व्यस्त लगती हैं। निश्चय ही उनसे ज्यादा प्रसन्न दीखती हैं। विपन्नता और प्रसन्नता में कोई व्युत्क्रमानुपाती सम्बंध नहीं होता। यह मैंने गांव में शिफ्ट होने पर गहरे से जान लिया है।

इन महिलाओं-लड़कियों को दिहाड़ी का 150 रुपया मिलता है। उसमें से तीस रुपया लगता है वाहन के भाड़े का। बचता है 120रुपया रोज। साल में मानसून के महीनों को छोड़ कर कुछ न कुछ काम वहां मिलता ही रहता है। कोई न कोई सब्जी लगाने का या उनके फल चुनने का काम चलता ही रहता है।

आसपास के गांवों – इंटवा, कोलाहलपुर, मेदिनीपुर, विक्रमपुर से करीब सौ औरतें और लड़कियां इस और इस जैसे कई अन्य पिक-अप या ऑटो में बैठ किरियात के गंगा कछार में जाती हैं।

कछवां मण्डी में सप्ताह भर पहले तक मटर की छीमी बाहर से आती थी। उस मटर में कड़ापन भी होता था और स्वाद में मिठास भी नहीं होती थी। अब किरियात की मटर आने लगी है। यह लोकल मटर ताजा भी है, मीठी भी और सस्ती भी। पच्चीस रुपया किलो खुदरा दुकान में मिलती है। खेत वाला जरूर पंद्रह-अठारह तक की बेचता होगा। दुकान वाला बताता है कि मटर की फसल अच्छी है। महीना भर तक अच्छी मटर मिलती रहेगी। और इस बीच गोल्डन मटर भी तैयार हो रही है। उसकी छीमी पतली और लम्बी होती है। दाने खूब मीठे होते हैं और ज्यादा भी।

इन पिक-अप में जाती औरतों के श्रम से तय है कि फागुन भर मटर की घुघुरी, निमोना और पोहा मिलता रहेगा।


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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

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