दैनिक जरूरतें हैं – आटा, दाल, चावल, सब्जी, दूध। जब इनकी कीमतें बढ़ती हैं तो उनको सस्ता पाने के विकल्प तलाशने में लग जाते हैं हम। यह पोस्ट उसी कवायद पर है।
अमूल ने दूध के रेट बढ़ा दिये हैं। पाउच का दूध अब मुझे 68 रुपये किलो मिल रहा है। हम दो लोग गांव में रहते हैं और हमारी दूध की जरूरत कम है। फिर भी एक किलो रोज लग ही जाता है। बहुत कोशिश करते हैं कि ज्यादा से ज्यादा ग्रीन चाय, बिना दूध वाली पी जाये, पर तब भी दिन में पांच छ बार दूध वाली चाय बनती ही है। कोई न कोई आ जाता है। उन्हें चाय पिलाने के साथ खुद भी पीते हैं। दूध की खपत, जितनी है, कोशिश की पर पाया कि रोकी नहीं जा सकती।
गांव में रहते हुये दूध को ले कर परेशानी?! लोग चट से सलाह देते हैं कि एक गाय पाल लीजिये। जिस आदमी ने जिंदगी भर रेलगाड़ी हाँकी हो, उसे गाय पालने को कहना उपयुक्त सलाह नहीं है। कोई अन्य गाय पाल रहा हो और उसपर ब्लॉग लिखना हो – वह मैं कर सकता हूं। खुद गाय पालना नहीं हो पायेगा। … और चूंकि कोई बहुत बाध्यता नहीं है इसे बतौर व्यवसाय करने की, इस काम में हाथ लगाना उचित नहीं लगता।
मैं अमूल के पाउच का बाजार का विकल्प तलाशने निकला। यहां बाल्टा वाले दूध इकठ्ठा कर उसे स्थानीय लोगों को बेचने और बचे दूध को बनारस बेच कर आने का काम करते थे। मेरे आसपास ही तीन चार दर्जन बाल्टा वाले सक्रिय थे। पर पिछले एक डेढ़ साल में विभिन्न डेयरियों के दूध कलेक्शन सेण्टर खुल गये हैं। उनमें दूध की गुणवत्ता के आधार पर को-ऑपरेटिव से जुड़ने वाले दुधारू पशु पालकों को पेमेण्ट मिलता है। सो, बाल्टा वालों का बिजनेस बंद हो गया है। पाउच के दूध का विकल्प तलाशने के लिये मैंने दूध कलेक्शन सेण्टर का रुख किया। क्या पता सेण्टर वाला अपने क्रय मूल्य में कुछ जोड़ कर मुझे नियमित दूध देने को तैयार हो जाये।

घर से 800 मीटर दूर अमूल का कलेक्शन सेण्टर है। डेयरी सप्ताहिक आधार पर सेण्टर पर दूध जमा करने वाले सदस्यों को पेमेण्ट करती है। पर पशुपालक दैनिक आधार पर पेमेण्ट चाहते हैं। लिहाजा, कलेक्शन सेण्टर के अनुज यादव ने बताया कि सेण्टर को चलने में दिक्कत आ रही है। ज्यादा लोग नहीं जुड़ पा रहे। उस सेण्टर पर मैंने अनुज से बात की तो वे तैयार हो गये मुझे खुदरा दूध देने को। उन्होने मुझे अमूल की वह लिस्ट भी दिखाई, जिसमें अमूल के रेट लिखे हैं। अमूल दूध के फैट और एसएनएफ प्रतिशत के आधार पर पेमेण्ट करता है को-ऑपरेटिव मेम्बर्स को। उस लिस्ट के अनुसार मुझे 6प्रतिशत फैट वाला भैंस का दूध 55 रुपये में मिल जाना चाहिये। कुल मिला कर अमूल के पाउच के रेट से लगभग 20 प्रतिशत की बचत। मुझे लगा कि मैंने दूध के दाम की मंहगाई का हल निकाल लिया है। … आखिर मुझे दूध चाहिये। अमूल का आकर्षक पाउच या पॉश्चराइजेशन की प्रक्रिया का लाभ नहीं। मैं अपने डोलू में दूध ले कर आ सकता हूं और घर लाने पर उसे तुरंत उबाल कर कीटाणुरहित बना सकता हूं। दो घण्टे पहले गाय या भैंस के थन से निकला दूध बेहतर है अगर वह सस्ता मिल सके।
पर वैसा हुआ नहीं। अनुज के पास जब दूध लेने गया तो भैंस का दूध 4.4प्रतिशत फैट वाला था। जरूर किसान ने भैंस को पर्याप्त पौष्टिक चारा नहीं खिलाया था। मुझे वह दूध 45 रुपये प्रति किलो का पड़ा।
