एक पुरनिया आदमी, जिसका पुस्तकों से साथ रहा हो; जो शब्दों को ओढ़ता बिछाता रहा हो वह अपने अनुभवों की अहमियत अच्छे से जान और उन्हे व्यक्त कर सकता है। बयानबे साल की उम्र के समग्र अनुभव कोई कम नहीं होते!
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लघुभ्रमणिका
आगे भगवानपुर की ओर कोहरे की एक पट्टी नजर आती है। मानो सलेटी रंग का कोई बहुत मोटा अजगर जमीन पर लेटा और धीरे धीरे रेंग रहा हो। उसके पीछे सूर्योदय हो चुका है। पर उनका ताप कोहरे के अजगर को खतम नहीं कर सका है।
अतिवृष्टि, रात, सवेरा और माधव गाडगिल
बारिश हो रही है, फिर तेज और फिर और तेज। आज होती रहेगी। बाजार जाना है। शायद वह न हो पाये। सामान्य से अलग दिन ज्यादा अच्छा लगता है!
… मैं फिर पुस्तक कर लौटता हूं। क्या किया जाये? माधव गाडगिल जी की किताब खरीद ली जाये?!
