भरतलाल शर्मा का केस आपने देखा. हम सब में भरतलाल है. हम सभी अपनी माली हैसियत दिखाना चाहते हैं. हम सब में सामाजिक स्वीकृती और प्रशंसा की चाह है. हम सब समाज के हरामीपन (जो मुफ़्त में आपका दोहन करना चहता है) से परेशान भी हैं.
जब कभी द्वन्द्व में फसें, तब बड़े मनीषियों की शरण लेनी चहिये.
ऐसे में, मुझे माधव पंड़ित की सुध हो रही है. वे श्री अरविन्द आश्रम, पॉण्डिच्चेरी से जुडे़ संत थे. अनेक ग्रंथ हैं उनके. मैं जिस पुस्तक की चर्चा करना चहता हूं, वह छोटी सी है – लाइफ ब्युटीफुल (सुन्दर जीवन). इस सवा सौ पेज की किताब में १२ पेज का खण्ड है – लेसंस इन माई लाइफ. इस खण्ड में ४ छोटे-छोटे लेख हैं. ये लेख श्री पंडित ने एक मित्र के विशेष आग्रह पर लिखे थे. ये लेख अत्यन्त सरल भाषा में हैं. इन लेखों में बहुत कुछ है जो भरतलाल के सिण्डरॉम की दवा है. कुछ अंश देखें:
- कभी अपनी वस्तुयें (विशेषकर पैसा) अपने मित्रों और संबंधियों (विशेषकर संबंधियों) को उधार न दें. यद्यपि इन मामलों में पहले हार्दिक धन्यवाद व्यक्त होगा, पर बाद में लौटाते समय सामान्यत: अनिच्छा व कड़वाहट होगी जो संबंधों को तनावग्रस्त कर देगी. अगर आप उपकृत करने की दशा में हैं तो उपहार दें, पर उधार न दें.
- रिश्ते स्थायी नहीं होते. हम सोचते हैं कि मित्रता शाश्वत रहेगी, पर वैसा नहीं होता. इसी प्रकार दुश्मनी भी शाश्वत नहीं होती. अत: दुश्मन से व्यवहार में यह ध्यान रखो कि वह आपका मित्र बन जायेगा. और मित्र में भविष्य के शत्रु की संभावनायें देख कर चलो.
- दूसरों से अपनी परेशानियों व समस्याओं कीचर्चा उनकी सहानुभूति तथा सहयोग पाने के लिये न करें. एक रिटयर्ड अमेरिकन एडमिरल की सीख पर ध्यान दें – जिनसे आप अपनी तकलीफों की चर्चा करते हैं, उनमें से आधों को कोई फ़िक्र नहीं कि आप पर क्या गुजरती है. शेष आधे लोग उससे बहुत प्रसन्न होते हैं.
- यह आम बात है कि हम जिनकी सहायता करते हैं, वे बहुधा हमारे लिये परेशानियां खड़ी करते हैं. हमें लगने लगता है कि इनसे अच्छे वे हैं, जिनके लिये हमने कुछ भी नहीं किया. शायद सहायता पाने वाले की चेतना का कोई अंश ऋणी नहीं होना चाहता. और सहायता करने वाला अगर पाने वाले की कृतज्ञता व धन्यवाद पर अपना हक जमाने लगे तो स्थिति और खराब हो जाती है. अत: नेकी कर दरिया में डालना ही अच्छा है.
- बिना कुछ दिये कुछ पाने का सिद्धांत विज्ञापनों में ही सच होता है, वस्तविक दुनिया में नहीं. कुछ पाने के लिये कीमत अदा करनी पड़ती है – हर क्षेत्र में व हर समय. ज्ञान प्राप्त करना हो तो अध्यन करना ही पड़ेगा.शरीर सुगठित बनाना है तो व्यायाम करना ही पडे़गा. अपने ध्येय के लिये आपको कार्य अवश्य करना होगा.
श्री माधव पंडित के उक्त सबक आपको सोचने को बाध्य करते हों तो आप “भरतलाल सिण्डरॉम” की दवा पा जायेंगे.
(चित्र – श्री माधव पंडित, इन्टरनेट से उतारा हुआ)
आपके लिखने का एक अनूठा तेवर है, इसे बनाये रखे…आम आदमी से जुडी हर रचना हर एक को आसानी से आकर्शित कर लेती है
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रविरतलामी का ब्लॉग. वह हिन्दी में लिखने की सहायता के लिये http://epandit.blogspot.com/2007/02/how-to-read-and-type-hindi-text.html को उधृत करता है. – ज्ञान.
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तो नारद पर रजिस्टर हो लिए न। अब देखिए कल तक ही आपके चिट्ठे पर लाइन लगती है। लोग बाग धूमधाम से स्वागत करेंगे।अच्छा जरा ये बताइए कि आप मेरे चिट्ठे पर किधर से पहुँचे थे। या फिर आपने मेरा ईमेल पता कहाँ से प्राप्त किया ?
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