तिरंगा और जलेबी


मेरी जलेबी ठण्डी न हो जाये, इसलिये घर पंहुचने की जल्दी थी। अन्यथा इस राष्टीयता के बाजर की चहल पहल को और इत्मीनान से देखता।

आम खतम हुये, लग्गियाँ उपेक्षित हो गयीं


अगले साल नये आम होंगे, अशोक नई लग्गियां बनायेगा। अभी तो ये सभी उपेक्षित हो गयी हैं। गौतमस्थान की अहिल्या की तरह। प्रतीक्षा करतीं कि कोई आम आयेंगे और उनका उद्धार करेंगे!

बारिश, चीकू और हजारा


उस रोज रात में बारिश हो रही थी। चीकू का गाछ झूम रहा था। सारा ध्यान उसी पर जा रहा था। अगले दिन यह सोच कर कि तेज हवा में उसके फल टूट कर बरबाद न हो जायें, हमने सारे फल तोड़ कर एक छोटे टब में पकने रख दिये। कल एक दो पके फल खाये। बहुत मीठे!

Design a site like this with WordPress.com
Get started