अमरनाथ बिंद, दर्जी


अमरनाथ ने बढ़िया सिला। उम्मीद से ज्यादा अच्छा।
“गुरुजी, बार बार आपको दुकान पर आना न पड़े, इसलिये सिल कर घर पर ही ले आया हूं। आपके बगल के गांव मेदिनीपुर में ही मेरा घर है। नया-पुराना, जौन भी काम हो मुझे दीजियेगा।”

दीनानाथ की मेहरारू


घर गांव में उनसे उम्रदराज लोग जा चुके। अब वे ही हैं। ऐसा कहने में उनके स्वर में बहुत दुख का भाव नहीं आया। यूं बताया कि वह एक सत्य का वर्णन हो। जीवन की गति और नश्वरता सम्भवत उन्होने स्वीकार कर ली है।

जैप्रकाश – नरम गरम काम मिल ही जाता है।


काम करने वाले को रोज काम मिल रहा है। अब कोई जांगरचोर हो तो काम अपने से उसके पास तो आयेगा नहीं। गांव में भी काम मिलता है और बनारस में भी।

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