फरवरी 2009 में एक पोस्ट थी, नया कुकुर । भरतलाल एक पिल्ले को गांव से लाया था और पुराने गोलू की कमी भरने को पाल लिया था हमने। उसका भी नाम हमने रखा गोलू – गोलू पांड़े। उसके बाद वह बहुत हिला मिला नहीं घर के वातावरण में। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की कबीर उसने आत्मसातContinue reading “नया कुकुर : री-विजिट”
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आंधी के बाद – यथावत
कल आंधी थी कछार में। आज सब यथावत हो गया था। सूर्य चटक केसरिया रंग में थे। आज थोड़ा मेक-अप के साथ चले थे यात्रा पर। चींटों को देखा तो रेत में अपनी बिल संवारने में जुट गये थे। मुझे देख शर्मा गये। बिल में यूं गये कि काफी इंतजार के बाद भी नहीं निकले।Continue reading “आंधी के बाद – यथावत”
आंधी के बीच – भय और सौन्दर्य
आज सवेरे फंस गये रेत की आन्धी के बीच। घर से जब निकले तो हवा शांत थी। घाट की सीढ़ियां उतर गंगा की रेती में हिलते ही तेज हो गयी और सौ कदम चलते ही तेज आंधी में बदल गयी। दृष्यता पांच दस मीटर भर की रह गयी। रेत में आंख खोलना भारी पड़ गया।Continue reading “आंधी के बीच – भय और सौन्दर्य”
