बोधवाड़ा-बाकानेर-मांडू


पदयात्रा और 🧠मनयात्रा: एक साथ बहती नर्मदा की दो धाराएँ!

प्रेमसागर की नर्मदा परिक्रमा अब मालव के पठार पर मांडू के मोड़ तक आ पहुँची है। तीन दिन की पदयात्रा में वे बोधवाड़ा से बाकानेर, फिर बड़ा छतरी होते हुए मांडू पहुँचे और अब माहेश्वर की ओर बढ़ रहे हैं।

पर कहानी केवल पैरों की गति की नहीं है। नर्मदा की यह यात्रा एक भीतरी यात्रा का माध्यम भी है — एक मनयात्रा, जो लेखक के भीतर समानांतर चल रही है।

क्या परिक्रमा सिर्फ नदी के साथ चलना है? या नदी की याद, उसकी कहानियाँ, उसकी उपस्थिति को मन में महसूस करना भी?

📍 इस पोस्ट में जानिए:

क्यों परिक्रमावासी मांडू होकर जाते हैं?

क्या धर्मपुरी से जुड़ी कोई लोककथा उन्हें रोकती है?

मांडू का रेवा-कुंड क्या वाकई नर्मदा का प्रतिरूप है?

और लेखक के मन में बहती भावधारा कैसी दिखती है?

यह एक प्रयोगात्मक ट्रेवलॉग है – जिसमें दो यात्री हैं: एक पदयात्री और एक मनयात्री। दोनों के अनुभव मिलकर रचते हैं एक अनूठा यात्रा-वृत्तांत।

पूरा वृत्तांत पढ़ें “मानसिक हलचल” ब्लॉग पर 👉

दक्षिणेश्वर से भ्रामरी मेलाई चण्डी शक्तिपीठ


बंगाल के मंदिर आगंतुक पदयात्री को रात बिताने को जगह नहीं देते; यह जानना अच्छा नहीं लगा। बंगला संस्कृति की उदात्तता की खूब बात होती है। पर वह शायद मात्र बांगला भाषियों के लिये ही है। बंगाल को भारत के सभी हिस्सों के लिये खुलना चाहिये।

कुलुबंदी से नंदिकेश्वरी शक्तिपीठ, बीरभूम, बंगाल


नंदिनी माता का शाब्दिक अर्थ है ‘जो आनंद की देवी हैं’। और आज प्रेमसागर जाने अनजाने में आनन्दित ही लगे अपनी बातचीत में मुझे। एक बड़ा सा प्रस्तर खण्ड है, गोल सा, जिसपर सिंदूर पुता है कि सब कुछ लाल नजर आता है। देवी का वही प्रतीक है।

Design a site like this with WordPress.com
Get started