सेण्टर से कच्चा माल ले कर आते हैं और डिजाइन अनुसार बुनने के बाद सेण्टर पर देने से उन्हे काम के अनुपात में भुगतान होता है। सुरेश के अनुसार दो सौ रुपया रोज की आमदनी है। “इससे बढ़िया कहीं नौकरी/वाचमैनी होती?”
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
सेण्टर से कच्चा माल ले कर आते हैं और डिजाइन अनुसार बुनने के बाद सेण्टर पर देने से उन्हे काम के अनुपात में भुगतान होता है। सुरेश के अनुसार दो सौ रुपया रोज की आमदनी है। “इससे बढ़िया कहीं नौकरी/वाचमैनी होती?”