अगर डेयरी अच्छा रेट लगा कर दूध खरीद रही है, तो किसानों/ग्वालों को बेहतर पशुपालन की ओर प्रवृत्त होना चाहिये और उन्हें पर्याप्त चूनी-चोकर-चारा-पशु आहार खिलाना चाहिये। वह सोच लोगों में नहीं है। पशुओं को घर का लेफ्ट-ओवर ही मिलता है सामान्यत:। उन्हें अच्छे से पालने और उससे लाभ उठाने की सोच की ओर लोग प्रवृत्त हो रहे हैं? लगता नहीं। 😦
अनुज की दुकान से आगे चला तो साइकिल की दुकान पर पंक्चर बनवाते समय उमरहा गांव के अनिल शर्मा मिल गये। साइकिल में धीरे धीरे हवा निकल रही थी और चेक करने पर बड़ी मुश्किल से पता चला साइकिल में बहुत महीन पंक्चर था। देर तक इंतजार करने में एक बुलबुला निकलता था पानी में ट्यूब चेक करते समय। अनिल शर्मा अपनी साइकिल बनवाने आये थे और मेरी साइकिल में पंक्चर तलाशते दुकानदार को ध्यान से देख रहे थे। बोले – ई चोर पंचर बड़ा दु:ख देथअ (चोर पंक्चर बहुत दुख देता है। लगता है पंक्चर नहीं है पर बार बार हवा निकल जाती है)।

चोर पंक्चर – पहली बार यह टर्मिनॉलॉजी सुनी मैंने। अपनी पॉकेट नोटबुक में मैंने यह शब्द लिखा और इसी के साथ अनिल शर्मा से बातचीत प्रारम्भ हो गयी।
यह जानने पर कि मैं दूध के लिये विकल्प तलाश रहा हूं, अनिल ने कहा – चच्चा, ई अमूल वालन के छोडअ। ई सरये अंगरा दर्रत हयें (चाचा, इन अमूल वालों को त्याग दीजिये, ये आप पर अंगारे मसल रहे हैं)।
अनिल के अनुसार मैं तितराही के मोड़ पर मड़ैयाँ डेयरी पर जाऊं – “वह कलेक्शन सेण्टर अपने मिल्क प्रॉसेसिंग प्लांट के लिये दूध खरीदता है और आपको पचपन रुपये किलो दे देगा भैंस का दूध। गाय का चालीस-पैंतालीस रुपये में। बढ़िया शुद्ध दूध।” अनिल खुद अपना गाय का दूध उस डेयरी पर दे कर आ रहे थे।
अनिल ने बताया कि उनके पास चार गायें हैं। गाय पालन के धंधे के इतर हेजिंग के लिये उन्होने मुर्गीपालन भी शुरू किया है। गाय के व्यवसाय में घाटा हो तो मुर्गी से पूरा हो जाये। मोबाइल फोन अनिल के पास नहीं है। उन्होने कहा – “दिन भर काम में निकल जाता है। किसी से बात की फुर्सत कहां है, चच्चा! यह तो आज साइकिल बिगड़ गयी तो यहां आया हूं, वर्ना कहीं आना-जाना भी नहीं होता। घर में पत्नी, दो बच्चें और माता-पिता हैं। सब मेरे काम पर ही निर्भर हैं। काम तो करना ही होता है।”
मैंने तय किया कि मैं अनुज की अमूल डेयरी को भी टटोलूंगा और तितराही वाली मड़ैयाँ डेयरी को भी।

तितराही वाली मड़ैयाँ डेयरी मेरे घर से डेढ़ किमी दूर है। नेशनल हाईवे पर ही उसका बोर्ड दिखता है। मैं वहां गया तो वहां के कर्ताधर्ता अजय पटेल मिले। डेयरी पर बाहर बोर्ड पर समय लिखा है सवेरे 8 से 11 बजे तक। अजय ने मुझे बताया कि वे साढ़े छ बजे आते हैं सेण्टर खोलने। पास के पठखौली गांव में रहते हैं। पच्चीस दिन पहले खुली है उनकी डेयरी। दूध ले कर वे कपसेटी के अपने प्लांट में भेजते हैं। वहां पनीर, छेना, पेड़ा आदि बनाया जाता है। शादी-विवाह में सप्लाई भी होता है और बचा दूध पराग-अमूल आदि व्यवसायिक संस्थानों को बेचा जाता है। कपसेटी में उनकी खुद की जरूरत 10 हजार लीटर की है।
अजय ने अपने सेण्टर पर मुझे फ्रीजर भी दिखाया जिसमें 600 लीटर भैंस और 200लीटर गाय का दूध जमा करने की क्षमता है। एक जेनरेटर भी पास में पड़ा था, बिजली न आने पर शीतक को चालू रखने के लिये। मेरा सोचना है कि इस तरह के कई और कलेक्शन सेण्टर भी होंगे मड़ैय्या डेयरी के।



