मौसम कुहासे का है। शाम होते कुहरा पसर जाता है। गलन बढ़ जाती है। ट्रेनों के चालक एक एक सिगनल देखने को धीमे होने लगते हैं। उनकी गति आधी या चौथाई रह जाती है। हम लोग जो आकलन लगाये रहते हैं कि इतनी ट्रेनें पार होंगी या इतने एसेट्स (इंजन, डिब्बे, चालक आदि) से हमContinue reading “कुहासा”
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भय और अज्ञान की उत्पादकता
पिछली पोस्ट पर कई टिप्पणियां भय के पक्ष में थीं। बालक को भय दिखा कर साधा जाता है। यह भी विचार व्यक्त किया गया कि विफलता का भय सफलता की ओर अग्रसर करता है – अर्थात वह पॉजिटिव मोटीवेटर है। पता नहीं। लगता तो है कि टिप्पणियों में दम है। भय से जड़ता दूर होतीContinue reading “भय और अज्ञान की उत्पादकता”
भय विहीन हम
किसका भय है हमें? कौन मार सकता है? कौन हरा सकता है? कौन कर सकता है जलील? आभाजी के ब्लॉग पर दुष्यंत की गजल की पंक्तियां: पुराने पड़ गए डर, फेंक दो तुम भी ये कचरा आज बाहर फेंक दो तुम भी । मुझे सोचने का बहाना दे देती हैं। दैवीसम्पद की चर्चा करते हुयेContinue reading “भय विहीन हम”
