मड़ैयाँ डेयरी का दूध कलेक्शन सेण्टर और लड़कियां

मुझे गांव में शिफ्ट हुये सात साल हो गये हैं। जब आया था तब खेतों में झुण्ड बना कर काम करती लड़कियां दिखती थीं। पर साइकिल ले कर स्कूल जाती नहीं। अब वे बहुत संख्या में नजर आती हैं। बारह से सोलह साल की लड़कियां।

अब सवेरे छ बजे दूध डेयरी के कलेक्शन सेण्टर पर लड़कियों को आते देखता हूं। चार किमी दूर से भी साइकिल चला कर अकेले, बर्तनों में दूध लियी आती हैं।

लड़कियों के आत्मविश्वास के स्तर में भी गजब का बदलाव है। उन्हें लड़कों-आदमियों की तरह निरर्थक हीहीफीफी करते नहीं पाता; पर अपना काम बड़ी दक्षता से करती हैं। कोई घटना इस प्रकार की नहीं देखी जिसमें किसी ने उनकी जगह अपना बाल्टा लाइन में आगे सरका लिया हो। दूध की नापजोख के बारे में भी उन्हें सतर्क पाता हूं। पैसे का हिसाब किताब दुरुस्त है।

दूध देने के लिये लाइन में लगे बर्तन – बाल्टे।

उनके पहनावे में भी बदलाव है। सलवार कुरता की बजाय टॉप और जींस दिखते हैं। कोई कोई दुपट्टा लिये होती है पर वह भी अनिवार्य की जगह ऑप्शनल ही है। दूध सेण्टर पर देने के बाद ये लड़कियां घर पर काम भी करती होंगी और पढ़ाई भी करती होंगी। अनपढ़ जैसी तो नहीं ही हैं।

गांव के समाज में लड़कियों का दर्जा अभी भी (निकम्मे) लड़कों की तुलना में कुछ कम ही है; पर ये लड़कियां जल्दी ही उस गैप को भरती जा रही हैं। अपेक्षा से अधिक तेजी से।

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जितने लोग आते हैं दूध कलेक्शन सेण्टर पर देने के लिये उसमें आठ-दस प्रतिशत ये लड़कियां होंगी। इनके अलावा कुछ बड़ी महिलायें भी आती हैं।

लड़कियों में ही बदलाव क्यों कहा जाये? मातापिता भी अब लड़की को साइकिल ले कर डेयरी भेजने के लिये राजी हो गये हैं। यह बड़ी बात है। एक पीढ़ी पहले लड़की क्या, महिला भी गांव में अकेले नहीं निकल सकती थी।

बड़ी तेजी से आया है यह बदलाव।

चित्रों में मड़ैयाँ डेयरी के कलेक्शन सेण्टर पर सबसे दांये और बायें दूध के बर्तन ले कर आयी लड़कियां ही हैं।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring rural India with a curious lens and a calm heart. Once managed Indian Railways operations — now I study the rhythm of a village by the Ganges. Reverse-migrated to Vikrampur (Katka), Bhadohi, Uttar Pradesh. Writing at - gyandutt.com — reflections from a life “Beyond Seventy”. FB / Instagram / X : @gyandutt | FB Page : @gyanfb

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