जेठ की तेज बारिश और मठल्लू यादव की मड़ई


लौटते समय मैं सोच रहा था – चालीस साल इस तरह के अनुभव कभी नहीं हुये। सवेरे साइकिल भ्रमण। बारिश में फंसना। मड़ई में शरण और एक किसान से इस तरह मुलाकात/बातचीत! कितने अफसर यह अनुभव ले पाते होंगे? नौकरी में या उसके बाद।

छोटी मछली से बड़ी पकड़ने की तकनीक


गहरी नदी यानी करारी। इन लोगों ने बताया कि उथली नदी को पटपट कहते हैं। करारी नदी में मछलियां होती हैं, पटपट में नहीं। मछली पकड़ने की सम्भावना बढ़ाने के लिये उनके लिये यह जानना जरूरी था कि नदी करारी है या पटपट।

विष्णु मल्लाह – गंगा-नाव-मछली ही उसका जीवन है!


वह नाव के एक सिरे पर बैठा डांड/पतवार के साथ। दूसरी ओर उसका जाल पड़ा था। मैं नाव के फ़र्श पर बीच में बैठा। वह नाव चलाने लगा और मैं उससे उसके बारे में पूछने लगा।

मचिये के लिये मिला राजबली विश्वकर्मा से


राजबली का परिवार अलाव जला कर कोहरे में गर्माहट तलाशता बैठा था। आकर्षक मूछों वाले राजबली एक मोटे लकड़ी के टुकड़े को बसुले से छील भट्ठा पर काम करने वालों के लिये खड़ाऊँ बना रहे थे।

विष्णु मल्लाह – बैकर मछरी पकड़े बा!


किसान की तरह मल्लाह भी मार्केट की चाल से मात खाता है। यहां यह जरूर था कि तुरत-फुरत उसे रोकड़ा मिल जा रहा था। किसानी में वह भी नहीं होता।

चाय की चट्टी, मोही और माधुरी


खुद ही छोटा बच्चा। चार साल का होगा। अभाव में पलता। पर कुछ भी मिलने पर अपनी छोटी बहन को देने की बात पहले मन में आयी उसके। कौन सिखाता है यह संस्कार। यह स्नेह।