नौजवान है वह। बताता है कि वैशाली, बिहार का है पर पूर्वांचल के इस एरिया में पिछले दस बारह साल से है। मेरे साले साहब का पेट्रोल पम्प कमीशन होने वाला है। उसकी सम्भावना के अनुसार ही बगल में उसने गुमटी खोल ली है। चार चक्का और मोटर साइकिल में हवा चेक कर भरना और यदा कदा पंक्चर बनाने का काम करता है। अभी, जब पेट्रोल पम्प चालू नहीं हुआ है, उसे “कामचलाऊ काम” मिल रहा है। खाने भर को हो जा रहा है, बस। कमाई नहीं है।

जितना इंतजार हमें है कि पेट्रोल पम्प चालू हो, उतना ही उसे भी है। मेरी बजाय उसे शायद ज्यादा मालुम हो कि एनएचएआई के किस दफ्तर में किस बारे में मिसिल अटकी पड़ी है! मेरे साले साहब एनएचएआई से नो ऑब्जेक्शन सर्टीफीकेट लेने के लिये कोई सत्त की लड़ाई नहीं लड़ रहे, पर उस विभाग की नौकरशाही की तुनुकमिजाजी से निपटने में पसीने जरूर छूट रहे हैं। उस चक्कर में, उनके बिजनेस पर पिग्गीबैकिंग करने वाला यह नौजवान – मुहम्मद दाऊद अंसारी – भी लटक गया है।
पूरी सर्दी, कोहरे में गुमटी का शटर गिरा कर अंदर सोते पाया है सवेरे मैंने। आजकल भी, जब बिजनेस मामूली ही है, उसे देर से उठते पाता हूं। साइकिल से मैं गुजरता हूं तो मुस्कुरा कर वह हाथ हिलाता है। मैं भी उसका प्रत्युत्तर देता हूं। मित्र हो गया है वह मेरा।
स्मार्ट लगता है वह। पैण्ट-टीशर्ट और हूडी पहने। हाथ में स्मार्टफोन और गले में ब्ल्यूटूथ वाला नेकबैण्ड। गठा हुआ शरीर। किसी रोमान्टिक उपन्यास या फिल्म का पात्र हो सकता है।
पहली बार जब उससे मैंने साइकिल रोक कर बात करने की गर्ज से कुछ पूछा था तो वह अनमना सा उत्तर दे रहा था। उसके साथ मोबाइल पर वीडियो देखते गांव के दो और लड़के थे। उनमें से एक ने मुझे प्रणाम किया और इस बंदे को कोहनियाया – अबे, पेट्रोल पम्प के मालिक हैं, बे!
तब वह उठ कर मेरे पास आया और अपना परिचय भी दिया। ब्लॉगपोस्ट लिखने के लिये फिट पात्र था वह। पर न जाने कैसे महीने गुजर गये और उसपर लिखना रह गया। आज वहां से गुजरा तो सोचा, लिख ही दिया जाये मुहम्मद दाऊद अंसारी पर।
उससे मैंने टायरों की मीनार के बारे में पूछा। मुहम्मद दाऊद ने कहा कि वह तो केवल साइन बोर्ड जैसा है। लोगों को पता चले कि यहां हवा भरने का और पंचर बनवाने का साधन मौजूद है। बस।
मेरे वाहन में यदाकदा हवा भरानी होती है। मैं उसे पैसा देने की कोशिश करता हूं। उसकी गुमटी में ‘फोन पे’ की स्कैन करने वाली तख्ती दिखती है। तख्ती लाने को कहता हूं, पर वह पैसा लेने से मना कर देता है। “आप से क्या लेना। … लेना होगा तो फिर कभी। … पैसा आ जायेगा चच्चा; आप टेंशन न लो!” – वह इस तरह का कुछ न कुछ कहता है। अच्छा नहीं लगता मुझे। पर बार बार कोशिश करने पर भी उसे पेमेण्ट नहीं कर पाता।


मैंने आसपास के पांच छ और हवा भरने वाली गुमटियां देखीं। वे सभी बिहार के नजर आये। मुजफ्फरपुर या वैशाली के। उनमें से एक, अशरफ, ने बताया कि पुराने टायर नये करने (रीट्रेडिंग) का काम भी वह करता है।
उसके बारे में जानने पर मैंने आसपास के पांच छ और हवा भरने वाली गुमटियां देखीं। वे सभी बिहार के नजर आये। मुजफ्फरपुर या वैशाली के। उनमें से एक, अशरफ, ने बताया कि पुराने टायर नये करने (रीट्रेडिंग) का काम भी वह करता है। पुराने टायर बनारस की कम्पनी को भेजता है। कम्पनी वाला आ कर पुराने टायर ले जाता है।
पर मुहम्मद दाऊद ने कहा कि वह रीट्रेडिंग का काम नहीं करता। शायद रीट्रेडिंग भी उस टायर की होती हो, जिसमें थोड़ी जान बची हो!
खैर, मुहम्मद दाऊद के बहाने एक नये प्रकार के नौजवानों के बारे में जानने की जिज्ञासा जगी है। अगर मैं पेंशनयाफ्ता न होता और पढ़ाई कर रहा होता तो इन लोगों के समाजशास्त्रीय अध्ययन के लिये कोई पीएचडी-सीएचडी करने की सोचता। फिलहाल तो देखें कब मुहम्मद दाऊद के साथ उठना बैठना होता है। टुन्नू पण्डित का पेट्रोल पम्प चलने लगे और वहां एक दो घण्टे गुजारने के लिये एक कुर्सी और एक दो कप चाय का जुगाड़ होने लगे तो शायद उससे कोई लम्बी बातचीत हो। फिलहाल इंतजार किया जाये! 😀
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