मैंने अजय को कहा कि एक किलो भैंस का दूध ले कर मैं अजमाना चाहता हूं। पर मेरे पास लेने के लिये बर्तन नहीं है। उसका उपाय अजय ने एक प्लास्टिक की पन्नी में एक किलो दूध मुझे दे कर किया। मैंने पचपन रुपये मोबाइल एप्प के माध्यम से उन्हें दिये। अजय कैश पसंद करते हैं। “कलेक्शन सेण्टर पर दूध देने वालों को कैश ही देना होता है। तो जरूरत कैश की होती है।” – अजय ने कहा।
अनुज और अजय की डेयरी कलेक्शन सेण्टर के दूध घर पर गर्म किये गये। क्रमश: 4.4प्रतिशत और 6.7प्रतिशत फैट के अनुसार ही मलाई दूध में पड़ी। दो दिन की विकल्प तलाश का परिणाम यह हुआ कि दो ठीकठाक विकल्प मुझे मिल गये।
अगर मैंं शहर में रह रहा होता तो ये विकल्प मुझे नहीं मिलते। पर इसका अर्थ यह नहीं कि गांव शहर से बेहतर है। कुछ शहर में अच्छा है, कुछ गांव में। मैं गांव में रहते हुये डिस्टोपिया से यूटोपिया की विभिन्न कल्पनाओं के बीच इधर उधर होता रहता हूं। पर शायद बेहतर यह है कि अपने आसपास के परिदृष्य का परिवर्तन मनोविनोद की भावना के साथ देखा जाये। अनुज, अनिल और अजय – सब से मिला जाये। मैत्री की जाये और जो कुछ हो रहा है, उसमें रस लिया जाये। दूध के विकल्प की तलाश उसी रस लेने का एक जरीया होना चाहिये।
मैं अपनी यह बात अपनी पत्नीजी से कहता हूं तो उनका उत्तर होता है – यही तो मैं तुमसे जिंदगी भर कहती रही। पर तुम्हारे पास तो रेलगाड़ी हाँकने के अलावा कोई सोच थी ही नहीं। यह तो अब कुछ इधर उधर देखने लगे हो! पत्नीजी को तब भी मुझसे कष्ट था, जब मैं घर की समस्याओं की ओर देखता भी नहीं था और अब भी है जब मैंं साइकिल उठा कर आसपास दूध का विकल्प देख रहा हूं। 🙂
अगले दिन –
अनुज यादव ने 6.7प्रतिशत फैट वाला दूध मेरे लिये रखा था। मैंने अमूल की कलेक्शन की दर वाली लिस्ट के आधार पर उनसे बात की। उन्हें कहा कि रोज मुझे 6% से अधिक फैट वाला भैंस का दूध दें। मोटे आधार पर तय किया जाये तो पचपन रुपया लीटर की रेट से मुझे देने पर अनुज को 5 प्रतिशत से ज्यादा मिलेगा जब कि बकौल उनके अमूल दो प्रतिशत देता है।
अनुज ने मेरा प्रस्ताव मान लिया है। वे मुझे 6+ प्रतिशत वसा का दूध 55 रुपये किलो की दर से देंगे और महीने के हिसाब से उसका पेमेण्ट लेंगे। मुझे लगा कि इस सौदे से अनुज भी प्रसन्न हैं और मैं भी। हम दोनो के लिये यह विन-विन सिचयुयेशन (win-win situation) है। 🙂
तो, यह थी दैनिक दूध के विकल्प की तलाश!
Sir, all your effort is futile.
If you want pure milk, you will have to own a cow. Any milk being sold at less than Rs 100 a litre is bound to be spurious as it doesn’t give elbow-room to the farmers to be honest. Try doing calculations for one lactation cycle of a cow, you will get my point.
LikeLiked by 1 person
मेरे पास पूरा इनपुट डाटा नहीं है. अगर आपके पास है तो कृपया देने का कष्ट करें.
बहुत से लोग आप जैसी बात कहते हैं पर बहुत से लोग डेयरी बिजनेस में लगे हुए हैं. उनका बिजनेस मॉडल क्या है? 🤔
शायद value added products बनाना और उसकी बिक्री हो.
LikeLike