पितृसत्तात्मक समाज नारी (अर्थात नर्मदा) की महत्ता यूंही स्वीकार नहीं करता। पहले वह उसे लांछित या उपेक्षित करता है, पर अगर फिर भी नारी अपनी श्रेष्ठता प्रमाणित कर देती है, तो वह उसे देवी का दर्जा देकर पूजनीय बना देता है।
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प्रेमसागर अमरकण्टक को निकल लिये
द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा के एक महत्वपूर्ण अंश में बलभद्र जी सहायक बने। उनका सहयोग रामेश्वरम सेतु वाली गिलहरी जैसा नहीं, नल-नील जैसा माना जाना चाहिये। उनके रहने से ही प्रेमसागर वह दुर्गम रास्ता पार कर पाये।
मैने संकल्प न किया होता, तो यह यात्रा कभी न करता – प्रेमसागर
छ साल पहले हृदय रोगी जो छ मीटर भी नहीं चल सकता था, आज पैदल मैकल पहाड़ चढ़ गया! … प्रेम सागर कहते हैं कि अगर वे हृदय रोग से उबरे न होते तो उनका हार्ट फेल हो गया होता!
