गांव में बदलता जल प्रबंधन का दृश्य

बहुत सारे हैण्डपम्प लगे हैं गांव में। यह गांगेय क्षेत्र है और भूगर्भ के जल की समस्या नहीं। लगभग हर जगह पानी मिल जाता है बोर करने पर। गांव की आबादी को पानी मिलने की बहुत समस्या नहीं है। समस्यायें अगर हैं; और बहुत हैं; तो मानव की संकुचित प्रवृत्ति के कारण हैं।

सात साल पहले मैं रेल सेवा से रिटायर हो कर गांव में आया, तब बहुत सारे हैण्डपम्प लग रहे थे। सरकारी स्कीम के अंतर्गत चांपाकल बांट रहे थे ग्रामप्रधान लोग। जिसके दरवाजे पर चांपाकल लग गया, मानो उसी का हो गया। उससे वह परिवार अपने पड़ोसी को भी पानी नहीं लेने देता था। दशकों पहले गांव में चार पांच कुयें थे। उसमें (जातिगत आधार पर ही सही) सब को पानी लेने की छूट थी। किसी को जल लेने से रोकना पाप माना जाता था। पर चांपाकल संस्कृति ने पड़ोसी पड़ोसी के बीच वैमनस्य बोना प्रारम्भ कर दिया।

इस समय मेरे पड़ोस में एक व्यक्ति ने नया घर बनाया है। उसके पड़ोस में तीन चार हैण्डपम्प हैं। पर वह परिवार टुन्नू पण्डित (मेरे साले साहब) के अहाते में पानी लेने आता है। उनके अहाते में हैण्ड पम्प भी है और ट्यूब-वेल भी। ट्यूबवेल की हौदी में हमेशा पानी रहता है। हौदी या हैण्डपम्प से पानी लेते पड़ोस का यह नया परिवार जब तब दीखता है। घर के ज्यादातर छोटे बच्चों के जिम्मे पानी ढोना है।

टुन्नू पण्डित का अहाता बस कहने भर को अहाता है। वहां कोई भी निर्बाध आ-जा सकता है। चारदीवारी में जो गेट की जगह है, वहां आजतक कोई दरवाजा/गेट लगा ही नहीं। इसलिये इस नये पड़ोसी को यहां से पानी लेने से कोई रोकता नहीं। आसपास के गांव वाले, बच्चे और पशु आते जाते हैं मानो वह उनके घर का एनेक्सी हो!

बच्चा ट्यूबवेल की हौदी ने पानी निकाल रहा था। बाल्टी उसकी क्षमता से कुछ ज्यादा बड़ी थी।

उस दिन मैंने देखा – पास के घर का एक बच्चा ट्यूबवेल की हौदी ने पानी निकाल रहा था। बाल्टी उसकी क्षमता से कुछ ज्यादा बड़ी थी। थोड़ी दूर तो वह उठा कर ले गया, फिर उसके जोड़ीदार ने साथ दिया और वे दोनो मिल कर आगे बाल्टी ले गये। लगभग 50-60 कदम पर उनका घर है।

अब सरकार कहती है कि हर घर तक नल से पानी की सप्लाई होगी। फिलहाल तो ये बच्चे बीस-पच्चीस मीटर पानी उठा कर ले कर जाते दीखते ही हैं। कहीं कहीं इससे ज्यादा भी दूरी होती होगी। अगर गांव के लोग सरकार के दिये चांपाकल को अपनी व्यक्तिगत सम्पत्ति न मानें और किसी को भी अपने घर के बाहर के चांपाकल से बिना हील-हुज्जत पानी लेने दें तो यह दूरी घट कर दस कदम पर आ सकती है। उत्तर प्रदेश के गांवों में आबादी सघन है और सरकार की दी गयी सार्वजनिक सेवायें बहुत हैं। समस्या गांव वालों की संकुचित प्रवृत्ति ही है।


