रिश्ते स्थायी नहीं होते. हम सोचते हैं कि मित्रता शाश्वत रहेगी, पर वैसा नहीं होता. इसी प्रकार दुश्मनी भी शाश्वत नहीं होती. अत: दुश्मन से व्यवहार में यह ध्यान रखो कि वह आपका मित्र बन जायेगा. और मित्र में भविष्य के शत्रु की संभावनायें देख कर चलो.
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दीनदयाल बिरद संभारी
अर्जुन विषादयोग का समाधान ‘मामेकं शरणमं व्रज:’ में है.
