श्री पंकज अवधिया जी की बुधवासरीय अतिथि पोस्ट है यह। आज वे विभिन्न प्रकार के धान की किस्मों के औषधीय गुणों के विषय में एक विहंगम दृष्टि प्रस्तुत कर रहे हैं। आप उनके पहले के लेख पंकज अवधिया वर्ग सर्च के द्वारा इस ब्लॉग पर देख सकते हैं।
आप कौन – सा चावल खाते हैं ? यदि आपसे यह पूछा जाये तो आप झट से बोलेंगे कि बासमती चावल। आप ज्यादा आधुनिक होंगे तो उसमे जोड देंगे कि हम आर्गेनिक चावल खाते हैं । पर क्या आपने कभी मेडीसिनल राइस (औषधीय धान) खाया है? तो आप चौंक पडेंगे। हमारे देश के उन क्षेत्रों मे जहाँ धान की उत्पत्ति हुयी है आज भी सैकड़ों किस्म के औषधीय धान किसानों के पास हैं। बहुत से पारम्परिक चिकित्सक आज भी साधारण और जटिल दोनो ही प्रकार के रोगों की चिकित्सा मे इसका प्रयोग कर रहे हैं। समुचित प्रचार-प्रसार के अभाव मे सारा देश बासमती को ही सब कुछ मान बैठा है।
देश के पारम्परिक चिकित्सक वात रोगों से प्रभावित रोगियो को गठुवन नामक औषधीय धान के उपयोग की सलाह देते हैं । वे कहते हैं कि जिन क्षेत्रों मे पहले इसे खाया जाता था वहाँ इस रोग का नामो-निशान नहीं था। श्वाँस रोगो की चिकित्सा मे सहायक उपचार के रूप मे रोगी को नागकेसर नामक औषधीय धान प्रयोग करने की सलाह दी जाती है। आम तौर पर गरम भात के साथ जंगली हल्दी चूर्ण के रूप मे खाने को कहा जाता है।
करहनी नामक औषधीय धान का प्रयोग लकवा (पैरालीसिस) के रोगियो के लिये हितकर माना जाता है। नवजात शिशुओ को लाइचा नामक रोग से बचाने के लिये लाइचा नामक औषधीय धान के प्रयोग की सलाह माताओं को दी जाती है। इसी तरह नवजात शिशुओं मे छोटे फोड़ों को ठीक करने के लिये माताओ को आलचा
नामक औषधीय धान के उपयोग की राय दी जाती है।
प्रसव के बाद नयी ऊर्जा के लिये महराजी नामक धान माताओं के लिये उपयोगी होता है। आपको तो पता ही है कि मै इन दिनों मधुमेह से सम्बन्धित पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान का दस्तावेजीकरण कर रहा हूँ और एक विस्तृत रपट तैयार कर रहा हूँ। इस रपट में मैने एक अध्याय औषधीय धान पर रखा है। इसमे कंठी बाँको और उडन पखेरु जैसे नाना प्रकार के औषधीय धानों के मधुमेह मे प्रयोग की विधियाँ समझायी गयी हैं । कैसर और हृदय रोगों पर आधारित रपटो में भी इस पर बहुत कुछ लिखा जा रहा है।
चावल के अलावा धान के पौधो मे अन्य भागो मे भी औषधीय गुण होते हैं । कालीमूंछ नामक औषधीय धान के पूरे पौधे से तैयार किया गया सत्व त्वचा रोगों को ठीक करता है। बायसूर नामक औषधीय धान की भूसी को जलाकर धुंए को सूंघने से माइग्रेन मे लाभ होता है।
पशु चिकित्सा मे भी औषधीय धान का प्रयोग देहाती इलाको मे होता है। गाय के जरायु (प्लेसेंटा) को बाहर निकलने से रोकने के लिये प्रसव के बाद अलसी और गुड़ के साथ भेजरी नामक औषधीय धान खिलाया जाता है।
प्राचीन भारतीय चिकित्सा ग्रंथो मे साठिया नामक औषधीय धान का वर्णन मिलता है। साठिया माने साठ दिन मे पकने वाला धान। पूरे देश मे साठ दिन में पकने वाली बहुत सी औषधीय धान की किस्में है पर सही नाम न लिखे होने के कारण ग्रंथो पर आधारित चिकित्सा करने वाले विशेषज्ञो को परेशानी होती है। मैने अपने वानस्पतिक सर्वेक्षण के आधार पर जिन औषधीय धानों के विषय मे लिखा है उनका वर्णन प्राचीन चिकित्सा ग्रंथो मे नही मिलता है।
मैने औषधीय धान पर बहुत कुछ लिखा है और सम्भवत: विश्व मे इस पर सबसे अधिक शोध आलेख मैंने ही प्रकाशित किये हैं । पर अभी भी बहुत कुछ लिखना बाकी है। सबसे जरुरी तो यह है कि औषधीय धान को संरक्षित करने के कार्य शुरु हों और इसके विषय मे जानकारी रखने वालों को सम्मानित कर उनसे इन्हे बचाने के गुर सीखे जायें । आज रा सायनिक खेती के युग में हम चावल का स्वाद भूल चुके हैं । हमे पतले और सुगन्ध वाले चावल चाहियें , भले ही उसमे बिल्कुल भी औषधीय गुण न हों । आपने कभी अपने आप से पूछा है कि क्यो आपने चावल के लिये ऐसा नजरिया बना लिया है?
इतनी मूल्यवान निधि के होते हुये क्यों धान उत्पादक क्षेत्रो के किसान दुखी है? क्यों उनकी नयी पीढी पलायन के लिये मजबूर है? यह समझ से परे है। योजनाकारों को पहल कर अब औषधीय धान के विषय मे भी विचार-मंथन करना चाहिये।
औषधीय धान पर मेरे शोध आलेखो की कड़ियां:
पंकज अवधिया
© इस पोस्ट का सर्वाधिकार श्री पंकज अवधिया का है।
श्री अवधिया निश्चय ही बहुत अच्छे समय प्रबंधक होंगे। बहुत समय से बहुत सुस्पष्ट तरीके से अपने लेख मुझे मेल कर देते हैं। मुझे बस उनकी पोस्ट पर लगाने के लिये चित्रों के विषय में यत्न करना होता है। फ्री डोमेन के क्लिपार्ट या चित्रों का प्रयोग अथवा स्वयम के कैमरे पर निर्भरता उनकी सतत दी गयी सज्जन सलाह का ही परिणाम है। मैं अपने व्यक्तित्व में कई सकारात्मक परिवर्तनों का श्रेय उन्हें दूंगा।
(चित्र – घर में उगा एक छोटा सा फूल!)