सच तो यह है कि न जाने कितनो की रोजी रोटी उनसे जुड़ी हुई है और उन सबके घर में शाम का चूल्हा उनके अथक परिश्रम से जलता है। उनका बीमार होना उन सबके मानसिक पटल पर भी एक तनाव लाता होगा।
ऐसे कर्मठ लोगों की समाज को बहुत आवश्यकता है।
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मैं सवेरे उठता कैसे हूं?
यही मेरे कर्मकाण्ड हैं। यही मेरा धर्म। … बस। चारधाम की यात्रा, किसी मंदिर देवालय में जाना, किसी धार्मिक समारोह में शरीक होना – यह मेरी सामान्य प्रवृत्ति नहीं है और उनके लिये सयास कर्म नहीं करता। हां, उन्हें जड़ता या उद्दण्डता से नकारता भी नहीं।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन सम्पन्न – प्रेमसागर पर अंतिम पोस्ट
जो भी हो; पिछले लगभग चार महीने प्रेमसागर के साथ यात्रा जुगलबंदी ने मुझे बहुत फायदा दिया है। उनकी यात्रा न होती तो मैं रीवा, शहडोल, अमरकण्टक और नर्मदीय क्षेत्र, भोपाल, उज्जैन, माहेश्वर, गुजरात और सौराष्ट्र की मानसिक यात्रा कभी न कर पाता।
