मकर संक्रांति – गंगे तव स्मरणात्‌ मुक्ति:


<<< मकर संक्रांति – गंगे तव स्मरणात्‌ मुक्ति: >>> रात में जब भी नींद खुली, प्रयाग की ओर जाती रेलगाड़ियां बोझिल और उल्टी दिशा वाली फर्राटे से गुजरती सुनाई दीं। प्रयाग जाने वाली सभी सामान्य और मेला स्पेशल ट्रेने हर स्टेशन पर रुक रही होंगी – इस कटका स्टेशन पर भी। वापसी में खाली गाड़ियांContinue reading “मकर संक्रांति – गंगे तव स्मरणात्‌ मुक्ति:”

“गंगा का पानी निर्मल है, पीने का मन करेगा”


मुझसे बात करने के लिये कमलेश बोले – “गुरूजी, आप तो बुद्धिमान हैं। आप तो जानते होंगे कि क्या रात बारह बजे गंगाजी एक बारगी बहना बंद कर थम जाती हैं?”

का हेरत हयअ?


एक विघ्नेश्वर जी ने टिप्पणी की। पोस्ट मौसम की अनिश्चितता, आंधी-पानी आदि पर थी। सज्जन ने कहा – घर में रह बुड्ढ़े, ऐसे मौसम में निकलेगा तो जल्दी मर जायेगा।
[…] काला टीका लगा दिया है उन्होने। सौ साल जिया जायेगा बंधुवर। ज्यादा ही!

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