“हवन कौन कराता है? बाहर से किसी पण्डित को बुलाते हैं?”
“नहीं। बस्ती के ही जानकार पुराने लोग करा लेते हैं। पहले मेरे बब्बा जानकार थे। अब कोई बचा नहीं। अब तो लोग सिर्फ जैकारा भर लगाना जानते हैं।”
भारतीय रेल का पूर्व विभागाध्यक्ष, अब साइकिल से चलता गाँव का निवासी। गंगा किनारे रहते हुए जीवन को नये नज़रिये से देखता हूँ। सत्तर की उम्र में भी सीखने और साझा करने की यात्रा जारी है।
“हवन कौन कराता है? बाहर से किसी पण्डित को बुलाते हैं?”
“नहीं। बस्ती के ही जानकार पुराने लोग करा लेते हैं। पहले मेरे बब्बा जानकार थे। अब कोई बचा नहीं। अब तो लोग सिर्फ जैकारा भर लगाना जानते हैं।”