मटर और महुआ उबाल कर खाते रहे हैं अतीत में – सत्ती उवाच


पहले के खाने के बारे में बताती है। दो जून खाना तो बनता ही नहीं था। मटर की दाल के साथ महुआ उबालते थे। वही खाते थे। मौसम में 2-2 बोरा महुआ बीन कर इकठ्ठा किया जाता था। उसी से काम चलता था।