कछार में इस पार लोग सब्जियां लगाते थे। हाथ से ही गड्ढा खोदते, बीज डालते और खाद-पानी देते थे। पिछली बरस कल्लू-अरविन्द और उसके पिताजी को डीजल जेनरेटर/पम्पिंग सेट के माध्यम से गंगाजी का पानी इस्तेमाल कर सिंचाई करते देखा था। इस साल देखा कि उनके कुछ हिस्से में ट्रैक्टर से गुड़ाई कर कुछ बीजContinue reading “कल्लू ने मटर बोई है!”
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देव दीपावली की सुबह और कोहरा
कल कार्तिक पूर्णिमा थी। देव दीपावली का स्नान था घाट पर। सामान्य से अधिक स्नानार्थियों की भीड़। पर कोहरा बहुत घना था। कछार की माटी/रेत पर मोटी परत सा फैला था। घाट की सीढ़ियों से गंगामाई की जल धारा नहीं दीख रही थी। लोग नहाने के लिये आ जा रहे थे, लगभग वैसे ही जैसेContinue reading “देव दीपावली की सुबह और कोहरा”
जर्जर खण्डहर
लोग हैं जो इस पोस्ट के शीर्षक में ही दो शब्दों के प्रयोग में फिजूलखर्ची तलाश लेंगे। पर वह जर्जर है यानी वह मरा नहीं है। मूर्त रूप में भी अंशत: जिन्दा है और मन में तो वह मेरा बचपन समेटे है। बचपन कैसे मर सकता है?[1] पर यह ख्याली पुलाव है कि वह जिन्दाContinue reading “जर्जर खण्डहर”
