भोंदू


भोंदू अकेला नहीं था। एक समूह था – तीन आदमी और तीन औरतें। चुनार स्टेशन पर सिंगरौली जाने वाली ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहे थे। औरतें जमीन पर गठ्ठर लिए बैठी थीं। एक आदमी बांस की पतली डंडी लिए बेंच पर बैठा था। डंडी के ऊपर एक छोटी गुल्ली जैसी डंडी बाँध रखी थी। यानीContinue reading “भोंदू”

लकड़ी


इलाहाबाद स्टेशन पर मैं कई बार स्त्रियों को देखता हूं – लकड़ी के बण्डल उठाये चलते हुये। मुझे लगता था कि ये किसी छोटे स्टेशन से जंगली लकड़ी बीन कर लाती हैं इलाहाबाद में बेचने। आज सवेरे भी एक महिला फुट ओवर ब्रिज पर लकड़ी का बण्डल सिर पर रखे जाती हुई दिखी। उस महिलाContinue reading “लकड़ी”

द्रौपदी आज रिटायर हुई


दो साल पहले मैने दो पोस्टें लिखी थीं – दफ्तर की एक चपरासी द्रौपदी पर – १. बुढ़िया चपरासी और २. बुढ़िया चपरासी – द्रौपदी और मेरी आजी। उसे सन १९८६ में अपने पति के देहावसान के बाद अनुकम्पा के आधार पर नौकरी मिली थी पानी वाली में। लम्बे समय तक वह हाथरस किला स्टेशन पर काम करती थी। इसContinue reading “द्रौपदी आज रिटायर हुई”

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