चक्रधर दुबे

सफेद घनी दाढ़ी मूछें, कुरता, गमछा और धोती। मैने सोचा कोई साधू या अर्ध-विरक्त जीव होंगे। पर वे सामान्य जन निकले – मेरी तरह।

उन्होने अपनी उम्र बताई अठहत्तर साल। भारत में पचहत्तर के बाद आदमी झूलने लगता है। कमर झुकने लगती है और झुर्रियां बेहिसाब उभर आती हैं। दांत गिरते जाते हैं। उनके साथ यह सब नहीं था, उस हिसाब से वे बहुत फिट लगे। शायद मुझसे ज्यादा फिट जबकि मैं उनसे अभी उनसे नौ साल छोटा हूं, उम्र में। उनकी हाथ की ग्रिप जानने के लिये मैने उनसे हाथ मिलाया। कड़क पकड़ थी, मेरी ग्रिप से बेहतर। उम्र का कोई लुजलुजापन नहीं।

मैं प्रभावित हुआ उनसे। उनका नाम पूछा तो बताया – चक्रधर दुबे। फिर जोड़ा – लोग उन्हें ऊदल के नाम से जानते हैं।

चक्रधर ऊदल दुबे

कोई भी व्यक्ति जो उम्रदराज हो और ठीकठाक स्वास्थ्य वाला हो, उससे बात करने के लिये मेरे पास उनकी दिनचर्या और उनसे स्वास्थ्य का राज जानने वाले सवाल होते हैं। अमूमन ये सवाल उन सज्जन को पसंद आते हैं और बातचीत का क्रम बन जाता है। चक्रधर जी के साथ भी वैसा ही हुआ।

चक्रधर जी ने बताया कि वे सवेरे चार बजे बिस्तर छोड़ देते हैं। नित्यकर्म के बाद एक घंटा साइकिल चलाते हैं। दो ढ़ाई किलोमीटर धीरे चलाते हैं, काहे कि वह रास्ता शहर में गलियों के बीच होता है। उसके बाद मेन रोड पर स्पीड बढ़ जाती है। साइकिल चलाने के बाद वे पैदल चलते हैं। करीब आधा घण्टा। व्यायाम में इसके अलावा कुछ पुश-अप भी शामिल है।

सवेरे पेट में पहला भोजन, पहला दाना करीब साढ़े सात बजे जाता है और अंतिम भोजन रात साढ़े सात बजे। बाहर जाने पर कभी भोजन लेट हो जाये तो रात में नौ बजे के बाद भोजन नहीं करते। नौ बजे के बाद भोजन करने की बजाय बिना खाये सोना बेहतर समझते हैं वे।… सरकेडियन रिदम का पालन अपने हिसाब से वे बखूबी कर रहे हैं। वह उनकी दिनचर्या का हिस्सा है।

कई दशकों बाद मेरा बी.एम.आई. 24 पर आया है पर मेरा कमर का घेरा अभी भी 37इंच है। लाद का मांस अभी भी ज्यादा है। वजन पांच किलो और कम होना चाहिये। पर चक्रधर जी के शरीर पर किसी भी जगह कोई अतिरिक्त मांस नहीं है। ठोस मांसल शरीर है उनका।

स्वास्थ्य उनका ठीक है पर उन्होने बताया कि कुछ साल पहले बीमार हुये थे। “पता नहीं कैसे” बड़ी आंत में सड़न हो गयी थी। उसका कुछ टुकड़ा काट कर अलग करना पड़ा था। उसके बाद अब भोजन पचाने और शौच में कोई समस्या नहीं है। उन्हें कब्ज की कोई शिकायत नहीं।

उनके हाथ में तीन अंगूठियां हैं। दो में नग जड़े हैं और तीसरी तांबे की एक रिंग जैसी है। मैने उन्हें पहनने का कारण पूछा। उन्होने बताया कि उनके गुरू जी ने मानसिक शांति के लिये पहनने को कहा है और पहनने के सार्थक परिणाम भी हुए हैं। फिर भी, उन्होने कहा कि वे अपने मन से नहीं, गुरु महराज के कहने पर पहने हुये हैं। उनके व्यक्तित्व का एक पक्ष है जो नहीं मानता नगों और ताम्बे का मनोविज्ञान पर असर को, पर दूसरा पक्ष है जो गुरु महराज के प्रति श्रद्धा से उतना करता है जितना निभ सकता है। चक्रधर दूसरे प्रकार वाले हैं। कुछ कुछ मेरी तरह।

धर्म के नाम पर वे मुझे व्रत उपवास और कर्मकाण्डों के प्रति आस्था वाली बातें नहीं करते। हां बजरंगबली में उनकी श्रद्धा है और उनमें श्रद्धा रखने को मुझे भी कहते हैं।

व्यायाम के नाम पर एक बात और करने के लिये मुझे कहते हैं – “आप दिन में 100 कदम ऐसे चलें जैसे कदमताल करने वाले करते हैं। एक पैर पूरी तरह उठा कर आगे रखें। फिर पीछे वाले पैर को उसी प्रकार आगे ले जायें।”

और लोग बातचीत में अपनी हाँकते हैं। मैं उनसे उनकी बात कर रहा था और उनसे पूछ रहा था। चक्रधर जी को यह अच्छा लगा। उनके हाव भाव से यह स्पष्ट था। मैं चलने लगा तो वे मुझे छोड़ने आये। मेरी कार तक आ कर कार के रवाना होने तक खड़े रहे। उन्होने मेरा नाम और फोन नम्बर भी लिया है। उनके पास एक पुराना सैमसंग का फीचर फोन है। ब्लॉग पोस्ट लिख कर मैं उन्हें देखने के लिये नहीं कह सकता। पता नहीं उनके घर में किसी और के पास स्मार्टफोन है या नहीं। पर यह सम्भव हो कि उनसे आगे कभी मिलना हो सके। उनका गांव मेरे गांव से पैंतालीस किलोमीटर दूर है। कोई प्रयोजन हो तभी वहां जाना हो सकेगा।

उनसी दाढ़ी मूछें, उनकी हाथों की ग्रिप और उनके स्वास्थ्य की टिप्स मुझे याद आती रहेंगी।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

5 thoughts on “चक्रधर दुबे

  1. जय हो दुबे जी और लेखक जी की. दोनों का स्वास्थ्य उत्तम बना रहे.

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  2. चक्रधर जी से मिलना रोचक रहा। आजकल फिटनेस इंडस्ट्री में इंटरमिटेंट फास्टिंग काफी चल रहा है। पश्चिम से लेकर पूरब तक सब इसकी शान में कसीदे पढ़ रहे हैं और दुबे जी बिना जाने ही ये कार्य कर रहे हैं। उनके व्यायाम में पुश अप का होना प्रेरक है। उनके विषय में ब्लॉग में लिखते रहिएगा। मसलन क्या हमेशा से ही उनकी यही दिनचर्या थी? या उम्र के अलग अलग पड़ावों पर यह बदलती रही और अब जाकर ये हुई है। ऐसे ही अन्य बातें जानना चाहूंगा।

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  3. इनकी दिनचर्या काफ़ी दुरुस्त है और इस उम्र में पुश अप भी करते हैं उससे पता चलता है इच्छाशक्ति प्रबल है।🙏

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