पदयात्रा और 🧠मनयात्रा: एक साथ बहती नर्मदा की दो धाराएँ!
प्रेमसागर की नर्मदा परिक्रमा अब मालव के पठार पर मांडू के मोड़ तक आ पहुँची है। तीन दिन की पदयात्रा में वे बोधवाड़ा से बाकानेर, फिर बड़ा छतरी होते हुए मांडू पहुँचे और अब माहेश्वर की ओर बढ़ रहे हैं।
पर कहानी केवल पैरों की गति की नहीं है। नर्मदा की यह यात्रा एक भीतरी यात्रा का माध्यम भी है — एक मनयात्रा, जो लेखक के भीतर समानांतर चल रही है।
क्या परिक्रमा सिर्फ नदी के साथ चलना है? या नदी की याद, उसकी कहानियाँ, उसकी उपस्थिति को मन में महसूस करना भी?
📍 इस पोस्ट में जानिए:
क्यों परिक्रमावासी मांडू होकर जाते हैं?
क्या धर्मपुरी से जुड़ी कोई लोककथा उन्हें रोकती है?
मांडू का रेवा-कुंड क्या वाकई नर्मदा का प्रतिरूप है?
और लेखक के मन में बहती भावधारा कैसी दिखती है?
यह एक प्रयोगात्मक ट्रेवलॉग है – जिसमें दो यात्री हैं: एक पदयात्री और एक मनयात्री। दोनों के अनुभव मिलकर रचते हैं एक अनूठा यात्रा-वृत्तांत।
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