आज के चरित्र थे अजय दुबे। वे पांच सात अलग अलग पशुओं का दूध अलग अलग डिब्बों में ले कर आये थे। सब की पर्चियां एक साथ निकलीं। एक मीटर लम्बा था प्रिण्ट आउट। सब पर अंकित मूल्य को मैंने जोड़ा तो नौ सौ- हजार के आसपास निकला।
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लहसुन का फेरीवाला
“गांव-गली आवाज लगा कर बेचूंगा। सामने क गांव में जाई क चोंकरब। जेके लई के होये, ऊ ले। (सामने के गांव में जा कर चिल्ला कर आवाज लगाऊंगा। जिसे लेना हो, लेगा।”
गुनरी और मड़ई
थोड़ी देर मैंने इंतजार भी की कि जिसकी मड़ई है वह आ जाये तो कुछ बात हो और उसका इस मड़ई में सोने का ध्येय पता चल सके।
पर मड़ई और गुनरी अपने आप में सुंदर हैं। कौन बनाता होगा गुनरी? एक दो मुझे भी बनवानी हैं अगली सर्दियों के लिये।