भगवानपुर में पानी की टंकी बनाने के लिये भी एक जगह चार दीवारी घेरे जाते देखा।

और सरकार घर घर नल से जल पंहुचाने को ले कर गम्भीर भी नजर आती है। अभी उस दिन मैंने भगवानपुर (पास के गांव) में पाइप रखे देखे। लोगों ने बताया कि गांव में ही पानी की टंकी बन रही है जिससे आसपास के दो तीन गांवों को घर घर नल से जल मिलेगा। ये पाइप उसी के लिये आये हैं। कई अन्य स्थानों पर कम व्यास के पाइप भी मैंने गिरे देखे। पानी की टंकी बनाने के लिये भी एक जगह ग्रामसभा की जमीन पर चार दीवारी घेरे जाते देखा। कुल मिला कर घर घर नल से जल के लिये काम तेजी से हो रहा है।

भगवानपुर में रखे पानी की सप्लाई के लिये पाइप

साइकिल से घूमते हुये तीन किमी दूर लसमणा गांव के पास ईंट के खड़ंजा के रास्ते का डामर वाली सड़क में रूपांतरण और उसके किनारे पानी की पाइप बिछाने का काम होते पाया। अच्छी, चौड़ी सड़क बन रही है। उसके साइड में खाई खोद कर पाइप डालने वाले भी काम कर रहे हैं। सवेरे आठ बजे से रात आठ बजे तक उनका काम होता है। ग्रामसभा की एक जगह पर पाइप के बण्डल मुझे नजर आये। कुछ ट्रेक्टर और अन्य वाहन भी थे। एक ट्रेक्टर में खाई खोदने की मशीन – ट्रेंचर – का अटैचमेण्ट भी दिखा। दो लोग उस ट्रेंचर के दांते ठीक कर रहे थे और तीसरा आदमी नीम की दातुन कर रहा था। उन लोगों में से दो तो स्थानीय थे, एक दातुन करने वाला सोनभद्र से आया है। बारह घण्टे की शिफ्ट में वे ट्रेंचर से खाई खोद कर सड़क के किनारे जल निगम के पाइप बिछा रहे हैं।

वे पाइप बिछाने वाले ठेकेदार के आदमी थे। उन्हेंं यह नहीं मालुम कि पानी का बोरवेल और ओवरहेड स्टोरेज टैंक कहां बनेगा। पर यह जरूर है कि उनपर अपना काम खत्म करने का दबाव है।

एक जगह राख थी, जिसमें एक पिल्ला अंगड़ाई ले रहा था। लगता है कि वे लोग यहीं मशीनों के साथ रहते हैं रात में और अपना भोजन भी खुद बनाते हैं। शायद बाटी-दाल आदि।

बनती हुई सड़क की गुणवत्ता और चौड़ाई ठीकठाक थी। पूरी सड़क करीब दो ढाई किलोमीटर की होगी। आधी बन चुकी थी। दो गांवों के बीच में एक मुस्लिम बस्ती पड़ती है। आठ दस घर हैं उनके। वहां भी सड़क और पानी की पाइप पंहुच रही थी। ग्रामीण सुविधाओं में कोई धर्म का भेदभाव तो है नहीं! कोई पण्डितजी मुसलमान बस्ती से गुजरती पाइपलाइन के पानी को अशुद्ध हुआ तो बोलेंगे नहीं! बिना किसी पूर्वाग्रह के नल से जल का स्वागत होगा। जाति-धर्म के बैरियर यूं टूटेंगे! :-)

दो गांवों के बीच में एक मुस्लिम बस्ती पड़ती है। आठ दस घर हैं उनके। वहां भी सड़क और पानी की पाइप पंहुच रही थी। ग्रामीण सुविधाओं में कोई धर्म का भेदभाव तो है नहीं!

सड़क और पाइप से जल अगले लोक सभा चुनाव के पहले तो कार्यरत हो ही जायेंगे। इस तरह के कई अन्य काम भी अगले साल चुनाव तक पूरे होंगे। शायद इण्टरनेट कनेक्टिविटी बेहतर हो जाये। बिजली की उपलब्धता समाजवादी शासन से कहीं बेहतर हो ही गयी है। कुल मिला कर अगले चुनाव में इन सब के बल पर फ्रण्ट-फुट पर खेलेगी शासन करती पार्टी और सरकार का विरोध करता विपक्ष किसी को अपनी आलोचना से अपने पक्ष में नहीं कर पायेगा।

घर घर नल से जल और बेहतर सड़क-बिजली से बहुत फर्क पड़ेगा जनता के सोचने में। सारा खेल परसेप्शन का ही तो है।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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