जो शीर्षक दिया है, वह हिन्दी अंग्रेजी घालमेल वाला हो गया है. इतना हिन्दी रखी है कि हिन्दी वाले नाक-भौं न सिकोड़ें. अन्यथा शीर्षक रखने का विचार था – अ बिजनेस इज़ अ बिजनेस इज़ अ बिजनेस – व्हाट्स रॉंग अबाउट इट! यह प्रतिक्रिया दिल्ली में ब्लॉगरों के जमावड़े के बारे में पढ़ कर है.Continue reading “अ बिजनेस इज अ बिजनेस – गलत क्या है?”
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प. विष्णुकांत शास्त्री से क्या सीख सकते हैं चिठेरे?
पण्डित विष्णुकांत शास्त्री (1929-2005) को मैं बतौर आर.एस.एस. के सक्रिय सम्बद्ध व्यक्ति, पश्चिम बंगाल भाजपा के अध्यक्ष, भाजपा के उपाध्यक्ष अथवा उत्तरप्रदेश/उत्तराखण्ड के राज्यपाल के रूप में नहीं वरन एक लेखक के रूप में याद कर रहा हूं. और उस रूप में अच्छे ब्लॉगर के लिये एक सबक है – जो मैं बताना चाहता हूं.Continue reading “प. विष्णुकांत शास्त्री से क्या सीख सकते हैं चिठेरे?”
रवि रतलामी, सुन रहे हैं?*
कल रवि रतलामी ने अपने फीड का सैकड़ा पार करने की खबर दी. रवि वह सज्जन हैं जो अकस्मात मुझे नेट पर दिखे थे. मैं रतलामी सेव की रेसिपी गूगल सर्च में खंगाल रहा था और मिल गये रवि रतलामी! उसी के बाद मुझे हिन्दी में नेट पर लिखने की सनक सवार हुई. उनका दफ्तरContinue reading “रवि रतलामी, सुन रहे हैं?*”
