“अपनी माँ को उठा कर गिरनार की 10099 सीढ़ियाँ चढ़ कर जूनागढ़ में हो आया हूं। माँ को सुदामापुरी द्वारका, बेट द्वारका आदि दिखा लाया था।” – गुक्खल अपनी यात्राओं के बारे में बताते हैं।
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प्रणाम; आपका स्वागत नहीं है!
यह ऊबड़खाबड़ सड़क; यह सवेरे सवेरे “गुडनाइट सर” का जोर से जयकारा लगाते भगवान दास का हंसता मुस्कराता चेहरा; सड़क किनारे निपटती बच्ची का अभिवदन करना – “बब्बा पालागी”; का आनंद लो। कहां इन बभनों के फेर में अपनी मानसिक शांति बरबाद करते हो!
बहुत सानदार फोटो घींचे हयअ यार!
बच्चे में, उससे पांच गुना ज्यादा उम्र वाले अजनबी के साथ बात करते, प्रश्न करते कोई संकोच, कोई झिझक नहीं थी।
“बहुत सानदार फोटो घींचे हयअ यार! … अरे ये तो हुंआ की फोटो है। और ये तो सिवाला की है। … केतने क मोबाइल हौ?”
