सवेरे हम – मेरी पत्नीजी और मैं – सवेरे की चाय घर के पोर्टिको में बैठ पीते हैं और चिड़ियों को रोटी-नमकीन-दाना भी डालते हैं। अपने आसपास चिड़ियों और गिलहरियों को घूमते-मंडराते देखना बहुत अच्छा लगता है। सवेरे का वह आधा पौना घंटा पूरे दिन के लिये हमें चार्ज कर देता है। कई सालों से यह रुटीन चल रहा है।
जब भी चिड़ियों को नमकीन डालने की कोई पोस्ट सोशल मीडिया पर पंहुचती है तो कोई न कोई सज्जन टिप्पणी कर बैठते हैं – यह आप गलत कर रहे हैं। चिड़ियों और गिलहरी के लिये नमक नुक्सानदायक है। उनकी किडनी खराब कर रहे हैं आप।
हमारी चिड़ियां नमकीन एडिक्ट हो गयी हैं। उन्हें मक्का, अलसी, बाजरा और अन्य दाने देने की कोशिश हमने की पर उन्हें पसंद नहीं आई। उन्होने छुआ भी नहीं। अंतत अनवांटेड कबूतरों की जमात ने ही खाया वह सब।
खैर, हमने सोशल मीडिया का निरादर नहीं किया। उन शुभचिंतकों की सलाह पर अमल किया। कड़े प्रसाद जी, जो गांव में हमारे लिये नमकीन बना कर लाया करते थे, को कहा गया कि वे फीकी नमकीन बना कर दें। वे बना कर लाये भी। उनकी फीकी नमकीन इतनी अच्छी लगी कि हमने चिड़ियों को ही नहीं, खुद के लिये भी प्रयोग करनी प्रारम्भ कर दी। पर कड़े प्रसाद फीकी नमकीन नियमित नहीं दे पाये। उनके पास फीकी नमकीन का कोई और ग्राहक नहीं था। हमारी फीकी नमकीन की मांग – महीने में तीन किलो, उनकी प्रोडक्शन लाइन के लिये उपयुक्त मात्रा नहीं थी। वे सप्लाई करने में आनाकानी करने लगे।
तब हमने गांव की गुमटी वाले राजेश को इस काम के लिये पकड़ा। राजेश के यहां से हम कच्चे समोसे लाते रहे हैं। वे समोसे ला कर घर में तला करते थे। उससे समोसे बनाने का झंझट नहीं होता था और घर के तेल के कारण गुणवत्ता भी सही होती थी। राजेश ने फीकी नमकीन बनाने को मान लिया।
राजेश के साथ एक ही दिक्कत है – वह ऑर्डर समय पर नहीं पूरा करता। हमें कई बार तगादा करना पड़ता है। पिछली बार तो उसकी पंडिया मर गई थी। उसके चक्कर में दो सप्ताह उसकी गुमटी बंद रही और दो सप्ताह बाद उसने फीकी नमकीन बना कर दी। इस बार भी गांव में धोबियान में किसी की पतोहू मर गयी थी। पता नहीं उसके शोक में राजेश दुबे ने क्यों अपनी गुमटी बंद कर रखी थी। अब एक सप्ताह बाद आज उससे दो किलो फीकी नमकीन मिली है।
चिड़ियों के लिये ऐसी मशक्कत कौन करता है जी? हम भी न करते। पर रिटायर होने पर और कोई काम तो है नहीं, सो यही सब कर रहे हैं! 😆
दो किलो फीकी नमकीन एक महीना चलानी है। उसके हिसाब से प्रतिदिन चिड़ियों का राशन 65 ग्राम का बनता है। पैंसठ ग्राम फीकी नमकीन मैने घर पर तोली। जितनी क्वांटिटी तोल में आई वह एक दिन के हमारे अंदाज के अनुरूप ही है। उतनी नमकीन को रखने के लिये एक एयरटाइट डिब्बा भी तलाश लिया गया। कभी बाहर डिब्बा छूट जाने पर छोटी चिड़ियां तो नहीं, पर कौव्वे जरूर डिब्बे को उलटते पलटते हैं। अच्छे से बंद होने वाले डिब्बे को वे खोल नहीं पायेंगे।
गिलहरियां बड़ी बदमाश हैं। वे मौका पा कर हमारा बदाम-अखरोट भी कुतर जाती हैं। अपने बच्चे जनने के लिये जो आशियाना बनाती हैं उसके लिये हमारी जुराब भी चुरा ले जाती हैं। चरखियां तो शोर बहुत करती हैं। बुलबुल और रॉबिन जैसी छोटी चिड़ियों को धकिया देती हैं। कौव्वे महा कांईया हैं। मौका पाने पर वे हमारी सभी भोजन सामग्री चट कर जाते हैं। पर ये सब सवेरे का मनोरंजन करते हैं। उन्हें देखने निहारने में सलीम अली जैसी ओरिंथोलॉजिस्ट होने की प्राउड-फीलिंग मन में आती है! इसी के लिये फीकी नमकीन बनवाने, राजेश तो तगादा करने, एयरटाइट डिब्बा तलाशने और पैंसठ ग्राम नमकीन तोलने की मशक्कत हम कर रहे हैंं।
मुझे यकीन है कि हमारे घर की दो-तीन दर्जन छोटी बड़ी चिड़ियों और गिलहरियों की किडनी फीकी नमकीन से स्वस्थ्य रहा करेगी। वैसे, सलीम अली वाली नजर से देखें तो फीकी नमकीन की बजाय सामान्य नमकीन इनको ज्यादा पसंद है। अगर दोनो डाली जायें तो पहले नमक वाली नमकीन खतम की जाती है। दोनो को मिला कर डाला जाये तो चरखियां नमक वाली नमकीन पहले बीनती हैं। कौव्वे जरूर लद्धड़ हैं। वे सब कुछ एक साथ, सम भाव से चट कर जाते है!
खैर, फीकी नमकीन की उपलब्धता राजेश की गुमटी के कारण, लगता है, नियमित हो गयी है!
ये नया कांसेप्ट अच्छा है.
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रोचक। फीकी नमकीन और उसके बहाने अलग अलग चिड़ियों के किरदार हमें जानने को मिल गए।
वैसे फीकी नमकीन भी रोचक शब्द है। अभी बैठा बैठा यही सोच रहा हूं नमकीन मतलब वो जिसमें नमक हो। अगर नमक ही न होगा तो क्या उसे नमकीन कहना ठीक होगा?? या कुछ और ही शब्द होगा उसके लिए?? कोई भाषा विद ही बता पायेगा ये तो…
ब्लॉग में राजेश दुबे जी के बारे में जाहिर की आपकी जिज्ञासा काफी कुछ सोचने को भी दे जाती है। विशेषकर मुझ जैसे व्यक्ति को जो कि अपराध साहित्य काफी पढ़ता है। बंद गुमटी का रहस्य…नाम से अच्छी अपराध कथा तो लिखी ही जा सकती है। हा हा हा…
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राजेश की गुमटी अपने आप में उपन्यास है! 🙂
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👌🏽
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प्रकृति के नजदीक होने का भी अलग ही आनंद है.
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जी, सही माने में वही आनंद है!
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